ANI के मुताबिक, सूत्रों का कहना है कि भारत और चीन के बीच कोर कमांडर के लेवल पर हुई बातचीत के बाद दोनों देशों के सैनिकों के झड़प वाली जगह से पीछे हटने पर सहमति बनी. ऐसा होने के बाद हिंसक झड़प वाली जगह को बफर ज़ोन बना दिया गया है, ताकि आगे कोई हिंसक घटना न हो. भारतीय सेना पूरी तरह से सतर्क है और जब तक वह इस बात की पुष्टि नहीं कर लेती है, तब तक चीन की बात पर यकीन नहीं किया जाएगा.
भारत की कूटनीतिक कवायद
भारत और चीन के बीच जब सीमा विवाद शुरू हुआ तो नई दिल्ली ने इसका समाधान बातचीत के जरिए करने का प्रस्ताव दिया. इसके बाद भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर पर बैठकें हुई, लेकिन ये बैठकें बेनतीजा निकलीं. इसके बाद भी अतंरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत और चीन को वार्ता के जरिए इस समस्या का समाधान करने की सलाह दी. भारत ने भी अपनी कूटनीति का प्रयोग करते हुए उन देशों को अपने साथ लिया, जिनसे चीन का तनाव है. चीन पर पहले से ही कोरोना वायरस को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव था. भारत को सीमा विवाद पर अमेरिका, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का साथ मिला. इन देशों ने चीन के विस्तारवादी रवैये का खुलकर विरोध किया और भारत को समर्थन दिया.
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक लेह के दौरे पर पहुंचे और उन्होंने वहां सेना के जवानों से मुलाकात कर उनका मनोबल बढ़ाया. पीएम मोदी ने थलसेना, वायुसेना और आईटीबीपी के जवानों से मुलाकात की. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने मौजूदा स्थिति की पूरी जानकारी दी. पीएम मोदी ने भारतीय जवानों को संबोधित किया और चीन को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि लेह, लद्दाख से लेकर करगिल और सियाचिन तक, यहां की बर्फीली चोटियों से लेकर गलवां घाटी की ठंडे पानी की धारा तक. हर चोटी, हर पहाड़, हर जर्रा-जर्रा, हर कंकड़, पत्थर भारतीय सैनिकों के पराक्रम की गवाही दे रहा है. मोदी ने आगे कहा कि विस्तारवाद की जिद किसी पर सवार हो जाती है तो उसने हमेशा विश्व शांति के सामने खतरा पैदा किया है और यह न भूलें इतिहास गवाह है. ऐसी ताकतें मिट गई हैं या मुड़ने को मजबूर हो गई है.
इससे पहले, सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे भी लद्दाख पहुंचे थे और हालात का जायजा लिया था. वह सबसे पहले लेह स्थित सैनिक अस्पताल पहुंचे जहां घायल जवानों का इलाज चल रहा था. उन्होंने फॉरवर्ड स्थानों का दौरा किया और कमांडरों के साथ हालात पर चर्चा की. वहीं, सीमा तनाव के बीच वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने भी लद्दाख का दौरा किया था. उन्होंने फॉरवर्ड बेस पहुंच कर अधिकारियों से स्थिति पर समीक्षा की. प्रधानमंत्री और सेना प्रमुखों का दौरा चीन के लिए एक सबक था कि भारत किसी भी परिस्थिति में पीछे नहीं हटेगा और उसकी किसी भी चाल का मुंहतोड़ जवाब देगा. विदेश मंत्री एस जयशंकर भी लगातार सीमा विवाद को लेकर रूस और अमेरिका के साथ चर्चा करते रहे.
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और जयशंकर के बीच सीमा तनाव को लेकर कई बार चर्चा हुई. इसमें अमेरिका ने भारत के प्रति समर्थन जताया. इसके अलावा जयशंकर ने अपने रूसी समकक्ष से भी इस संबंध पर वार्ता की. रूस ने आश्वासन दिया था कि वह इस मुद्दे पर भारत के साथ खड़ा है. रूस ने कहा कि वह भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है.
इंटरनेशनल प्रेशर
चीन में पिछले साल दिसंबर महीने में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया. इसके बाद देखते-देखते यह वायरस पूरी दुनिया में फैल गया. अमेरिका समेत पूरा यूरोप इस वायरस से बुरी तरह प्रभावित हुआ है. कोरोना वायरस को लेकर चीन पर वैश्विक बिरादरी पहले से ही नाराज थी, ऊपर से भारत के साथ तनाव ने वैश्विक बिरादरी को चीन के खिलाफ एकजुट कर दिया. अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो लगातार भारत का समर्थन करते हुए सीमा विवाद को लेकर चीन पर हमला बोलते रहे. पोम्पियो ने झड़प में शहीद हुए जवानों को लेकर कहा कि चीन के साथ हाल में हिंसक झड़प में सैनिकों के मारे जाने पर भारत के लोगों के प्रति हम गहरी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं. इस दुख की घड़ी में हम उन जवानों, उनके परिवार, उनके चाहने वालों और भारत के लोगों के साथ हैं.
इसके अलावा वह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को निशाने पर लेते हुए कह चुके थे कि ये दुनिया के लिए खतरा है. पोम्पियो ने कहा कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों से अमेरिका समेत कई देशों के नागरिकों की सुरक्षा को खतरा है. उन्होंने कहा, दशकों में ट्रंप प्रशासन पहला है जिसने इस खतरे को गंभीरता से लिया है. इसके अलावा अमेरिका ने चीन को चुनौती देते हुए यूरोप से अपने सैनिकों को कम करके एशिया में तैनात किया, इससे भी चीन पर दबाव बढ़ा. अमेरिका के विदेश मंत्री ने कहा, मैंने इस महीने यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों के साथ बातचीत की, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी शांतिपूर्ण पड़ोसियों को लगातार धमका रही है, वहीं भारत के साथ यह टकराव की स्थिति में है.
उन्होंने चीन को खतरा बताते हुए कहा, कुछ जगहों पर अमेरिकी संसाधन कम होंगे, क्योंकि उनकी तैनाती उन जगहों पर होगी जहां चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी आक्रामक सैन्य कार्रवाई को बढ़ा दिया है. हम अपनी सेना को भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, दक्षिण चीन सागर के उन जगहों पर तैनात करने जा रहे हैं, जहां चीन की सेना से सबसे ज्यादा खतरा है. हम यह तय करेंगे कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का मुकाबला करने के लिए हम सेना को सही जगह पूरी ताकत के साथ तैनात करें.
गलवां नदी में बढ़ा जलस्तर
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने पूर्वी लद्दाख की गलवां घाटी में गतिरोध के प्वाइंट पर पांच किलोमीटर की दूरी पर बड़ी संख्या में सैनिकों को एकत्र किया हुआ था. लेकिन बर्फ पिघलने की वजह से गलवां नदी का जलस्तर बढ़ने लगा, जिस कारण चीनी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा. एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर ने बताया था कि बर्फ से ढकी गलवां नदी जो अक्साई चीन क्षेत्र से निकलती है उसका जल स्तर तापमान में बढ़ोतरी के कारण बढ़ रहा है. तीव्र गति से बर्फ पिघलने की वजह से नदी तट पर कोई भी स्थिति खतरनाक हो सकती है. उन्होंने कहा था कि उपग्रह और ड्रोन तस्वीरों से पता चलता है कि नदी किनारे स्थित चीनी टेंट बाढ़ की वजह से डूब सकते हैं.
गलवान घाटी कहां है
गलवान घाटी पूर्वी लद्दाख और अक्साई चिन के बीच भारत और चीन बॉर्डर के पास है. यहां पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) अक्साई चिन को भारत से अलग करती है. अक्साई चिन को विवादित क्षेत्र इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस पर भारत और चीन दोनों ही अपना दावा करते हैं. गलवान घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली है. गलवान नदी के एक तरफ भारत की ओर गलवान है, वहीं तो दूसरी तरफ चीन है.
गलवान घाटी नाम कैसे पड़ा?
गलवान नदी काराकोरम की पहाड़ियों की श्रेणियों से निकलती है और चीन से होते हुए लद्दाख के श्योक नदी में मिल जाती है. गलवानी नदी करीब 80 किलोमीटर लंबी है और सैन्य दृष्टि से इसका महत्व बहुत ज्यादा है. 2001 में ‘सर्वेंट्स औफ साहिबस’ किताब में अंग्रेजों के एक खास नौकर का जिक्र मिलता है. जिसके मुताबिक गलवान इलाके की खोज करनेवाले गुलाम रसूल गलवान थे. जिनके नाम पर लद्दाख के उत्तर पूर्व इलाके का नाम पड़ा.
भारत के लिए क्यों अहम है गलवान घाटी?
JNU के पूर्व प्रोफेसर और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार एसडी मुनि बताते हैं कि गलवान घाटी भारत के लिए सामरिक रूप से काफी अहम है. क्योंकि ये पाकिस्तान, चीन और लद्दाख की सीमा के साथ जुड़ा हुआ है. 1962 की जंग के दौरान भी गलवान घाटी जंग का प्रमुख केंद्र रहा था.
LAC पर 15 जून को हुई थी झड़प
बता दें कि लद्दाख की गलवान घाटी में 15-16 जून की दरम्यानी रात दोनों देशों के बीच की ये तनातनी हिंसक झड़प में बदल गई जिसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए. चीन की तरफ से भी 37 से ज्यादा सैनिक हताहत हुए थे, लेकिन चीन ने आधिकारिक तौर पर अपने सैनिकों की संख्या नहीं बताई है. तनातनी शुरू होने के बाद से ही दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर की कई वार्ताएं भी हुईं. जिसके बाद दोनों देश अपनी सेनाओं को पीछे करने को राजी हो गए. सीमा पर ये 45 साल में अब तक हिंसा की सबसे बड़ी घटना रही.
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