बेटों और बेटियों के समान अधिकार को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक और बड़ा निर्णय लिया है. इस महत्वपूर्ण फैसले में कोर्ट ने कहा है कि बेटों की तरह बेटियां भी परिवार की ही सदस्य हैं. चाहे वे अविवाहित हों या शादीशुदा. हाईकोर्ट ने ‘मृतक आश्रित सेवा नियमावली’ में ‘अविवाहित’ शब्द को लिंग के भेदभाव करने वाला शब्द बताया है. इसीलिए कोर्ट ने इस शब्द को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. याची मंजुल श्रीवास्तव की याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस जेजे मुनीर ने यह आदेश दिया है.
दरअसल, मंजुल श्रीवास्तव ने प्रयागराज जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी के 25 जून, 2020 के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें अधिकारी ने प्रदेश सरकार के 1974 के नियमों के तहत अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के उसके दावे को इसलिए खारिज कर दिया था क्योंकि उसका विवाह हो चुका है. अदालत ने कहा कि यदि एक शादीशुदा बेटा अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए पात्र है तो बेटी की उम्मीदवारी को उसके विवाहित होने के आधार पर खारिज करना भेदभावपूर्ण है.
अदालत ने कहा कि इससे पूर्व, विमला श्रीवास्तव के मामले में यह व्यवस्था दी गई थी कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए नियमों में ‘परिवार’ की परिभाषा से शादीशुदा बेटियों को बाहर रखना असंवैधानिक है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है. इसलिए, भले ही राज्य सरकार ने आज की तारीख तक इस नियम में संशोधन नहीं किया है, तो भी इस नियम को एक विवाहित बेटी के दावे पर निर्णय के लिए विद्यमान प्रावधान नहीं समझा जा सकता.
अदालत ने कहा कि बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा दावे को खारिज करने का आदेश साफ तौर पर अवैध है. अदालत ने अधिकारी को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के याचिकाकर्ता के दावे पर कानून के मुताबिक और उसकी वैवाहिक स्थिति का संदर्भ लिए बगैर विचार करने और दो महीने के भीतर निर्णय करने का निर्देश दिया.
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