समाजवाद, साम्यवाद और सेकुलरिज्म का लिटमस टेस्ट

जल जंगल जमीन की समस्या, रोटी कपड़ा मकान की समस्या, अशिक्षा- बेरोजगारी की समस्या, कुपोषण- भुखमरी की समस्या तथा अलगाववाद, कट्टरवाद, नक्सलवाद सहित भारत की 80% समस्याओं का मूल कारण भ्रष्टाचार और जनसँख्या विस्फोट है फिर भी इसे नियंत्रित करने के लिए आज तक कठोर और प्रभावी कानून नहीं बनाया गया. वोटबैंक राजनीति के कारण 25% भारतीय संविधान लागू ही नहीं किया गया. अटल जी ने 22.2.2000 को पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वेंकटचलैया की अध्यक्षता में एक 11 सदस्यीय आयोग बनाया था और दो वर्ष तक विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इस आयोग ने 31.3.2002 को 248 सुझाव दिया लेकिन स्पस्ट बहुमत के अभाव में अटल जी उन सुझावों को लागू नहीं कर पाये और कांग्रेस ने मनरेगा जैसे लोकलुभावन सुझावों को तो लागू किया लेकिन आयोग के 80% सुझावों को छोड़ दिया. संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर, सरदार पटेल, गांधी जी, लोहिया जी और श्यामा प्रसाद जी का जन्मदिन तो प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन उनके मूल विचारों को आज तक लागू नहीं किया गया फिर भी हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता मौन हैं.

 

यदि पिछले 20 साल का ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का करप्शन परसेप्शन इंडेक्स देखें तो 1998 में हम 66वें स्थान पर, 1999 में 72वें स्थान पर, 2000 में 69वें स्थान पर, 2001 और 2002 में 71वें स्थान पर, 2003 में 83वें स्थान पर, 2004 में 90वें स्थान पर, 2005 में 88वें स्थान पर, 2006 में 70वें स्थान पर, 2007 में 72वें स्थान पर, 2008 में 85वें स्थान पर, 2009 में 84वें स्थान पर, 2010 में 87वें स्थान पर, 2011 में 95वें स्थान पर, 2012 में 94वें स्थान पर, 2013 में 87वें स्थान पर, 2014 में 85वें स्थान पर, 2015 में 76वें स्थान पर, 2016 में 79वें स्थान पर और 2017 में 81वें स्थान पर थेI इससे स्पस्ट है कि उच्च स्तर का भ्रष्टाचार भले ही समाप्त हो गया लेकिन मध्यम और छोटे स्तर के भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आयी है. वर्तमान समय में देश का एक भी जिला, तहसील, थाना या सरकारी विभाग भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता मौन हैं.

 

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 103वें स्थान पर, आत्महत्या में 43वें स्थान पर, साक्षरता दर में 168वें स्थान पर, हैपिनेस इंडेक्स में 133वें स्थान पर, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में 130वें स्थान पर, सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स में 93वें स्थान पर, यूथ डेवलपमेंट इंडेक्स में 134वें स्थान पर, होमलेस इंडेक्स में 8वें स्थान पर, लिंग असमानता में 125वें स्थान पर, न्यूनतम वेतन में 124वें स्थान पर, रोजगार दर में 42वें स्थान पर, क्वालिटी ऑफ़ लाइफ इंडेक्स में 43वें स्थान पर, फाइनेंसियल डेवलपमेंट इंडेक्स में 51वें स्थान पर, रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स में 66वें स्थान पर, एनवायरनमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में 177वें स्थान पर तथा जीडीपी पर कैपिटा में 139वें स्थान पर हैं लेकिन समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस पर बात नहीं करते हैं.

 

जनसँख्या विस्फोट हमारी सबसे बड़ी समस्या है. वर्तमान समय में 122 करोड़ भारतीयों के पास आधार है, 20% अर्थात 25 करोड़ नागरिक (विशेष रूप से बच्चे) बिना आधार के हैं तथा चार करोड़ बंगलादेशी और एक करोड़ रोहिंग्या घुसपैठिये अवैध रूप से भारत में रहते हैं. इससे स्पष्ट है कि हमारे देश की कुल जनसँख्या 130 करोड़ नहीं बल्कि लगभग 152 करोड़ है और हम चीन से बहुत आगे निकल चुके हैं. यदि संसाधनों की बात करें तो हमारे पास कृषि योग्य भूमि दुनिया की मात्र 2% है, पीने योग्य पानी मात्र 4% है और जनसँख्या दुनिया की 20% है. यदि चीन से तुलना करें तो हमारा क्षेत्रफल चीन का लगभग एक तिहाई है और जनसँख्या वृद्धि की दर चीन की तीन गुना है. चीन में प्रति मिनट 11 बच्चे और भारत में प्रति मिनट 33 बच्चे पैदा होते हैं. संविधान समीक्षा आयोग (वेंकटचलैया आयोग) ने विस्तृत विचार विमर्श के बाद 2002 में जनसँख्या नियंत्रण के लिए संविधान में आर्टिकल 47A जोड़ने और एक प्रभावी जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था. इसी आयोग के सुझाव पर मनरेगा लागू हो गया लेकिन आजतक जनसँख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाया गया फिर भी हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता जनसँख्या नियंत्रण कानून की मांग नहीं करते हैं.

 

लोहिया जी कहते थे कि जब तक मंत्री और संतरी, क्लर्क और कलेक्टर, सिपाही और कप्तान तथा पार्षद और सांसद के बच्चे एक साथ नहीं पढ़ेंगे तब तक समता, समानता और समान अवसर की बात करना एक पाखंड है. पठन-पाठन का माध्यम भले ही अलग हो लेकिन पाठ्यक्रम तो पूरे देश में एक समान होना ही चाहिए लेकिन “एक देश-एक कर” की भांति “एक देश-एक शिक्षा बोर्ड” लागू करने का आजतक प्रयास ही नहीं किया गया. गरीब बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए देश के प्रत्येक विकास खंड में एक केंद्रीय विद्यालय या नवोदय स्कूल खोलना भी बहुत जरुरी है. संविधान का आर्टिकल 16 समान अवसर की बात करता है और समान शिक्षा लागू किये बिना सभी बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराना नामुंकिन है लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता “समान शिक्षा” पर मौन हैं.

 

दीनदयाल जी धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक- बहुसंख्यक वर्गीकरण के खिलाफ थे. भारतीय संविधान या किसी भी भारतीय कानून में अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं है फिर भी लक्षदीप के 96% मुसलमान अल्पसंख्यक और 2% हिंदू बहुसंख्यक कहलाते हैं. भारत को छोड़ दुनिया के किसी भी सेक्युलर देश में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक- बहुसंख्यक वर्गीकरण नहीं किया जाता है. दुनिया के सभी देशों में 5% से कम जनसँख्या वाले समुदाय को ही अल्पसंख्यक माना जाता हैं. धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक का विभाजन समाप्त करने के लिए संविधान के आर्टिकल 25- 30 में संशोधन करना बहुत जरुरी है, और इसके लिए बागपत के सांसद सत्यपाल सिंह जी ने 2016 में प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश किया था लेकिन लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस बिल पर चर्चा नहीं करना चाहते हैं.

 

श्यामा प्रसाद जी का सपना था- “एक देश, एक विधान और एक संविधान” लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी “एक देश, दो विधान और दो संविधान” जारी हैं. संविधान में गलत तरीके से जोड़ दिए गए आर्टिकल 35A और अंशकालिक आर्टिकल 370 को आजतक समाप्त नहीं किया गया तथा कश्मीर में अलग संविधान आज भी लागू है. देश की एकता और अखंडता तथा आपसी भाईचारा को मजबूत करने के लिए श्यामा प्रसाद जी का “एक देश, एक विधान और एक संविधान” का सपना साकार करना बहुत जरुरी है लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस विषय को संसद में नहीं उठाते हैं.

 

बाबा साहब अंबेडकर और अधिकांश संविधान निर्माता एक समान नागरिक संहिता चाहते थे इसीलिए विस्तृत विचार-विमर्श के बाद संविधान में आर्टिकल 44 जोड़ा गया लेकिन आज भी हिंदू के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, मुसलमान के लिए मुस्लिम मैरिज एक्ट तथा इसाई के लिए क्रिस्चियन मैरिज एक्ट लागू है. देश के एकता-अखंडता को मजबूत करने तथा महिलाओं को सम्मान और न्याय दिलाने के लिए आर्टिकल 44 लागू करना बहुत जरुरी है लेकिन समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता समान नागरिक संहिता पर बहस करने से डरते हैं.

 

सरदार पटेल का सपना था “एक देश, एक नाम, एक निशान और एक राष्ट्रगान” लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी दो नाम (भारत और इंडिया), दो निशान (तिरंगा और कश्मीर का झंडा) और दो राष्ट्रगान (जन-गन-मन और वंदेमातरम) जारी हैI संविधान या कानून में राष्ट्रगीत का कोई जिक्र नहीं है और संविधान सभा के 24.1.1950 के प्रस्ताव के अनुसार “वंदेमातरम” भी हमारा राष्ट्रगान है. देश की एकता और अखंडता तथा आपसी भाईचारा को मजबूत करने के लिए सरदार पटेल का “एक देश, एक नाम, एक निशान और एक राष्ट्रगान” का सपना साकार करना जरुरी है लेकिन समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस विषय पर मौन हैं.

 

गांधीजी का सपना था शराब- मुक्त और नशा- मुक्त भारत. संविधान का आर्टिकल 47 भी यही कहता है अर्थात संविधान निर्माता भी शराब- मुक्त और नशा- मुक्त भारत चाहते थे. शराब और नशे के कारण अपराध और रोड एक्सीडेंट बढ़ रहा है, बीमारी और बेरोजगारी बढ़ रही है, लाखों परिवार बर्बाद हो चुके हैं तथा महिलाओं और बच्चों की जिंदगी नर्क बन गयी है, लेकिन भारत को शराब- मुक्त और नशा- मुक्त देश घोषित करने पर समाजवादी और साम्यवादी ही नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्ष नेता भी मौनीबाबा बन गए हैं.

 

मौलिक कर्तव्य के प्रचार- प्रसार के लिए वेंकटचलैया आयोग और जस्टिस वर्मा समिति के सुझावों को आज तक लागू नहीं किया गया जबकि देश की एकता- अखंडता और आपसी भाईचारा मजबूत करने के लिए सभी नागरिकों को अपने मौलिक कर्तव्य का ज्ञान होना बहुत जरुरी है, लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस विषय पर मौन हैं.

 

संविधान के आर्टिकल 312 के अनुसार जजों के चयन के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की तर्ज पर भारतीय न्यायिक सेवा (IJS) का आयोजन होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पस्ट कहा है कि विशिष्ट सेवाओं में आरक्षण नहीं होगा और केवल योग्यता के आधार पर ही चयन होगा. जज भी विशिष्ट सेवा में ही आते हैं क्योंकि यदि जज अयोग्य होगा तो लोगों के साथ न्याय नहीं कर पायेगा. वर्तमान समय में निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए राज्य स्तर पर परीक्षा का आयोजन होता है और आरक्षण भी लागू है जिसके कारण प्रत्येक राज्य में जजों की क्षमता और गुणवत्ता अलग-अलग होती है और न्यायिक फैसले में अत्यधिक अंतर होता है फिर भी हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता आर्टिकल 312 के अनुसार भारतीय न्यायिक सेवा शुरू करने के विषय पर चुप हैं.

 

संविधान के आर्टिकल 343 के अनुसार हिंदी भारत की राजभाषा है अर्थात भारत के सभी लोकसेवकों और जनसेवकों को हिंदी का मौलिक ज्ञान होना बहुत जरुरी है, इसलिए सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी का एक प्रश्नपत्र अनिवार्य होना चाहिये. लगभग 90% भारतीय हिंदी समझते और बोलते हैं लेकिन, आजतक हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया गया फिर भी हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता मौन हैं.

 

संविधान के आर्टिकल 348 के अनुसार जबतक संसद एक कानून नहीं बनायेगी तबतक सुप्रीम कोर्ट का सभी कार्य अंग्रेजी में होगा. लगभग 90% भारतीय अपने दैनिक जीवन में हिंदी का उपयोग करते हैं और देश को आजाद हुए 70 साल बीत गया है लेकिन एक कानून बनाकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य नहीं किया गया फिर भी समाजवाद, साम्यवाद और धर्मनिरपेक्षता की डफली बजाने वाले हमारे माननीय मौन हैं.

 

संविधान के आर्टिकल 351 के अनुसार हिंदी-संस्कृत का प्रचार- प्रसार करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है इसलिए शिक्षा अधिकार कानून में संशोधन कर 6-14 साल के सभी बच्चों के लिए हिंदी- संस्कृत विषय का पठन-पाठन अनिवार्य करना चाहिए. देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने तथा भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए हिंदी- संस्कृत भाषा का पठन-पाठन सभी बच्चों के लिए बहुत जरुरी है, लेकिन शिक्षा अधिकार कानून में आजतक संशोधन नहीं किया गया फिर भी हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता मौन हैं.

 

अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाई गयी भारतीय दंड संहिता, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट और कई अन्य कानून आजतक लागू हैं, इसीलिए लोगों को बहुत देर से न्याय मिल रहा है. 25 साल से अधिक पुराने सभी कानूनों की समीक्षा तथा अपराधियों का नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेनमैपिंग टेस्ट अनिवार्य करने के लिए एक कानून की अत्यधिक जरुरत है, लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस विषय पर चुप रहते हैं.

 

अलगाववाद और कट्टरवाद हमारी एक प्रमुख समस्या है और इससे निपटने के लिए अलगाववादियों, चरमपंथियों और उनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त करने तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए एक प्रभावी कानून की तत्काल आवश्यकता है, लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस विषय पर भी मौन हैं.

 

घुसपैठ हमारे देश की एक प्रमुख समस्या है और हमारे घुसपैठ विरोधी कानून अत्यधिक कमजोर है. वर्तमान समय में भारत में चार करोड़ बंगलादेशी और एक करोड़ रोहिंग्या घुसपैठिये रहते हैं और ये बहुत तेजी से जनसँख्या विस्फोट कर रहे हैं, इसलिये असम की तर्ज पर पूरे देश में इनकी पहचान करना चाहिए तथा स्वदेश भेजने तक इन्हें जेल में जेल में रखना बहुत जरुरी है. घुसपैठियों और उनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त करने तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए तत्काल एक कठोर और प्रभावी कानून की जरुरत है, लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस गंभीर समस्या पर भी मौन हैं.

 

अंधविश्वास, कालाजादू और चमत्कार के सहारे बहुत ही सुनियोजित तरीके से सनातन धर्म को अलग-2 पंथों में तोड़ा जा रहा है और गरीब हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन भी किया जा रहा है इसलिए अंधविश्वास, कालाजादू और पाखंड फ़ैलाने वालों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए एक कठोर कानून की जरुरत है. धर्मांतरण द्वारा भारत विरोधी शक्तियां हिंदुओं को हिंदुस्तान में अल्पसंख्यक बना रही हैं. लक्षदीप और मिजोरम में हिंदू अब 2%, नागालैंड में 8%, मेघालय में 11%, कश्मीर में 28%, अरुणाचल में 29% और मणिपुर में 30% बचे हैं इसलिए धर्मांतरण कराने वालों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए एक कठोर केंद्रीय कानून की जरुरत है, लेकिन समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इस समस्या पर भी मौन हैं.

 

अलगाववाद और कट्टरवाद की फंडिंग हवाला के जरिये कैश में होती हैं इसलिए इसे जड़ से समाप्त करने के लिए 100 रुपये से बड़े नोट तत्काल बंद करना चाहिए और 10 हजार रुपये से महँगी वस्तुओं के कैश लेन-देन पर तत्काल प्रतिबंध लगाना चाहिए. घूसखोरी, कमीशनखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी और कालाबाजारी को समाप्त करने के लिए एक लाख रूपये से महंगी वस्तुओं और संपत्तियों को आधार से लिंक करना चाहिए तथा बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति के मालिकों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए तत्काल एक कठोर और प्रभावी कानून बनाना चाहिए. जब तक हवाला कारोबारियों, नशे के तस्करों तथा मानव तस्करों और इनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त कर आजीवन कारावास नहीं दिया जायेगा तब तक इन समस्याओं पर भी नियंत्रण असंभव है, इसलिए संसद के वर्तमान सत्र में ही इन कानूनों में संशोधन करना चाहिए लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इन गंभीर विषयों पर मौनीबाबा बन गए हैं.

 

चुनाव सुधार के लिए विधि आयोग और चुनाव आयोग के सुझावों को लागू करना, दागियों के चुनाव लड़ने, पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना तथा चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा का निर्धारण करना बहुत जरुरी है लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता चुनाव सुधार पर संसद में चर्चा ही नहीं करना चाहते हैं.

 

पुलिस सुधार पर सुप्रीम कोर्ट का 2006 का ऐतिहासिक फैसला आजतक लागू नहीं किया गया. जबतक अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाया गया पुलिस एक्ट समाप्त नहीं किया जाएगा और सोराबजी समिति द्वारा 2006 में बनाया गया मॉडल पुलिस एक्ट लागू नहीं किया जाएगा तबतक पुलिस प्रभावी और स्वतंत्र रूप से अपना कार्य नहीं कर पायेगी लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता पुलिस सुधार पर बात नहीं करना चाहते हैं.

 

अवैध घुसपैठ का मुख्य कारण भ्रष्टाचार है. बार- बार सड़क टूटने का मूल कारण भ्रष्टाचार है. खस्ताहाल सरकारी स्कूल और बदहाल सरकारी अस्पताल का मूल कारण भ्रष्टाचार हैI बढ़ते हुए अपराध का मुख्य कारण भ्रष्टाचार है. अदालत से अपराधियों के बरी होने का मूल कारण भ्रष्टाचार है. अलगाववाद, कट्टरवाद, नक्सलवाद और पत्थरबाजी का प्रमुख कारण भ्रष्टाचार है. सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे का मुख्य कारण भ्रष्टाचार है. जमाखोरी, मिलावटखोरी, कालाबाजारी तथा नशा और मानव तस्करी का मूल कारण भी भ्रष्टाचार है. बढ़ते हवाला कारोबार और सट्टेबाजी का मूल कारण भी भ्रष्टाचार है. न्याय में देरी और अदालत के गलत फैसलों का मूल कारण भी भ्रष्टाचार है. यदि ध्यान से देखें तो भारत की 50% से भी अधिक समस्याओं का मूल कारण भ्रष्टाचार है और वर्तमान कानून और व्यवस्था भ्रष्टाचार रोकने में पूरी तरह से नाकाम हैं फिर भी हमारे स्वघोषित समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता भ्रष्टाचार-मुक्त भारत पर संसद में चर्चा करने से डरते हैं.

 

जनसँख्या नियंत्रण, भ्रष्टाचार नियंत्रण, चुनाव सुधार, पुलिस सुधार, न्यायिक सुधार तथा भारतीय संविधान और वेंकटचलैया आयोग के सुझावों को 100% लागू किये बिना रामराज्य अर्थात स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, साक्षर भारत, समृद्ध भारत, सबल भारत, सुरक्षित भारत, समावेशी भारत, स्वावलंबी भारत, स्वाभिमानी भारत, संवेदनशील भारत तथा अलगाववाद और अपराध-मुक्त भारत का सपना साकार नहीं हो सकता है. गांधी, लोहिया, दीनदयाल, अंबेडकर, पटेल और श्यामाप्रसाद जी के सपनों को साकार किये बिना भारत माता की जय नहीं हो सकती है लेकिन हमारे समाजवादी, साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता इन विषयों पर चुप हैं.

 

दलहित से ऊपर उठकर अब आप खुद निर्णय करें कि समाजवाद, साम्यवाद और धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाला आपका पसंदीदा नेता असली है या नकली, सच्चा है या झूंठा. जयहिंद, जय माँ भारती

 

(लेखक अश्विनी उपाध्याय भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं)

 

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