देश में इन दिनों बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने के लिए आवाज उठ रही है. कई लोग सख्त व प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की वकालत कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग इससे सहमत नहीं है. इन्हीं चर्चाओं के बीच झारखंड से एक ऐसा मामला सामने आ रहा है, जो यह पॉपुलेशन कंट्रोल कानून बनाने की मुहिम को बल देता दिख रहा है. कोडरमा (Kodererma) जिला के मरकच्चो प्रखंड में एक गांव बसा है नादकरी. आजकल इस गांव के दो टोला काफी चर्चा का विषय बना हुआ है. इस गांव में दो टोला है, ऊपर टोला और नीचे टोला. जंगलों के बीच बसा यह गांव कभी निर्जन हुआ करता था. जिसमें एक व्यक्ति और उनकी पत्नी आकर बसे. आज इस गांव में उसी व्यक्ति के 800 वंशज बसे हुए हैं. मजे की बात ये है कि इनमें से 400 वोटर हैं यानी कि बालिग हैं.
स्थानीयों लोगों की मानें तो साल 1905 में झारखंड के ही गिरिडीह जिला के रेम्बा से इनके पूर्वज उत्तीम मियां यहां आये थे. उस वक्त इस जगह पर जंगल हुआ करता था. वे लोग यही खेती-बाड़ी करते थे और अपना जीवन यापन करते थे. अगर उत्तीम मियां के परपोते मतीन अंसारी की मानें तो उनके परदादा उत्तीम मियां के पांच बेटे थे. उन पांचों के मिलाकर कुल 26 बेटे हुए और उन छब्बीसों के 100-125 हुए और अभी वर्तमान में खानदान इतना बड़ा हो चुका है कि गिनती के आंकड़े भी गड़बड़ा जाते हैं.
एक ही वंश के 1300 लोग
मतीन बताते हैं कि इस गांव में लगभग 1300 लोग हैं और सभी एक हीं खानदान से हैं. खास बात यह भी है कि इतना बड़ा खानदान (परिवार) होने के बावजूद आपस किसी प्रकार की कोई परेशानी नही होती. सब मिलजुल कर रहते हैं. अब बात अगर किसी खास अवसर की करें तो गांव के दो-दो टोला में एक ही खानदान के लोगों के होने से छोटे से छोटे अवसर पर भी यहां मेले जैसा दृश्य बन जाता है. सभी लोग एकत्रित होकर किसी भी अवसर या पर्व को मानते हैं.
बढ़ती आबादी से रोजगार का संकट
उत्तीम मियां के दूसरे पोते 70 वर्षीय मोइनुद्दीन अंसारी कहते हैं कि गांव में रोजगार का साधन खेतीबाड़ी है. खानदान के लोग धान, गेहूं, दलहन, मक्का व सब्जियों की खेती करते हैं. परिवार बढने की वजह से खेती से सबका गुजारा नहीं हो पा रहा है. इसलिए खानदान के कुछ लोग आसपास के शहरों में रोजगार करने चले गए हैं. वहीं कुछ लोग सरकारी नौकरियों में भी सिलेक्ट हो गए हैं.
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