एक राजनीतिज्ञ होने के साथ साथ अटल बिहारी वाजपेयी एक ‘कवि’ भी रहे और कविताएं उनके हृदय के करीब रहीं. प्रधानमंत्री बन जाने के बाद कविता गोष्ठियों या कवि सम्मेलनों में जाना उनके लिए संभव नहीं था, लेकिन कविता से उनका प्रेम ही है जो साल 2002 में ‘संवेदना’ नाम की एलबम के रुप में सामने आया.
अटल बिहारी वाजपेयी एक कमाल के वक्ता रहे हैं और उनकी भाषा शैली में कविता इस कदर रची बसी थी की वो सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर लेते. इसी कविता सौंदर्य को सहेजने का काम दिंवगत ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह ने किया. जगजीत ने उनकी कुछ कविताओं को एक एलबम में पिरोया और इस एलबम का सबसे खास गीत ‘क्या खोया क्या पाया’ आज भी आपके कानों को सुकून पहुंचाता है.
https://www.youtube.com/watch?v=1sTeazC0x98
इस एलबम के लिए वाजपेयी जी ने अपनी कविता दी और इसे सुर और स्वर दिए जगजीत सिंह ने. साल 2012 में जगजीत साहब ने ही इस किस्से को साझा किया था कि जब इस एलबम के एक गीत की वीडियो बनाने की बात हुई तो वाजपेयी जी जैसे दिग्गज शख्सियत के साथ किसे खड़ा किया जाए सोचना मुश्किल था. इसके बाद जगजीत जी ने शाहरुख का नाम सुझाया और फिर शाहरुख के बाद यश चोपड़ा और फिर अमिताभ इस एलबम से जुड़ गए.
जीवन से मृत्यु के सफर को कहती इस कविता के शब्दों को जगजीत सिंह ने आवाज़ दी और फिर यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित उस वीडियो में शाहरुख ने बेहद संजीदा अभिनय किया. इस गीत में अमिताभ बच्चन ने भी अपनी आवाज़ दी है और कला के इन दिग्गजों का ये संगम बेमिसाल था.
इस कविता को पढ़ने से पहले खुद शाहरुख ने कहा था कि वो सोच नहीं पा रहे थे कि एक गंभीर कविता पर अभिनय कैसे होगा. लेकिन जब उन्होंने इस कविता को पढ़ा और यश जी और अटल जी से मुलाकात की तो उन्हें समझ आ गया कि अटल जी क्या चाहते हैं ? शाहरुख ने खुद बताया था कि इस गीत में अभिनय से पहले उन्होंने अटल जी से सलाह की थी.
जीवन से मृत्यु की कहानी कहती इस कविता के बोल कुछ ऐसे हैं –
क्या खोया, क्या पाया जग में ?
मिलते और बिछड़ते पग में ?
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्दपि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें
यादों की पोटली टटोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पर तन की अपनी सीमाएं
यद्दपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफी है, अंतिम दस्तक पर
खुद दरवाज़ा खोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें
जन्म मरण का अभिवत फेरा
जीवन बंजारो का डेरा
अब यहां, कल कहां कुछ है ?
कौन जानता किधर सवेरा ?
अँधियारा आकाश असीमित
प्राणों के पंखो को तौलें
अपने ही मन से कुछ बोलें
कवि – अटल बिहारी वाजपेयी
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