अब तो सरहद पर जान गंवाने वाले फौजी का परिवार भी ‘पेंशन’ से हो जाता है वंचित

पुरानी पेंशन बहाली को लेकर सरकारी कर्मचारियों का विरोध जारी है। ऐसे में रांची के एयरपोर्ट पर मौजूद सीआरपीएफ के अधिकारियों का गुस्सा सरकार की नीतियों के विरुद्ध था। साल 2004 के बाद की नियुक्तियों में बंद हो चुकी पुरानी पेंशन व्यवस्था से सभी आहत हैं। उनका कहना है कि उसके बाद जो भर्तियां हुईं उनकी नौकरी और निजी कंपनियों की नौकरी में कोई अंतर नहीं रह गया है। अब तो सरहद पर जान गवाने वाले जवान का परिवार भी पेंशन से वंचित हो जाता है।


इस नई व्यवस्था का दंश यह है कि अब युवा भी सैनिक बनने से कतरा ने लगे हैं क्योंकि उनके साथ अगर कोई हादसा हो गया तो उनके परिवार को बहुत कम पेंशन मिलता है। जिससे उनके परिवार का गुजारा भी मुश्किल है। सीआरपीएफ के अधिकारियों ने पेंशन की पुरानी व्यवस्था की वकालत की। उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन व्यवस्था सम्मानजनक होती थी, समय समय पर महंगाई भत्ते मिलते थे, आज पेंशन की जगह पीएफ काट रहे हैं, जिसमें उक्त मद में आधी राशि कर्मी का आधी राशि सरकार दे रही है।


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सीआरपीएफ के अधिकारियों ने कहा कि सरकार किसी भी शहीद को श्रद्धांजलि देने के चार दिन के बाद भूल ही जाती है। जबकि शहादत का असली दंश तो उस शहीद का परिवार झेलता है, जिस पर सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।


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40 जवानों में 20 के परिवार को मिलेंगे चंद रुपए

सीआरपीएफ के अधिकारियों ने बताया कि पुलवामा में शहीद हुए 40 जवानों में करीब 20 जवान ऐसे थे, जो 2004 के पूर्व के नियुक्त थे। शहीद विजय सोरेंग भी 2004 के पहले के नियुक्त थे। उनके परिवार को तो पुरानी पेंशन व्यवस्था का लाभ मिलेगा लेकिन 20 ऐसे भी जवान हैं, जिनके परिवार को पेंशन मद में चंद रुपए मिलेंगे। ऐसी स्थिति में देश की रक्षा में जान गवाने वाले जवानों का मनोबल गिरेगा, सरकार इसका ध्यान रखें।


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