शिवाजी राज में सभी महिलाओं का होता था सम्मान, चाहें दुश्मन की ही पत्नी क्यों न हो, आज भी उसी भावना की जरूरत: अरिहंत ऋषि

‘ऊर्जा गुरू’ नाम से चर्चित अरिहंत ऋषि (Arrihant Rishi) ने छत्रपति शिवाजी राज में महिलाओं की स्थिति की प्रशंसा करते हुए आज भी लोगों में उसी भावना के संचार होने की बात कही है. उनका कहना है कि महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाए रखनी चाहिए. फिर वह महिला किसी भी जाति या धर्म की ही क्यों न हो. अरिहंत ऋषि ने कहा कि महिला सशक्तिकरण को लेकर इस दौर में लोगों को जागरूक करने की सख्त जरूरत है.


इतिहास के कुछ ऐसे ही उदाहरण लेते हुए अरिहंत ऋषि ने लोगो को बताया कि छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में कभी भी किसी औरत का नाच-गाना नहीं हुआ. महिलाओं का हमेशा सम्मान किया जाता था, फिर चाहे वह दुश्मन की पत्नी ही क्यों ना हो, सभी को अपनी माता और बहन के समान समझा जाता था. उन्होंने कहा कि महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाए रखनी चाहिए. फिर वह महिला किसी भी जाति या धर्म की हो.


वहीं दूसरा उदाहरण देते हुए अरिहंत ऋषि ने कहा कि 28 फरवरी 1678 में, सुकुजी नामक सरदार ने बेलवाड़ी किले की घेराबंदी की. इस किले की किलेदार एक स्त्री थीं, उनका नाम सावित्रीबाई देसाई था. इस बहादुर महिला ने 27 दिनों तक किले के लिए लड़ाई लड़ी. लेकिन अंत में, सुकुजी ने किले को जीत लिया और सावित्रीबाई से बदला लेने के लिए उसका अपमान किया. जब राजे ने यह समाचार सुना, तो वह क्रोधित हो गए.


राजे के आदेशानुसार सुकुजी की आंखें फोड कर उसे आजीवन कैद कर दिया गया. 24 अक्टूबर 1657 को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश पर सोने देव ने जब कल्याण के किले पर घेराबंदी की और उसको जीत लिया. उस समय मौलाना अहमद की पुत्रवधू यानी औरंगजेब की बहन और शाहजहां की बेटी रोशनआरा जो एक अभूतपूर्व सुंदरी थी. जिसको किले में कैद कर लिया गया उसके बाद सैनिकों ने रोशनआरा को जब छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने पेश किया तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को यह कहा था की यह तुम्हारी पहली और आखरी गलती है. उसके बाद अगर ऐसा अपमानित करने का कार्य किसी भी जाति और धर्म की औरत के साथ किया तो इसकी सजा मौत होगी, और एक पालकी सजा कर रोशनआरा को उसके कहने पर उसके महल में भेज दिया गया.


इसी प्रकार से शाइस्ता खान ने सन 1663 ईस्वी में कोंकण को जीतने के लिए अपने सेनापति दिलेर खान के साथ एक ब्राह्मण उदित राज देशमुख की पत्नी राय बाघिन( शेरनी) को भेजा तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने राय बाघिन और मुगल दिलेरखान को रात में कोल्हापुर में ही घेर लिया और दिलेरखान अपनी जान बचा कर भाग गया. उस समय राय बाघिन को एक सजी हुई पालकी में बैठा कर वापसी उसके घर भेज दिया था. क्योंकि शिवाजी का मानना था कि महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाए रखनी चाहिए, फिर वह महिला किसी भी जाति या धर्म की हो.


अरिहंत ऋषि ने बताया कि शिवाजी का मानना था कि किसी दुश्मन की पत्नी भी चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से संबंध रखती हो, लड़ाई में फंस जाती है, तो उसे परेशानी नहीं होना चाहिए. महाराज के इस तरह के आदेश पत्थर की लकीर होते थे. और उन पर अमल भी शत प्रतिशत होता था. अरिहंत ऋषि ने लोगों को आज के समय में शिवाजी महराज के विचारों पर अमल करने की बात कही. जिससे समाज में सुधार आ सके, महिलाए सुरक्षित महसूस करें और सम्मान जनक जीवन व्यतीत कर सकें.


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