200 हिंदू लड़कियों से रेप और ब्लैकमेल की सच्ची घटना पर आधारित है फिल्म Ajmer-92, जुलाई में होगी रिलीज

The Kashmir Files और The Kerala Story के बाद एक और ऐसी फिल्म आ रही है जिसके चलते भारी विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं. सच्ची घटना पर आधारित फिल्म ‘अजमेर 92’ (Ajmer 92) ऐसी हैवानियत भरी दास्तान पर आधारित है जिस पर ना किसी ने कभी बात की और ना कोई इस मुद्दे पर बात करना चाहता है. इतना पक्का है कि Ajmer 92 को लेकर विरोध होगा, कोर्ट में इसे बैन करने के लिए याचिका लगेंगी और आखिर में फिल्म देखने के बाद लोगों को एक और छुपे हुए सच का पता चलेगा. वहीं इस फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर बेहद उत्साह देखने को मिल रहा है.

पोस्टर में देख सकते हैं कि इस पर 28 परिवारों के लापता होने की बात, हत्याओं का जिक्र, 250 कॉलेज गर्ल्स की न्यूड फोटो बँटने की खबरें हाईलाइट है. इस फिल्म में करण वर्मा, सुमित सिंह, सायजी शिंदे और मनोज जोशी नजर आएँगे. फिल्म का निर्देशन पुष्पेंद्र सिंह ने किया है. वहीं इसके प्रोड्यूसर उमेश कुमार हैं.

बता दें कि अजमेर का ब्लैकमेलिंग कांड का खुलासा अप्रैल 1992 में हुआ था. इसे दुनिया के सामने लाने वाले पत्रकार संतोष कुमार थे. इस रेप और ब्लैकमेलिंग कांड की शिकार अधिकतर स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ थीं. लोगों का मानता हैं कि इनमें से अधिकतर ने तो आत्महत्या कर ली थी.

क्या है अजमेर 1992 कांड
बात 1992 की है जब अजमेर दरगाह के खादिम फारूक चिश्ती को 100 लड़कियों के गैंगरेप कांड में दोषी पाया गया. लेकिन कहा जाता है कि अनऑफिशियली ये आकड़ा 300 से ज्यादा का था. लोग इसे देश का सबसे बड़ा बलात्कार कांड और अजमेर दरगाह काण्ड के नाम से भी जानते हैं. आज से लगभग 30 साल पहले अजमेर के सोफिया गर्ल्स स्कूल और सावित्री स्कूल की कई बच्चियों को सामूहिक दुष्कर्म का शिकार बनाया गया था. पहले स्कूल की मासूम हिंदू लड़कियों के साथ दोस्ती का नाटक किया जाता था. उसके बाद न सिर्फ उनका शोषण किया जाता था, बल्कि उन्हें तरह-तरह से ब्लैकमेल भी किया जाता था. उनकी नग्न तस्वीरों के जरिए उनसे उनकी दोस्त, बहन और भाभी को भी बुलाने के लिए कहा जाता था. जबरन उनके साथ भी यौन शोषण किया जाता था. ये खबर सामने आने के बाद तत्कालीन सीएम भैंरो सिंह शेखावत की कुर्सी तक हिल गई थी.

अजमेऱ शरीफ दरगाह के खादिम को हुई उम्र कैद की सजा
इस पूरे वाकये में सबसे अहम किरदार या कहें वो हैवान था राजस्थान के अजमेर जिला में मौजूद अजमेर शरीफ दरगाह का चिश्ती जिसने बलात्कार और ब्लैकमेलिंग का घिनौना खेल खेला.इस पूरे खेल के मास्टरमाइंड का सीधा कनेक्शन अजमेर दरगाह के खादिम से था. बताया जाता है कि इस स्कैंडल का मास्टरमाइंड फारूक चिश्ती, अनवर चिश्ती और नफीस चिश्ती था. इन तीनों का संबंध राजनीति से भी था. तीनों ही यूथ कांग्रेस के नेता थे. अजमेर दरगाह का खादिम होने और सियासी रसूख के दम पर इन सबने सैकड़ों हिंदू लड़कियों के साथ घिनौने वारदात को अंजाम दिया. धर्म और आस्था के लिए मशहूर अजमेर शहर पर और वहां के दरगाह पर साल 1992 में ये काला धब्बा लग गया.

अमीरी के रसूख ने उम्रकैद से बचाया
ऐसा बताया जाता है कि इस शहर पर दाग लगाने वाले कोई और नहीं, बल्कि अजमेर दरगाह के खादिम थे, अमीर और सफेदपोश लोग थे. ये लोग पैसे और प्रभाव दोनों से बेहद मजबूत थे. उन्हें देखकर कोई ऐसा नहीं कह सकता था कि वो कोई अपराधी होंगे. किसी ने समाजसेवी का चोला ओढ़ रखा था तो किसे ने राजनीति का तो किसी ने इस्लाम धर्म का. शुरुआती दिनों में जब केस शुरू हुआ तो सिर्फ 8 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था. हालांकि जांच बढ़ती गई और आरोपियों की संख्या 18 तक पहुंच गई.

प्रिंट लैब की तस्वीरों ने खोली थी रेप कांड की पोल
जिन लोगों के खिलाफ सेक्स स्कैंडल का मामला दर्ज हुआ वे लोग सूफी फकीर कहे जाने वाले ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह की देखरेख में लगे हुए थे. वो सारे खुद को चिश्ती का वंशज मानते थे. उस वक्त उनका ऐसा रसूख था कि प्रशासन भी उनके खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज़ करता था. इस मामले में जब कोई भी लड़की पुलिस के पास शिकायत करने जाती तो यही लोग उन्हें धमकी देते कि उनकी नग्न तस्वीरें पूरे देश में दिखा दी जायेगी. जिसके बाद लड़कियां चुप्पी साध लेती थीं.

लेकिन एक दिन कुछ तस्वीरें लीक हो गईं. दरअसल नफीस और फारुक समेत सारे दोषी एक कलर लैब में तस्वीरों को प्रिंट कराते थे. यहीं से कुछ तस्वीरें बाहर आने लगीं और मामला लोगों के सामने खुलने लगा. पुरुषोत्तम नाम का कलर लैब का एक कर्मचारी भी इसमें शामिल हो गया था. जिसने मुकदमा दर्ज होने के कुछ समय बाद आत्महत्या कर ली थी. तस्वीरें सामने आने के बाद कई लड़कियों ने आत्महत्या की. 27 मई 1992 को पुलिस ने कुछ आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत नोटिस जारी किया. सितंबर 1992 में अजमेर ब्लैकमेल कांड में पहली चार्जशीट फाइल की गई. जिसमें आठ आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई. जब जांच आगे बढ़ी तो मासूम बच्चियों और लड़कियों के यौन शोषण के इस मामले में 10 और आरोपियों के नाम जोड़े गए.

गवाहों की कमी ने केस कमजोर किया
अजमेर रेप और ब्लैकमेल कांड जिला अदालत से हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट और पॉक्सो कोर्ट के बीच घूमता रहा . शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाए लेकिन बाद में ज्यादातर लड़कियां अपने बयान से मुकर गईं. 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने आठ दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने 2001 में उनमें से चार को बरी कर दिया. 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों दोषियों की सजा घटाकर 10 साल कर दी. इनमें मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शम्शुद्दीन उर्फ माराडोना शामिल था.

फारुक चिश्ती ने खुद को पागल घोषित करवा कर सजा कम कराई
2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को भी दोषी ठहराया, जिसने खुद को दिमागी तौर पर पागल घोषित करवा लिया था. 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने फारुक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है. 2012 में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और जमानत पर रिहा हो गया.

कहा जाता है कि अजमेर रेप कांड का ये मामला रसूख और पैसों के प्रभाव के कारण दबा दिया गया लेकिन अब ये मामला एक फिल्म बनकर सिनेमा घरों में सुनामी लाने वाला है. इस फिल्म का नाम है अजमेर 92. बहुत जल्द इस फिल्म को लेकर डायरेक्टर पुष्पेंद्र सिंह आपके सामने हाज़िर होंगे.

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