मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस: कोर्ट ने स्वीकार की ‘श्रीकृष्ण विराजमान’ की याचिका, सुन्नी वक्फ बोर्ड समेत सभी पक्षों को नोटिस

भगवान श्रीकृष्ण विराजमान (Shri Krishna Virajman) की ओर 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक मामले में मथुरा की अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली है. जिला जज मथुरा की अदालत ने सुन्नी वक्फ बोर्ड समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. जिन पक्षों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, ईदगाह मस्जिद  ट्रस्ट शामिल हैं. वहीं इस मामले में अब अगली सुनवाी 18 नवंबर को होगी. याचिका में श्रीकृष्ण जन्मस्थान (Shri Krishna Janmbhoomi) के समीप बने ईदगाह को हटाने की मांग की गई है.


जिला जज मथुरा की कोर्ट ने श्रीकृष्ण विराजमान समेत 8 याचिकाकर्ताओं की अर्जी को सुनवाई के लिए स्वीकार किया है. साथ ही जिला जज मथुरा की कोर्ट ने पक्षकारों को नोटिस जारी किया. जिन पक्षों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, ईदगाह मस्जिद  ट्रस्ट शामिल हैं. दरअसल, श्रीकृष्ण विराजमान और शाही मस्जिद ईदगाह को हटाने के लिए रंजना अग्निहोत्री सहित 6 वकीलों की ओर से दायर की गई याचिका को अपर जिला जज/एफटीसी द्वितीय छाया शर्मा ने खारिज कर दिया था. इसी आदेश को भक्तों की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, हरी शंकर जैन, करूणेश शुक्ला औऱ पंकज कुमार वर्मा ने जिलाजज साधना रानी ठाकुर की अदालत में चुनौती दी थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया है.


दरअसल, 12 अक्तूबर 1968 को कटरा केशव देव मंदिर की जमीन का समझौता श्रीकृष्ण जन्मस्थान सोसायटी द्वारा किया गया था. इस समझौते के तहत 20 जुलाई 1973 को यह जमीन डिक्री की गई. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से इस भूमि की डिक्री को खारिज करने की मांग की है. बता दें कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तरह ही मथुरा में भगवान कृष्ण और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने बनी मस्जिदों को लेकर भी विवाद है.


महमदू गजनवी ने तोड़ा था मंदिर

जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, वहां पहले वह कारागार हुआ करता था. यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था. इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी ‘वसु’ नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था. इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था. इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था. बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया.


मुगलों ने जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह बनवाई

यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला. ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जूदेव बुंदेला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया. इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था.


लेकिन इसे भी मुगल शासकों ने सन् 1660 में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी, जो कि आज भी विद्यमान है. 1669 में इस ईदगाह का निर्माण कार्य पूरा हुआ. अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है, क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर.


हाईकोर्ट ने हिंदू राजा को जमीन के कानूनी अधिकार सौंपे

1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी के हिंदू राजा को जमीन के कानूनी अधिकार सौंप दिए थे जिस पर मस्जिद खड़ी थी. 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा. इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया था. कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं.


इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया. इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें (मुस्लिम पक्ष को) उसके बदले पास की जगह दे दी गई. जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है. याचिका में कहा गया कि ऐसे में सेवा संघ द्वारा किया गया समझौता गलत है.


पहले कब पहुंचा था कोर्ट में मामला?

इससे पहले मथुरा के सिविल जज की अदालत में एक और वाद दाखिल हुआ था जिसे श्रीकृष्‍ण जन्‍म सेवा संस्‍थान और ट्रस्‍ट के बीच समझौते के आधार पर बंद कर दिया गया. 20 जुलाई 1973 को इस संबंध में कोर्ट ने एक निर्णय दिया था. अभी के वाद में अदालत के उस फैसले को रद्द करने की मांग की गई है. इसके साथ ही यह भी मांग की गई है कि विवादित स्‍थल को बाल श्रीकृष्‍ण का जन्‍मस्‍थान घोषित किया जाए.


मंदिर निर्माण में यह एक्ट बना रूकावट

हालांकि इस केस में Place of worship Act 1991 की रुकावट है. इस ऐक्ट के मुताबिक, आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था, उसी का रहेगा. इस ऐक्ट के तहत सिर्फ रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को छूट दी गई थी. बता दें कि हाल ही में शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीन रिजवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इसी वर्शिप एक्ट को खत्म करने की मांग की है. रिजवी ने पीएम को उन 9 मंदिरों की सूची भी सौंपी जिन्हें तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गई है.


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