अब कोई ऐसे ही नहीं लगवा पाएगा SC-ST एक्ट, हाई कोर्ट ने मुकदमा दर्ज कराने को लेकर रखी ये शर्त

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने मंगलवार को एससी/एसटी ऐक्ट (SC-ST Act) को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी ऐक्ट के तहत मुकदमा चलाने के लिए यह जरूरी है कि जिसके खिलाफ केस चलाया जा रहा है, उसको यह जानकारी रही हो कि पीड़ित व्यक्ति एससी/एसटी जाति से है. साथ ही आरोपी ने यह जानकर अपराध किया हो कि पीड़ित एससी/एसटी जाति से है. अगर आरोपी को अपराध के वक्त नहीं पता है कि वह जिसके साथ अपराध कर रहा है वह अनुसूचित जाति का है तो इस परिस्थिति में उसके खिलाफ एससी/एसटी ऐक्ट के तहत केस नहीं चलेगा.


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति की बच्ची से हुए दुष्कर्म के मामले में आरोपी को राहत देते हुए ये फैसला सुनाया. कोर्ट ने जिला कोर्ट की ओर से सुनाई गई आरोपी की उम्रकैद की सजा को भी घटाकर 10 वर्ष कर दिया. अलीगढ़ के शमशाद की आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रहे जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस एसएस शमशेरी की पीठ ने ये आदेश दिया है.


दुष्कर्म आरोपी को मिली राहत


कोर्ट ने अनुसूचित जाति की बच्ची से हुए दुष्कर्म के मामले में आरोपी को एससी-एसटी एक्ट के उपबंधों के तहत मिली सजा से इस आधार पर बरी कर दिया और सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को घटाकर 10 वर्ष कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति एसएस शमशेरी की पीठ ने अलीगढ के शमशाद की अपील पर दिया है.


अभियुक्त शमशाद के खिलाफ 9 वर्षीय पीड़िता की मां ने 15 अप्रैल 2009 में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि अभियुक्त ने पीड़िता को बहला फुसलाकर उसके साथ दुष्कर्म किया. पुलिस ने दुष्कर्म के साथ ही एससी-एसटी एक्ट की धाराओं में भी मुकदमा दर्ज कर चार्जशीट पेश की. सेशन कोर्ट ने पीड़िता के बयान और अन्य साक्ष्यों को देखते हुए शमशाद को उम्रकैद तथा 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई. बहस की गयी कि अभियुक्त को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पीड़िता एससी है इसलिए एससीएसटी एक्ट के प्रावधान लागू नहीं होंगे.


कोर्ट ने कहा कि अभियोजन यह प्रमाणित करने में असफल रहा है कि अभियुक्त ने पीड़िता के साथ इसलिए अपराध किया कि वह एससी है. अभियुक्त पीड़िता को पहले से नहीं जानता था इसलिए यहां एससीएसटी एक्ट के प्रावधान लागू नहीं होंगे. सजा पर बहस के दौरान बचाव पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों की नजीरें पेश कर सजा कम करने की मांग की. कोर्ट ने कहा कि घटना के समय अभियुक्त लगभग 20 साल का था. वह 12 वर्ष के करीब जेल में बिता चुका है. इस मामले में दस वर्ष की सजा न्याय की मंशा को पूरी करती है. कोर्ट ने जेल में बिताई गई अवधि को पर्याप्त सजा मानते हुए अभियुक्त को रिहा करने का आदेश दिया है.


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