1984 सिख दंगा पीड़ितों को मुआवजा न देने पर योगी सरकार की बढ़ीं मुश्किलें

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद 1984 के सिख दंगा पीड़ितों (1984 sikh riots) को उचित मुआवजा न देने पर कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह, अवनीश कुमार अवस्थी (Awanish Kumar Awasthi) अवमानना नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने श्री गुरु सिंह सभा कानपुर के चेयरमैन व पूर्व एमएलसी सरदार कुलदीप सिंह की तरफ से दाखिल अवमानना याचिका पर दिया है.


नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक याचिका में कहा गया है कि मार्च 1996 में राष्ट्रपति शासन के दौरान तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने दंगा पीड़ितों का प्रदर्शन कर रहे याची से समझौता किया था. इस समझौते के तहत पीड़ितों को एक लाख रुपये से अधिक की क्षति पर एक लाख तथा एक लाख से कम की क्षति पर पचास हजार रुपये देने का समझौता हुआ था. यह व्यवस्था आवासीय व व्यावसायिक दोनों प्रकार के क्षति पर लागू थी.


याची ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की. इस पर सरकार ने दंगा पीड़ितों को नया पैकेज लाने का आश्वासन दिया था. सरकार के इस आश्वासन पर हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने 18 दिसंबर 2017 को आदेश पारित कर सरकार को नये पैकेज के लिए 18 जनवरी 2018 तक का समय दिया था. समय सीमा बीत जाने के बाद भी हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं होने पर यह अवमानना याचिका दायर की गयी.


क्या था सिख दंगा ?

1984 के सिख-विरोधी दंगे भारतीय सिखों के विरुद्ध दंगे (1984 anti-Sikh riots) थे जो इंदिरा गाँधी के हत्या के बाद हुए थे. इन्दिरा गांधी की हत्या उन्हीं के अंगरक्षकों ने कर दी थी जो कि सिख थे. इन दंगों में 3000 से ज़्यादा मौतें हुई थी. राजीव गाँधी जिन्होंने अपनी माँ की मौत के बाद प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी और जो कांग्रेस के एक सदस्य भी थे, उनसे दंगों के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा था, “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तब पृथ्वी भी हिलती है”. 1984 के दंगों की सुनवाई करते हुए 17दिसम्बर 2018 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने फ़ैसला सुनाया है. जिसमें सज्जन कुमार (प्रमुख आरोपी) को उम्रक़ैद और अन्य आरोपियों को 10-10 साल की सज़ा सुनाई गयी है.


1970 के दशक में इंदिरा द्वारा लगाए गए भारतीय आपातकाल के दौरान, स्वायत्त सरकार के लिए चुनाव प्रचार के लिए हज़ारों सिखों को क़ैद कर लिया गया था. इस छुट-पुट हिंसा के चलते एक सशस्त्र सिख अलगाववादी समूह को भारत सरकार द्वारा एक आतंकवादी संस्था के रूप में नामित कर दिया गया था. जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के द्वारा इंदिरा गाँधी ने भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर पे क़ब्ज़ा करने का आदेश दिया और सभी विद्रोहियों को खत्म करने के लिए कहा, क्यूंकि स्वर्ण मंदिर पर हथियार बांध सिख अलगाववादियों से क़ब्ज़ा कर लिया था. भारतीय अर्धसैनिक बलों द्वारा बाद में पंजाब के ग्रामीण इलाक़ों से अलगाववादियों को ख़तम करने के लिए एक ऑपरेशन चलाया था.


इन दंगो का मुख्य कारण स्वर्ण मंदिर पर सिक्खो का घेराव करना था. पाकिस्तान के गुप्त समर्थन से कुछ सिख आतंकवादियों की मांग एक ख़ालिस्तान नाम का एक अलग देश बनाने की थी जहाँ केवल सिख ही रहेंगे परन्तु कांग्रेस सरकार इस के लिए तैयार नहीं थी. आतंकवादी सिख कई चेतावनियों के बाद भी मंदिर को नहीं छोड़ रहे थे. इसी के चलते इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर पर से सिक्खों को हटाने के लिए मिलिट्री की सहायता ली वहाँ हुई मुठभेड़ में बहुत से सिख मारे गए. यह देख कर इंदिरा गांधी के दो अंगरक्षक जो के सिख थे उन्होंने 31 अक्तुबर को इंदिरा गांधी पर गोलियाँ चला कर उनकी हत्या कर दी थी.


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