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‘एक ही देवी माँ, एक ही शक्ति, लेकिन अनेक रंग…’, भारत में नवरात्रि की अलग-अलग झाँकियां

Navratri 2025: भारत में जब नवरात्रि आती है, तो ऐसा लगता है जैसे पूरा देश माँ दुर्गा की भक्ति में डूब गया हो। लेकिन सबसे रोचक बात यह है कि हर प्रदेश, हर इलाक़ा इसे अपने तरीके से मनाता है। कहीं यह नृत्य और संगीत का पर्व है, तो कहीं यह आँसुओं और ममता का त्योहार बन जाता है। कहीं युद्ध और विजय की कहानी है, तो कहीं कला और संस्कृति की झलक। सोचिए… एक ही देवी , एक ही शक्ति, लेकिन भारत के अलग-अलग हिस्सों में कितने रंग, कितनी परंपराएँ और कितनी कहानियाँ! चलिए, मैं आपको लेकर चलती हूँ एक छोटी-सी यात्रा पर जहां एक ही देश में नवरात्रि की अलग अलग झलक देखने मिलती है।

गुजरात – गरबा की थाप पर जगमग रातें

हम बात करेंगे गुजरात की,गुजरात में नवरात्रि शुरू होते ही गलियाँ रंग-बिरंगी हो जाती हैं। ढोल और ताशे की आवाज़ गूंजती है और लोग गोल-गोल घेरा बनाकर गरबा खेलने लगते हैं। यहाँ नवरात्रि का मतलब है- रात भर नृत्य और उत्सव। कहते हैं कि जब माँ दुर्गा महिषासुर से युद्ध कर रही थीं, तो लोग ढोल-नगाड़े और नृत्य के माध्यम से उनका उत्साह बढ़ाते थे। वही यह परंपरा आज गरबा और डांडिया के रूप में मनाई जाती है। डांडिया की लकड़ियाँ भी माँ दुर्गा की तलवार का प्रतीक मानी जाती हैं।

पश्चिम बंगाल – बेटी का मायके आना

अब चलते है बंगाल की ओर , तो यहाँ नवरात्रि का रंग कुछ अलग ही है। यहाँ इसे ‘दुर्गा पूजा’ कहा जाता है। भव्य पंडाल बनते हैं, सुंदर कलात्मक मूर्तियाँ सजती हैं और पूरे मोहल्ले की रौनक बदल जाती है। बंगाल में मान्यता है कि माँ दुर्गा नवरात्रि के दिनों में अपने मायके आती हैं। बेटियाँ जब मायके आती हैं तो घर-परिवार खिल उठता है, ठीक वैसे ही माँ दुर्गा का स्वागत पूरे शहर में बड़े उत्साह से होता है। लोग उन्हें अपनी बेटी की तरह मानते हैं। और जब दशमी के दिन माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन होता है, तो लोगों की आँखें भर आती हैं। यह पूजा सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि भावनाओं और रिश्तों का उत्सव है।

उत्तर भारत – रामलीला और विजय का पर्व

हम बात करेंगे उत्तर भारत की, उत्तर भारत में नवरात्रि का एक अलग ही दृश्य देखने को मिलता है। यहाँ जगह-जगह रामलीला होती है। बच्चे और बड़े मिलकर मंच पर रामायण का अभिनय करते हैं। जिसे पूरा गाँव, पूरा शहर हर शाम इकठ्ठा होकर देखता है। और फिर दशमी के दिन, रावण का पुतला जलाया जाता है। यह दृश्य हमें याद दिलाता है कि बुराई कितनी भी ताक़तवर क्यों न हो, अंततः अच्छाई ही जीतती है। यहाँ नवरात्रि सिर्फ देवी की पूजा नहीं, बल्कि भगवान राम की विजय और धर्म की रक्षा का प्रतीक भी है।

हिमाचल – कुल देवी की भक्ति

अगर आप पहाड़ों की ओर निकलें तो नवरात्रि का रंग बेहद अलग है। हिमाचल प्रदेश , जहां हर गाँव की अपनी एक कुल देवी होती है। नवरात्रि के दौरान लोग मंदिरों में इकट्ठा होते हैं, हवन होता है, भजन-कीर्तन गाए जाते हैं और पूरी रात देवी का जागरण होता है। यहाँ नवरात्रि किसी बड़े आयोजन से ज़्यादा अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़ने का समय है। लोग मानते हैं कि देवी माँ का आशीर्वाद ही उनकी सबसे बड़ी संपत्ति है।

दक्षिण भारत – गोलू की सीढ़ियाँ

हम बात करेंगे दक्षिण भारत की, दक्षिण भारत, जहां नवरात्रि का रूप सबसे कलात्मक है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में लोग ‘गोलू’ सजाते हैं। लकड़ी की सीढ़ीनुमा स्टैंड पर देवी-देवताओं, ऋषियों और यहाँ तक कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी की झलक दिखाने वाली गुड़ियाँ रखी जाती हैं। हर पायदान एक प्रतीक है—भक्ति, ज्ञान और शक्ति का। गोलू का यह रूप बच्चों को कहानियाँ सुनाने और संस्कार देने का भी तरीका है। यह पूजा के साथ-साथ कला और रचनात्मकता का अद्भुत संगम है।

महाराष्ट्र – हल्दी-कुंकू और बहनचारा

अब चलते है महाराष्ट्र की तरफ, महाराष्ट्र , जहां नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है। मिट्टी के कलश में जौ बोए जाते हैं और नौ दिनों तक उसकी पूजा होती है। लेकिन यहाँ एक और अनोखी परंपरा है—महिलाएँ एक-दूसरे को घर बुलाती हैं, हल्दी और कुंकू लगाती हैं और देवी की शक्ति का आशीर्वाद बाँटती हैं। यह परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी है। यह बहनों के बीच प्यार और सहयोग का संदेश देती है। यहाँ नवरात्रि का मतलब है – साथ रहकर शक्ति का अनुभव करना।

एक ही पर्व, लेकिन रंग अलग 

तो देखा आपने? एक ही पर्व, लेकिन कितने रंग!गुजरात में नृत्य है, बंगाल में बेटी का घर आना है, उत्तर भारत में विजय की गाथा है, हिमाचल में कुलदेवी का आशीर्वाद है, दक्षिण भारत में कला और गोलू है, और महाराष्ट्र में बहनचारा है।नवरात्रि हमें यही सिखाती है कि शक्ति का रूप अलग-अलग हो सकता है, पर उसका संदेश एक ही है—भक्ति, विश्वास और विजय।

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