स्मारक घोटाले में मायावती की बढ़ी मुश्किलें, HC ने तलब की विजिलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट

लखनऊ: बसपा शासनकाल में हुए बहुचर्चित स्मारक घोटाला मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से विजिलेन्स जांच की स्टेटस रिपोर्ट तलब की है. हाईकोर्ट ने कहा कि घोटाले का कोई दोषी बचना नहीं चाहिए. मामले की अगली सुनवाई कोर्ट ने 27 सितंबर को तय की है. बता दें कि जांच को लेकर याची शशिकांत उर्फ भावेश पाण्डेय ने याचिका दाखिल की है. चीफ जस्टिस डीबी भोसले और जस्टिस यशवंत वर्मा की खंडपीठ ये सुनवाई कर रही है.

 

उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मायावती सरकार ने लखनऊ के साथ नोएडा में भी दलित महापुरुषों के नाम पर पांच स्मारक पार्क बनाने के लिए लगभग 4,300 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे. इसमें से लगभग 4200 करोड़ रुपये खर्च भी हुए. लोकायुक्त ने अपनी जांच में अनुमान लगाया था कि इसमें से करीब एक तिहाई रकम भ्रष्टाचार में चली गई.

 

आरोप है स्मारकों के निर्माण कार्य में इस्तेमाल किए गए गुलाबी पत्थरों की सप्लाई मिर्जापुर से की गई , जबकि इनकी आपूर्ति राजस्थान से दिखाकर ढुलाई के नाम पर भी पैसा लिया गया था. लोकायुक्त ने जांच में जिक्र किया कि पत्थरों को तराशने के लिए लखनऊ में मशीनें मंगाई गईं थी, इसके बावजूद इन पत्थरों के तराशने में हुए खर्च में कोई कमी नहीं आई. आरोप यह  भी है कि भुगतान तय रकम से दस गुने दाम पर ही किया जाता रहा.

 

अखिलेश यादव सरकार ने जनवरी 2017 में गोमतीनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है. इस घोटाले की जांच सतर्कता विभाग कर रहा है. स्मारक घोटाले में आरोप है कि राजस्थान से पत्थर लदे 15 ट्रक रवाना होने के बाद मौके पर सात ट्रक ही पहुंचे. इस तरह आठ ट्रक पत्थर हड़पे गए. इसको लेकर लोकायुक्त ने राजकीय निर्माण विभाग के अधिकारियों पर कार्रवाई की संस्तुति की है.

 

इसमें बसपा सुप्रीमो मायावती, पूर्व मंत्री नसीरुद्दीन सिद्दीकी, पूर्व मंत्री बाबू राम कुशवाहा व 12 तत्कालीन विधायक इस मामले में आरोपी हैं. यही नहीं इस मामले में 100 से ज्यादा इंजीनियर और अन्य अधिकारी भी आरोपी बनाए गए हैं. इस केस में 2014 में सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी. मामले में निर्माण निगम, पीडब्ल्यूडी, नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी के इंजीनियर और अधिकारी आरोपी हैं.

 

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