एमनेस्टी योजना: राज्य कर अधिकारियों की नौकरी पर मंडराया संकट

राज्य कर विभाग में लागू एमनेस्टी योजना अब कर अधिकारियों के लिए खतरा बनती जा रही है। विभाग के प्रत्येक अधिकारी को प्रतिदिन पांच व्यापारियों को योजना से जोड़ने का लक्ष्य दिया गया है। लेकिन केवल 5-10% अधिकारी ही इस लक्ष्य को पूरा कर पा रहे हैं।

1000 अधिकारियों पर निलंबन का खतरा

प्रदेश में 436 कर खंडों में 1200 अधिकारी तैनात हैं। शासन ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जो अधिकारी निर्धारित लक्ष्य पूरा नहीं करेंगे, उनके खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की जाएगी। प्रमुख सचिव एम. देवराज के निर्देशानुसार, जोनल एडिशनल कमिश्नर ने आदेश जारी कर अधिकारियों को हर हाल में पांच व्यापारी एमनेस्टी योजना में जोड़ने का निर्देश दिया है। यदि वे असफल होते हैं, तो उनके नाम निलंबन के लिए भेजे जाएंगे। इस स्थिति में लगभग 1000 अधिकारियों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है, जो अपने आप में अभूतपूर्व है।स्वैच्छिक योजना, अब तक 25,000 व्यापारी शामिल

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एमनेस्टी योजना स्वैच्छिक है, इसलिए व्यापारियों को इसमें शामिल करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। प्रदेश में कुल 1.92 लाख लंबित मामलों में से अभी तक केवल 25,000 व्यापारियों ने इस योजना के तहत अपील की है। 31 मार्च अंतिम तिथि निर्धारित की गई है।प्रदेश में सबसे अधिक विवादित कर मामले लखनऊ जोन (22,000) में हैं। इसके बाद वाराणसी (19,000), गाजियाबाद (18,500), कानपुर (14,000), मुरादाबाद (13,500) और गोरखपुर (10,000) का स्थान आता है।

 

क्या है एमनेस्टी योजना?

एमनेस्टी योजना जीएसटी मामलों में कारोबारियों को ब्याज और जुर्माने से राहत देती है। इसके तहत वित्तीय वर्ष 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के मामलों में व्यापारियों को सिर्फ बकाया टैक्स चुकाना होगा, जबकि ब्याज और पेनाल्टी माफ कर दी जाएगी।प्रदेश में 1.92 लाख व्यापारियों पर 7,816 करोड़ रुपये का बकाया है। अगर वे इस योजना का लाभ उठाते हैं, तो उन्हें 5,150 करोड़ रुपये के ब्याज और 1,213 करोड़ रुपये की पेनाल्टी से छूट मिलेगी।

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एमनेस्टी योजना का उद्देश्य व्यापारियों को राहत देना है, लेकिन अधिकारियों पर अनुचित दबाव बनाया जा रहा है। चूंकि यह योजना स्वैच्छिक है, व्यापारियों को जबरन इसमें शामिल करना मुश्किल है। ऐसे में 1000 अधिकारियों के निलंबन की आशंका ने पूरे विभाग में तनाव पैदा कर दिया है।

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