आगरा: वक्फ की दौलत, मुतवल्लियों की मौज! आय बढ़ाने के बजाय भरी जेब

Agra: कभी समाज के गरीब, बेसहारा और जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए दान की गई वक्फ संपत्तियां आज उपेक्षा और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। इन संपत्तियों की देखरेख के लिए जिम्मेदार लोग खुद को फायदा पहुंचाने में लगे रहे, जिससे कई कीमती संपत्तियां या तो हड़प ली गईं या फिर बर्बादी की कगार पर पहुंच गईं।

किराया वृद्धि की दिशा में नहीं उठाए गए ठोस कदम

वक्फ संपत्तियों से आय बढ़ाने के लिए जरूरी था कि समय के साथ किराया बढ़ाया जाए, लेकिन जिम्मेदारों ने इस ओर कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। नतीजतन, करोड़ों की संपत्तियों से मात्र हजारों रुपये की आमदनी हो रही है, जो उनकी देखभाल के लिए भी नाकाफी है।

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2189 वक्फ संपत्तियां

आगरा में सुन्नी और शिया समुदाय की कुल 2189 वक्फ संपत्तियां दर्ज हैं, जिनकी मौजूदा कीमत कई सौ करोड़ रुपये में आंकी गई है। इसके बावजूद इनमें से गिनी-चुनी संपत्तियां ही ऐसी हैं जो लाखों रुपये का मासिक किराया देती हैं। बाकी संपत्तियों का किराया बेहद कम है और समय पर वसूली भी नहीं होती।

प्रमुख संपत्तिया 

शाही जामा मस्जिद, कर्बला, वक्फ मीर नियाज अली और मजार शहीद-ए-सालिस जैसी संपत्तियां प्रमुख हैं, जिनका किराया अपेक्षाकृत अधिक है। लेकिन अधिकांश वक्फ संपत्तियां उपेक्षा का शिकार हैं, जहां आय बेहद कम है और देखभाल न के बराबर हो रही है।

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कमेटियों और मुतवल्लियों की मिलीभगत से बढ़ा भ्रष्टाचार

वक्फ कमेटियों का गठन सीमित लोगों तक सिमट कर रह गया है। मुतवल्ली और कमेटी के सदस्य संपत्तियों की देखरेख के बजाय अपने निजी स्वार्थ साधने में लगे हैं। किराए में हेराफेरी और दुकान हस्तांतरण में मोटा खेल हो रहा है।

हस्तांतरण में खेल, किराया रसीद में धांधली

वक्फ अधिनियम के अनुसार, मुतवल्ली को किराए की रसीद काटने का अधिकार है। इसी व्यवस्था का दुरुपयोग करते हुए दुकानें नए किराएदारों को ऊंची कीमत पर हस्तांतरित की जाती हैं, लेकिन रसीदें न्यूनतम किराए पर काटी जाती हैं। यह प्रक्रिया नए दुकानदार के लिए फायदेमंद तो होती है, लेकिन वक्फ को भारी नुकसान झेलना पड़ता है।

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