गोडसे-गांधी की कहानी का एक पहलू ये भी, पढ़ें कपिल मिश्रा का ब्लॉग

‘गोडसे’… वैसे ये नाम कोई नया नहीं हैं लेकिन हाल के दिनों में ये नाम चर्चा का केंद्र तब बन गया जब अभिनेता से नेता बने और मक्कल निधि मय्य्म के संस्थापक कमल हासन ने गोडसे को आजाद भारत का पहला ‘हिन्दू आतंकवादी’ करार दे दिया. हिन्दुओं को आतंकी बताने पर हासन का पूरे देश में विरोध हुआ. गोडसे-गांधी में कौन सही और कौन गलत इस विषय पर हम देश को बंटा हुआ पाते हैं.


आम तौर पर हम नाथूराम गोडसे को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे के तौर पर जानते हैं और इसके अलावा कोई और जानकारी नहीं मिलती. सियासतदानों की कुटिलता कहें या तात्कालिक परिस्थितियां इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस पूरी कहानी में गोडसे के पहलू को इतिहास के पन्नों में जगह नहीं मिल पायी. दिल्ली के करवाल विधानसभा क्षेत्र से विधायक कपिल मिश्रा ने गोडसे के इसी पहलू पर एक ब्लॉग लिखा हैं. मिश्रा लिखते हैं…


गोडसे ने अगर बापू को नहीं मारा होता तो शायद बापू को ये देश इतना महान और बड़ा नहीं मानता. बापू के नाम और जो दुकानें और धन्धे चल रहे हैं वो भी नहीं चलते. नकली गांधी बनकर राज करने वाले शायद आज होते ही नहीं कहीं. हत्या ने बापू को महान बना दिया और उन असली मुद्दों को छोटा कर दिया जिनके भावावेश में हत्या हुई. जीवन के अंतिम दिनों में बापू पाकिस्तान और पाकिस्तानी सोच के आगे समपर्ण करते दिखते हैं , अपने अहिंसा के सिद्धांत को महान बनाने का एक लालच उन्ही आंखों पर पट्टी की तरह बंध गया था, ऐसा लगता हैं. अगर बापू जिंदा रहते तो देश मे खुलकर इन मुद्दों की चर्चा होती, लेकिन बापू की हत्या के कारण इन मुद्दों पर बोलना ही गुनाह बन गया.


हत्या होते ही बापू के बारे में नेगेटिव बोलना अपराध बन गया. बापू जिंदा होते तो जिस रास्ते पर वो चल चुके थे, वो लोगों में तेजी से अनपॉपुलर होते. जैसे आज गोडसे के विचार या सोच बताने के लिए मुश्किल होती हैं, वैसे गांधी के विचार बताने में मुश्किल होती. लोगों के मन मे गांधी की आंदोलन, अहिंसा, महात्मा की छवि धुंधली हो जाती और पाकिस्तान के प्रति समर्पण, अहिंसा को सही बताने की अंधी जिद्द में कायरता की तरफ झुकना जैसी यादें ही रह जाती.बापू को ना भारत में साथ मिलता ना पाकिस्तान में. शायद उन्हें राष्ट्रपिता भी ना माना जाता.


गोडसे ने बापू की हत्या करके एक तरह की नई लाइफलाइन दे दी बापू के विचारों को…लेकिन हत्या ने वो सभी सवाल दबा दिए लंबे समय के लिए …आज सत्तर साल बाद लोगों के मन में सवाल उठने लगे हैं दुबारा, बंटवारे के समय किसने क्या किया, क्यों किया ? शायद सौ साल बाद खुलकर बोलने और कहने भी लगेंगे सब.


गोडसे के बयानों और कोर्ट की कार्यवाही को पढ़कर हर कोई भावुक होता हैं. बिना गांधी की हत्या के अगर वो विचार सामने आते तो विचारों की ताकत कुछ और भी ज्यादा होती. शायद नकली गांधीवादियों का गंदा खेल देश को ना झेलना पड़ता. आज ऊपर कहीं बापू और गोडसे एक साथ बैठे होंगे, एक दूसरे को जानने समझने का पूरा समय होगा उनके पास. भगवान राम में दोनों की आस्था थी इसलिए दोस्ती भी हो गयी होगी.


क्या सोचते होंगे दोनों- शायद गोडसे सोचते होंगे कि हिंसा ना करता तो ज्यादा अच्छा होता और बापू सोचते होंगे कि देश और धर्म के आत्मसम्मान के लिए कभी कभी अहिंसा छोड़नी भी पड़े तो ठीक हैं. बापू और गोडसे तो एक दूसरे को समझ चुके होंगे लेकिन हम शायद हम ना बापू को समझ पाए और ना गोडसे को.


Also Read: गाँधी के आन्दोलनों से प्रभावित रहने वाले नाथूराम गोडसे ने आखिर क्यों की उनकी हत्या?


देश और दुनिया की खबरों के लिए हमेंफेसबुकपर ज्वॉइन करेंआप हमेंट्विटरपर भी फॉलो कर सकते हैं. )