जब भी भारत की स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है, बाबू जगजीवन राम का नाम उन क्रांतिकारियों में शामिल होता है जिन्होंने दलितों के विकास के लिए हमेशा आवाज उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram) का जन्म बिहार (Bihar) के भोजपुर जिले के चांदवा गांव में 5 अप्रैल 1908 में हुआ था। बाबू जगजीवन राम को बाबूजी कहकर भी बुलाया जाता था।
1937 से कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
जगजीवन राम ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की।बाबू जगजीवन राम ने 1937 से कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1940 से 1977 तक कई अहम पदों पर रहे, जैसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सदस्य, कांग्रेस कार्य समिति सदस्य और केंद्रीय संसदीय बोर्ड सदस्य। उन्होंने पं. नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक की सरकारों में रक्षा मंत्री (1971) और कृषि मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाईं।
पीएम बनते-बनते क्यों रह गए बाबू जगजीवन राम?
1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा की थी। इस दौरान कुछ महीनों तक जगजीवन राम और इंदिरा गांधी के रिश्ते अच्छे थे। रेपोर्ट्स के मुताबिक बाबू जगजीवन राम से इंदिरा गांधी ने वादा किया था कि जब भी वो प्रधानमंत्री का पद छोड़ेंगी, तो वे उन्हे अगला प्रधानमंत्री बनाएगी, लेकिन बाद में ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद दोनों के बीच तनाव पैदा हो गए, जिसके बाद इमरजेंसी हटाए जाने के बाद जगजीवन राम ने खुद की अपनी पार्टी बना ली और हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और “फॉर डेमोक्रेसी” नाम से एक नई पार्टी का निर्माण किया। जिसके बाद जयप्रकाश नारायण के कहने पर उन्होंने जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा।
जेपी के समझाने पर सरकार में शामिल हुए जगजीवन राम
जनता पार्टी के जीतने के बाद, जगजीवन राम प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में से तो बने लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई का चयन हुआ। जिसके बाद जगजीवन राम, बाबूजी ने मोरारजी देसाई के शपथग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए। जयप्रकाश नारायण के काफ़ी प्रयासों के बाद, उन्होंने कैबिनेट में शामिल होकर उप प्रधानमंत्री का पद पर कार्य किया। इसी दौरान उनके बेटे सुरेश राम की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्वीरों को लेकर विवाद उठ खड़ा था, जिसकी तस्वीर कई जगह देखने को मिली थी। हालांकि, इस घटना के बाद में उनके बीटा उस महिला के साथ ही शादी के बंधन में बंध गए थे। 1980 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया, लेकिन इस चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।