करीब सत्तर के दशक से ही देश में बाराबंकी जिला अफीम की खेती का सबसे बड़ा हब बनकर उभरा था. यहां के कई गांवों में किसान अफीम की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाते थे. इन्हीं में से एक गांव ऐसा था, जो अफीम की तस्करी और मारफीन बनाने के लिए कुख्यात रहा.
इस गांव का नाम है टिकरा, कहते हैं दशक भर पहले तक यहां घर-घर अफीम से मारफीन बनाने का काम होता था. टिकरा का यही अतीत आज भी यहां रह रहे लोगों का साथ नहीं छोड़ रहा. टिकरा गांव बाराबंकी जिले के जैदपुर थाना क्षेत्र में आता है.
इसी सब के चलते टिकरा का नाम दुनिया भर में जाना जाने लगा. हालांकि अब कुछ ही लोग इस धंधे से जुड़े हैं और टिकरा के ज्यादातर लोगों की रोजी-रोटी का साधन बदल गया है, लेकिन गांव की पुरानी पहचान से यहां के बुजुर्ग और नौजवान आज भी शर्मसार होते रहते हैं.
उस समय तस्करी के जरिए बने रसूख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, जिले के थानों में तैनाती बस टिकरा गांव के लोग अपने हिसाब से करवाते थे. लेकिन आज स्थिति बिल्कुल उलट है. उस दौर में यहां रहने वाले लोगों के ऊपर रसूखदार और सफेदपोशों का हाथ रहता था. जैसे-जैसे अफीम तस्करों में कमी आई, यहां के लोगों का रसूख मिट्टी में मिलता चला गया. लेकिन गांव पर लगा वो दाग आज भी यहां के लोगों की जिंदगी में किसी अभिशाप से कम नहीं है. उसी पुरानी पहचान के चलते अक्सर पुलिस वाले यहां आते हैं और गांव के लोगों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं.
वहीं गांव वालों के आरोपों पर बाराबंकी के पुलिस अक्षीधक वीपी श्रीवास्तव का कहना है कि पुलिस का प्रयास रहता है कि तस्करी से जुड़ी हर सूचना पर तत्परता से काम किया जाए. इसलिए मुखबिर की सूचना पर पुलिस अक्सर दबिश देती रहती है. एसपी का कहना है कि वह फिर भी गांव वालों की शिकायत की जांच करवाएंगे और अगर उनके आरोप सही हैं तो वह सख्त कार्रवाई करेंगे.
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