एक सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफ़र में अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा ने कई पड़ाव तय किए. बात 1957 की है, दूसरी लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ चार सांसद थे. जब इन सासंदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से कराया गया, तो उन्होंने स्वीकार किया था कि वह ‘भारतीय जन संघ’ नाम की पार्टी के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते. अटल बिहारी वाजपेयी भी उन चार सांसदों में से एक थे. नेहरु-गांधी परिवार से आए देश के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारतीय राजनीतिक इतिहास के उन चुनिंदा नेताओं में शामिल होगा, जिन्होंने सिर्फ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते देश में सरकार बनाई और चलाई.
1957 में जब अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर से पहली बार लोकसभा सदस्य बनकर पहुंचे तो सदन में उनके भाषणों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बेहद प्रभावित किया. विदेश मामलों में वाजपेयी की जबर्दस्त पकड़ के पंडित नेहरू कायल हो गए. उस जमाने में वाजपेयी लोकसभा में सबसे पिछली बेंचों पर बैठते थे लेकिन इसके बावजूद पंडित नेहरू उनके भाषणों को खासा तवज्जो देते थे.
इन स्टेट्समैन नेताओं के रिश्तों से जुड़े कुछ किस्सों का वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग ने अपनी किताब ‘अटल बिहारी वाजपेयी- ए मैन फॉर ऑल सीजन’ में जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि दरअसल एक बार जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आए तो पंडित नेहरू ने वाजपेयी से उनका विशिष्ट अंदाज में परिचय कराते हुए कहा, “इनसे मिलिए. ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं. मेरी हमेशा आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूं.”
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इसी तरह यह भी कहा जाता है कि एक बार पंडित नेहरू ने किसी विदेशी अतिथि से अटल बिहारी वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में कराया. नाग ने अपनी किताब में 1977 की एक घटना का जिक्र किया है जिससे पता चलता है कि पंडित नेहरू के प्रति वाजपेयी के मन में कितना आदर था. उनके मुताबिक 1977 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो जब कार्यभार संभालने के लिए साउथ ब्लॉक के अपने दफ्तर पहुंचे तो उन्होंने गौर किया कि वह पर लगा पंडित नेहरू की तस्वीर गायब है. उन्होंने तुरंत अपने सेकेट्री से इस संबंध में पूछा. पता लगा कि कुछ अधिकारियों ने जानबूझकर वह तस्वीर वहां से हटा दी थी. वो शायद इसलिए क्योंकि पंडित नेहरू विरोधी दल के नेता थे. लेकिन वाजपेयी ने आदेश देते हुए कहा कि उस तस्वीर को फिर से वहीं लगा दिया जाए.
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