सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आधार कार्ड (Adhaar Card) को नागरिकता का प्रमाण मानने से इनकार करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि आधार कार्ड को केवल पहचान के एक दस्तावेज के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसे भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी बिहार (Bihar) में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान दी।
आधार का इस्तेमाल कानून के दायरे में ही संभव
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग यदि आधार कार्ड को अन्य मान्यता प्राप्त दस्तावेजों के साथ पहचान के प्रमाण के तौर पर स्वीकार करता है, तो यह ठीक है। लेकिन सिर्फ आधार के आधार पर किसी की नागरिकता तय नहीं की जा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार अधिनियम के दायरे में रहते हुए ही इसका उपयोग संभव है।
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बिहार में मतदाता सूची से हटे 65 लाख नाम
मामला बिहार से जुड़ा है, जहां चुनाव आयोग ने आधार को नागरिकता का सबूत मानने से मना कर दिया था। इसके बाद राज्य में 65 लाख लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए। इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अदालत में RJD की ओर से पक्ष रखा।
पुट्टास्वामी केस का हवाला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 2018 के ऐतिहासिक पुट्टास्वामी बनाम भारत सरकार केस का उल्लेख किया। उस केस में पांच जजों की संविधान पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि आधार नंबर नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता। आधार अधिनियम की धारा 9 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति के पास आधार होने का यह मतलब नहीं है कि वह भारत का नागरिक है।
अदालत की चेतावनी
अदालत ने साफ किया कि आधार के इस्तेमाल को उसके कानूनी दायरे में ही सीमित रखना जरूरी है। नागरिकता जैसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर कोई भी भ्रम या गलतफहमी न फैले, इसलिए अदालत ने चुनाव आयोग और संबंधित एजेंसियों को इस दिशा में सतर्कता बरतने की सलाह दी है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आधार और नागरिकता से जुड़े मामलों में भविष्य की दिशा तय करेगा।