मायावती के प्रबुद्ध सम्मेलन पर बीजेपी का निशाना, ब्रजेश पाठक बोले- केवल चुनाव के समय ही घर से बाहर निकलता है विपक्ष

बसपा चीफ मायावती (Mayawati) ने मंगलवार को प्रबुद्ध सम्मेलन (Prabudh Sammelan) में बीजेपी पर जमकर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार में आज हर वर्ग परेशान है. इतना ही नहीं बीजेपी राज में ब्राह्मण उत्पीड़न का आरोप भी मायावती ने लगाया है. उन्होंंने दावा किया कि ब्राह्मण समाज बसपा के साथ है, 2022 में प्रबुद्ध वर्ग अन्य वर्गों के साथ मिलकर बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने में सहयोग करेंगे. बसपा के प्रबुद्ध सम्मेलन पर योगी सरकार में विधि एवं न्याय मंत्री ब्रजेश पाठक (Brajesh Pathak) ने निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि विपक्ष केवल चुनाव के समय ही घर से बाहर निकलता है.


ब्रजेश पाठक ने कहा कि विपक्षी दलों को केवल चुनाव के समय ही जनता और ब्राह्मण याद जाते हैं. इन्होंने अपनी सरकारों में किसी भी समाज के लिए कुछ नहीं किया. सत्ता में रहते खुद तो खूब पैसा कमाया वहीं आम जनता को ठेंगा दिखाया. पाठक ने कहा कि पिछले साढ़े चार सालों में विपक्षी दलों के लोग घर के बाहर नहीं निकले, किसी की कोई सुध नहीं ली वहीं अब जब चुनाव सिर पर है तब सम्मेलन किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि कि सावन भादो की बारिश की तरह विपक्ष आखिर में जोर लगाता है. बीएसपी के कार्यक्रम में टीकधारी छद्म ब्राह्मण जुटे हैं. 


बता दें कि 2007 में मायावती ने दलित ब्राह्मण गठजोड़ का फार्मूला आजमाया था, जिसका परिणाम सत्ता के रूप के सामने आया था. बसपा ने इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया था। उस चुनाव में मायावती ने ब्राह्मण वोटबैंक को साधा था। 86 ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिसमें से 41 को जीत मिली थी. हालांकि इस बार अन्य दल भी इस सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाकर सत्ता तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. अंदरूनी कलह झेल रही कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने जून में भाजपा का दामन थाम लिया था. उनके भाजपा में शामिल होने को पार्टी के मिशन यूपी 2022 की शुरुआत के तौर पर देखा गया था. जितिन प्रसाद ब्राह्मण नेता हैं और उनको पाले में लाकर भाजपा ब्राह्मणों में संदेश देना चाहती है कि पार्टी उनके साथ है.


क्यों अहम है ब्राह्मण वोटर ?

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी 13 फीसदी के करीब मानी जाती है. 1990 तक सूबे की सत्ता पर ब्राह्मणों का राज हुआ करता था लेकिन मंडल की राजनीति के बाद समीकरण तेजी से बदलने लगे और ब्राह्मण सिर्फ वोटबैंक तक सीमित रह गया लेकिन पूर्वांचल से लेकर अवध और रुहेलखंड तक आज भी कई सीटों पर इस फैक्टर का प्रभाव काम करता है. हार और जीत ब्राह्मणों के मिजाज से तय होती है. ऐसे में बसपा से लेकर बीजेपी तक, इस वोटबैंक को साधने की कवायद में जुटे हुए हैं.


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