अयोध्या विवाद: जस्टिस यूयू ललित ने खुद को बेंच से अलग किया, अगली सुनवाई 29 जनवरी को नई बेंच करेगी

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गुरुवार को फिर एक बार टल गई. अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी. इसके लिए बनाई गई पांच सदस्यों की संविधान पीठ से जस्टिस यूयू ललित ने खुद को अलग कर लिया है. राजीव धवन की आपत्ति के बाद ललित ने खुद को अलग कर लिया.  कोर्ट तय करना था कि इस मामले में जल्द और नियमित सुनवाई होनी चाहिए या नहीं. वकील हरिनाथ राम ने नवंबर में जनहित याचिका लगाकर यह मांग की थी. यह सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर होनी है.

 

सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने अदालत में जस्टिस यूयू ललित पर सवाल उठाते हुए कहा कि 1994 में यूयू ललित कल्याण सिंह के लिए पेश हो चुके हैं. जिसके बाद उन्होंने खुद को मामले से अलग करने का निर्णय लिया. वकील राजीव धवन ने कहा कि वे पूर्व मे अयोध्या केस से जुड़े अवमानना मामले मे वकील को तौर पर पेश हो चुके हैं, हालांकि उन्हें आपत्ति नहीं है फिर भी जस्टिस यूयू ने खुद को मामले से अलग कर लिया. इस दौरान हरीश साल्वे ये जस्टिस ललित की तरफ से कहा कि कल्याण सिंह का केस आपराधिक था इसका इससे कोई लेना देना नहीं हैं, उन्हें ललित से कोई आपत्ति नहीं हैं.

 

जस्टिस यूयू ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि जब वे वकील थे, तब वे बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सुनवाई के दौरान बतौर वकील एक पक्ष की तरफ से पेश हुए थे और अब मैं खुद को इस मामले से हटाना चाहता हूं. इस पर CJI रंजन गोगई ने कहा कि सभी जजों का मत है कि अयोध्या जमीन विवाद मामले में जस्टिस यूयू ललित का सुनवाई करना सही नहीं होगा.

 

लोकसभा चुनाव की वजह से मंदिर पर राजनीति गरमाई
लोकसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से राम मंदिर मुद्दे पर राजनीति भी गरमा रही है. केंद्र में एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि अगर 2019 चुनाव से पहले मंदिर नहीं बनता तो यह जनता से धोखा होगा. इसके लिए भाजपा और आरएसएस को माफी मांगनी पड़ेगी. उधर, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अध्यादेश लाने का विरोध करते हुए कहा कि सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही मानना चाहिए. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि न्यायिक प्रकिया पूरी हो जाने के बाद एक सरकार के तौर पर जो भी हमारी जिम्मेदारी होगी हम उसे पूरा करने के लिए सभी प्रयास करेंगे.

 

क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए. इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट में यह केस पिछले आठ साल से है.

 

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