सावधान! फेस्टिव सीजन में ऑनलाइन शॉपिंग करने की है तैयारी, तो इन बातों को जरूर जान लें

आज कल के जमाने में हर कोई ऑनलाइन शॉपिंग को ही प्रिफरेंस देता है। वहीं अब कोरोना वायरस की वजह से भी लोग भीड़ भाड़ में ना जाकर ऑनलाइन ई कॉमर्स की वेबसाइट्स से शॉपिंग करना पसंद करते हैं। इसीलिए हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं जोकि आपको ऑनलाइन शॉपिंग में सेफ रहने में मदद करता है। अगर आप भी इस सेल में शॉपिंग करने का सोच रहे हैं तो पहले इन शब्दों का सही सही मतलब जान लें, वरना बाद में आप ठगा हुआ महसूस करेंगे।


इन बातों का रखें ध्यान

कैशबैक – कोई भी चीज खरीदने से पहले कैशबैक के नियमों और शर्तों को ध्यान से पढ़ना चाहिए। ऑनलाइन पोर्टलों द्वारा पेश किए जाने वाले कैशबैक आमतौर पर नियमों और शर्तों के साथ आते हैं। कैशबैक कितना है, इसकी जांच होनी चाहिए क्योंकि वे आमतौर पर ऊपरी सीमा के साथ आते हैं। इसके अलावा इसमें न्यूनतम खरीद राशि की शर्त होती है।


कैशबैक कब मिलेगा, इसके बारे में भी आपको पता करना चाहिए। कभी-कभी इसे 3-4 महीनों में वापस किया जाता है। इसके अलावा इस बात पर भी ध्यान दें कि कैशबैक को कहां जमा किया जाएगा, क्या आप उन्हें अपने बैंक खाते या वॉलेट में ले सकेंगे? क्योंकि ज्यादातर कंपनियां अपने ऑनलाइन वॉलेट में कैशबैक देती हैं।


Also read: Shardiya Navratri 2020: नवरात्रि में इन 6 कार्यों को करने से दूर होंगे आपके सभी संकट


नो कोस्ट EMI – बता दें कि फ्लिपकार्ट और अमेजन सेल से सामान लेने पर आपको नो-कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) की सुविधा दी जाएगी लेकिन बिना सोचे समझे नो-कॉस्ट ईएमआई से शॉपिंग करने पर आपको सामान की कीमत से ज्यादा दाम चुकाना पड़ सकता है। नो-कॉस्ट ईएमआई के तहत शॉपिंग करते समय सावधानी जरूरी है। नाम न बताने की शर्त पर एक NBFC के एग्जीक्यूटिव ने बताया कि नो कॉस्ट EMI पर आपको प्रोडक्ट पूरी कीमत पर खरीदना होता है। इस पर भी 15 फीसदी तक ब्याज वसूला जाता है।


नो कोस्ट EMI ज्यादा सामान बेचने के लिए अपनाया जाने वाला नुस्खा है। नो कॉस्ट ईएमआई देखकर किसी भी सामान को खरीदने की जल्दबाजी न करें उसके बारे में अच्छे से पढ़ें। बैंक दिए गए डिस्काउंट को ब्याज के रूप में वापस ले लेता है। नो-कॉस्ट ईएमआई स्कीम आम तौर पर 3 तरीके से काम करती है। पहला तरीका यह कि नो कॉस्ट EMI पर आपको प्रोडक्ट पूरी कीमत पर खरीदना होता है। इसमें कंपनियां ग्राहकों को दिए जाने वाला डिस्काउंट को बैंक को ब्याज के तौर पर देती है। दूसरा तरीका यह कि कंपनी ब्याज की राशि को पहले ही उत्पाद की कीमत में शामिल कर देती है। वहीं तीसरा तरीका होता है कि कंपनी का जब कोई सामान नहीं बिक रहा होता है तो उसे निकालने के लिए भी नो-कॉस्ट ईएमआई का सहारा लेती है।


डिस्काउंट – फेस्टिवल सेल में ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स में कंपनियां 80 फीसदी तक डिस्काउंट देने का दावा कर रही हैं लेकिन ये डिस्काउंट केवल कुछ ही प्रोडक्ट पर रहता है। बाकी उत्पादों पर छूट उतनी अधिक नहीं हो सकती है। आम तौर पर, 70-80 फीसदी की छूट फैशन उत्पादों पर दी जाती है। इसके अलावा कंपनी अपने पुराने स्टॉक को खत्म करने के लिए भी उस पर ज्यादा डिस्काउंट देती है।


( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )