सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को साफ कर दिया कि वह डॉक्टरों को दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना करने के निर्देश नहीं दे सकता। न्यायालय ने इस प्रक्रिया के पीछे के ‘वैज्ञानिक तर्क’ पर भी सवाल उठाए। दूसरी तरफ, केंद्र ने खतने के खिलाफ दलील देते हुए कहा कि सती और देवदासी की तरह खतना प्रथा को खत्म किया जाना चाहिए। अटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि सती और देवदासी प्रथा भी खत्म की जा चुकी है। दुनिया के 42 देश खतना को प्रतिबंधित कर चुके है। उन्होंने कहा कि इनकी आस्था खतने में हो सकती है लेकिन इन्हें संविधान के तहत ही प्रक्रिया को अपनाना होगा। ये प्रथा संवैधानिक प्रावधानों का उलंघन है।
पीठ ने खतने का समर्थन करने वाले एक मुस्लिम संगठन के वकील सिंघवी से कहा, ‘इस प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए डॉक्टरों को निर्देश देने को लेकर क्या वैज्ञानिक तर्क हैं?’ न्यायालय ने यह भी कहा कि डॉक्टरों को इस तरह की प्रक्रिया को अंजाम देने का निर्देश देना मेडिकल नैतिक मूल्यों का उल्लंघन होगा। सिंघवी ने कहा कि दाऊदी बोहरा समुदाय मुस्लिमों में सबसे प्रगतिशील और शिक्षित वर्ग है और यह प्रक्रिया इतनी भी गंभीर नहीं है, जैसा इसका विरोध करने वालों की तरफ से बताया जा रहा है।
पीठ ने छोटी बच्चियों के खतने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के बारे में पूछा। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘आपका एसओपी क्या है? मैं उस बच्ची की तकलीफ के बारे में सोच रहा हूं जो रोती होगी और इस पर ऐतराज करती होगी। किसी को बच्चे को पकड़ कर रखना होता होगा, क्योंकि बेहोशी की भी कोई दवा नहीं होती है, कोई अस्पताल नहीं होता है!’
वरिष्ठ वकील ने कहा कि जब किसी बच्चे का टीकाकरण होता है तो ऐसी ही चीज होती है। उन्होंने कहा कि खतने के दौरान ज्यादा सावधानी बरती जाती है और यह प्रक्रिया मां की निगरानी में अंजाम दी जाती है। केंद्र की तरफ से पेश हुए अटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सरकार का रुख दोहराया कि वह खतने के विरोध में है और अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया एवं करीब 27 अफ्रीकी देशों सहित कई अन्य ने इस प्रक्रिया को प्रतिबंधित कर दिया है। वकील सुनीता तिवारी की ओर से दायर इस जनहित याचिका पर अब 9 और 10 अगस्त को सुनवाई होगी।
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