पुरानी पेंशन मामले पर कोर्ट ने पूछा- नई पेंशन स्कीम अगर अच्छी है तो इसे सांसदों और विधायकों पर लागू क्यों नहीं करते

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुरानी पेंशन स्कीम बहाली की मांग को लेकर राज्य कर्मचारियों की हड़ताल पर राज्य सरकार के रवैए की तीखी आलोचना की है. कोर्ट ने पूछा कि बिना कर्मचारियों की सहमति के उनका अंशदान शेयर बाजार में सरकार कैसे लगा सकती है? कर्मचारी इससे असंतुष्ट हैं तो सरकार उनसे काम कैसे ले सकती है?


कोर्ट ने बेहद तल्ख़ लहजे में पूछा की नई पेंशन स्कीम अच्छी है तो इसे सांसदों और विधायकों पर लागू क्यों नहीं किया जाता है?


यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने राजकीय मुद्रणालय कर्मियों की हड़ताल से काजलिस्ट न छपने के कारण न्याय प्रशासन को पंगु बनाने पर कायम जनहित याचिका पर दिया है.


कोर्ट ने कहा कि सरकार लूट खसोट वाली करोड़ों की योजनाएं लागू करने में नहीं हिचकती है और 30 से 35 साल की सेवा के बाद सरकारी कर्मचारियों को पेंशन नहीं देना चाहती. उन्होंने पूछा कि सांसदों विधायकों को बिना नौकरी के पेंशन दे रहे हैं तो कर्मचारियों को क्यों नहीं दे रहे हैं.


दरअसल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि पुरानी पेंशन की मांग मानने में क्या कठिनाई है. यही यह नई स्कीम इतनी अच्छी है तो इसे अन्य लोगों पर क्यों नहीं लागू करते? कर्मचारियों का अंशदान शेयर में लगाने के बाद पैसा डूबा तो कौन जिम्मेदार होगा?. कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों की हड़ताल से सरकार का नहीं बल्कि लोगों का नुकसान होता है. कोर्ट ने पेश कर्मचारी नेताओं को निर्देश दिया कि वे अपनी शिकायत व पेंशन स्कीम की खामियों का 10 दिन में ब्यौरा दें और सरकार इस पर विचार कर 25 फरवरी को हलफनामा दाखिल करे.


कोर्ट में पेश कर्मचारियों के अधिवक्ता टीपी सिंह ने बताया कि हड़ताल खत्म हो गई है. राजकीय मुद्रणालय में काम शुरू हो गया है. सरकार कर्मचारियों की मांगों पर विचार नहीं कर रही है. बता दें कि 2005 से नई पेंशन स्कीम लागू की गई जिस पर कर्मचारियों को गहरी आपत्ति है.


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