छठ पर्व: सूर्यदेव को भोग लगाने के बाद होगा 36 घंटे का निर्जला उपवास, खरना आज

सोशल: पूर्वांचल में मनाया जाने वाला छठ महापर्व पूरे उत्तर प्रदेश और बिहार का बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. नहाय खाय के दूसरे दिन खरना होता है, जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि होती है. खरना इसलिए खास है क्‍योंकि इस दिन व्रतधारी दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को भगवान को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं. आज के दिन भोजन में गुड़ की खीर खाने की परंपरा है. खीर के साथ साथ आग पर बनी आंटे की मोटी रोटी का भी प्रसाद बांटा जाता है.



स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ख्याल-


खरना के पूजा के लिए घर का सबसे शांत कोना चुना जाता है, खरना का खाना मिट्टी के चूल्हे पर बनता है खीर पकाने के लिए साठी के चावल का प्रयोग किया जाता है और स्वच्छता और शुद्धता का काफी ध्यान रखा जाता है. खीर के अलावा मूली, केला, गन्ने के साथ छठी मैया की पूजा की जाती है खरना का खाना मिट्टी के चूल्हे पर बनता है. जिसके लिए सूखी लकड़ी का प्रयोग किया जाता है. घटना के बाद 36 घंटे का व्रत शुरू हो जाएगा जो कि सूर्य के अर्घ देने के बाद ही समाप्त होगा.


क्यों कहा जाता है इसे छठ पूजा-

वैसे तो सिर्फ उगते सूरज को ही अर्घ्य रख दिया जाता है, किंतु इस पर्व में डूबे हुए सूर्य देव की भी आराधना की जाती है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है.



व्रत की विधि-
नहाए खाए के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन भर वृत्ति उपवास कर शाम में रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इस पूजा को ‘खरना’ कहा जाता है. इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रतियां टोकरी में ठेकुआ फल समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी तालाब या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य की अर्पित करने उड़ाता है.


धार्मिक मान्यता-
मनोवांछित फल देने वाले इस पर्व को पुरुष और महिला समान रूप से मनाते हैं परंतु आम तौर पर व्रत करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है. प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस अनुपम महा पर्व को लेकर कई प्रथाएं कथाएं प्रचलित हैं.


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