विभीषण के अलावा मंदोदरी भी जानती थी रावण की मौत का राज!, दिलचस्प है ये कहानी

अध्यात्म: रामायण जैसी पौराणिक कथा तो बचपन में हर किसी ने सुनी और देखी होगी. हमारे घर के बड़े-बुजुर्ग हमें इनकी कथा सुनकर मोटिवेशन के साथ प्रेरणा भी देते हैं. इस कथा के अनुसार हम सिर्फ यही जानते हैं कि रावण की मृत्यु की वजह उसका भाई विभीषण था. विभीषण ने ही श्री राम को अपने भाई रावण के मृत्यु का रहस्य बताया था. परन्तु वास्तविकता में तो यह बहुत कम लोग ही जानते है की यह कहानी की आधी हकीकत है. क्योकि कहानी का आधा भाग रावण की पत्नी मंदोदरी से जुडा है. आज हम आपको मंदोदरी से जुडा रहस्य बताने जा रहे है. रावण सहित उसके दो भाई कुम्भकर्ण तथा विभीषण ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या करी तथा उन्हें प्रसन्न करा. जब ब्रह्मा जी तीनो भाइयो की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए तो रावण ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा.


इस विषय में ब्रह्मा जी ने रावण के इस वरदान पर असमर्थता जताई परन्तु उन्होंने रावण को एक तीर दिया व कहा की यही तीर तुम्हारे मृत्यु का कारण बनेगा. रावण ने ब्रह्मा जी से वह तीर ले लिया तथा उसे अपने महल में ले जाकर सिहासन के पास दीवार में चुनवा दिया. जब भगवान श्री राम तथा रावण का युद्ध चल रहा था तब भगवान श्री राम द्वारा चलाया गया हर बाण रावण के ऊपर बेअसर हो रहा था. रावण का सर जैसे ही श्री राम अपने तीरो से काटते तो रावण का एक नया सर स्वयं ही उतपन्न हो जाता.


वहीँ जब भगवान श्री राम को लगने लगा की रावण का अब वध करना असम्भव है तब ठीक उसी समय विभीषण भगवान श्री राम के पास आये था उन्होंने रावण की मृत्यु का राज बताते हुए राम से कहा की प्रभु रावण के नाभि में अमृत की एक कुटिया है जिसे ब्रह्म देव के विशेष तीर द्वारा ही फोड़ा जा सकता है. ऐसे में विभीषण ने राम को बताया की उस विशेष तीर के द्वारा ही रावण का वध किया जा सकता है अन्यथा कोई भी अस्त्र उसका वध नहीं कर सकता है. तथा यह राज सिर्फ मंदोदरी की पत्नी को ही पता था. बस फिर क्या था हनुमान जी ने एक ज्योतिषाचार्य का रूप धारण किया था. लंका में जाकर वहां एक स्थान से जाकर दूसरे स्थान में घूमने लगे तथा वहां जाकर लोगो का भविष्य बताने लगे. कुछ ही समय में हनुमान रूपी ज्योतिष की खबर पुरे लंका में फ़ैल गयी.


उस ज्योतिष की खबर रावण की पत्नी मंदोदरी तक पहुंची तथा मंदोदरी ने उनकी विशेषता जान उत्सुकतावश उन्हें अपने महल में बुलवा लिया. हनुमान रूपी ज्योतिष ने मंदोदरी को रावण के संबंध में कुछ ऐसी बात कही जिसे सुन मंदोदरी आश्चर्यचकित हो गई. बातो ही बातो में हनुमान जी मंदोदरी को रावण के संबंध उसे ब्र्ह्मा जी से वरदान के रूप में प्राप्त तीर के बारे में बतलाया. साथ ही साथ हनुमान जी ने यह भी जाहिर करने की कोशिश की कि जहां भी वो बाण पड़ा है, वह सुरक्षित नहीं है.


हनुमान जी चाहते थे कि मंदोदरी उन्हें किसी भी तरह उस बाण का स्थान बता दे. मंदोदरी पहले तो ज्योतिषाचार्य को आश्वस्त करने की कोशिश करती रही कि वो बाण सुरक्षित है लेकिन हनुमान जी की वाकपटुता की वजह से मंदोदरी बोल ही पड़ी कि वह बाण रावण के सिंहासन के सबसे नजदीक स्थित स्तंभ के भीतर चुनवाया गया है. यह सुनते ही हनुमान जी ने अपना असल स्वरूप धारण कर लिया और जल्द ही वह बाण लेकर श्रीराम को के पास पहुंच गए. राम ने उसी बाण से फिर रावण की नाभि पर वार किया. इस तरह रावण का अंत हुआ.


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