पाकिस्तान के नए नवेले प्रधानमंत्री इमरान खान आजकल भारत के हरेक मामलों में अपनी राय रखना बेहद जरुरी समझते है. और हर बयान के बाद वो अपने आप को सही साबित करने में पूरी तरह से फेल हो जाते है. और एक बार फिर से वही हुआ फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह मामलें में भारत को नसीहत देने के बाद इमरान खान चारो तरफ से फिर गए हैं. पाकिस्तान के लाहौर शहर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारत को अल्पसंख्यकों के साथ कैसे व्यहार करने पर नसीहत देते हुए नजर आए थे.
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गौरतलब है की हालही में भीड़ द्वारा की गई हिंसा पर बयान के बाद नसीरुद्दीन शाह को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, शाह ने अपने बयान में एक गाय की मौत को एक पुलिस अधिकारी की हत्या से ज्यादा तवज्जो और मजहब को लेकर हिंसा पर भी चिंता जताई थी. शाह के इसी बयान का हवाला देते हुए इमरान खान ने पाकिस्तान और बंटवारे के लिए जिम्मेद्दार मुहम्मद अली जिन्नाह को महान बताने में लगे. इमरान का कहना था की जो बात शाह आज बोल रहे है वो बात मोहम्मद अली जिन्ना बहुत पहले बोल चुके है. उन्होंने इस कार्यक्रम में मोदी सरकार को निशाना बनाते हुए कहा था की वह नरेंद्र मोदी सरकार को ‘‘दिखाएंगे’’ कि ‘‘अल्पसंख्यकों के साथ कैसे व्यव्हार करते हैं?’’
लेकिन इस कार्यक्रम में इमरान अल्पसंख्यकों पर इतना ज्ञान देने से पहले अपने देश में अल्पसंख्यकों के आकड़ो और हाल को देखना शायद भूल गए. गौरतलब है की जब जिन्ना को पाकिस्तान दिया गया था तब पाकिस्तान में गैर मुस्लिम (हिन्दू, ईसाई और सिख) की आबादी पाकिस्तान की कुल जनसंख्या का 20 फीसदी के करीब हुआ करती थी, मगर पाकिस्तान बनने के पचास सालों के भीतर ही गैर मुस्लिमों की संख्या घटकर कुल आबादी के 3 प्रतिशत से भी कम हो गयी है.
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अल्पसंख्यकों की पाकिस्तान में यह दुर्दशा को देखते हुए अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन ने पाकिस्तान को धार्मिक आज़ादी के लिहाज से सबसे बदत्तर देशों की सूची में डाला है. अमेरिका ने साफ़ किया की पाकिस्तान अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोगों को सुरक्षा देने में पूरी तरह से असमर्थ है. एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का हाल ऐसा है की यहां गैर मुस्लिम के साथ जो होता है वो दूर की बात, यहां खुद शिया मुसलमानों और अहमदीयों के साथ सौतेला व्यहार किया जाता है.
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साल 2014 की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 5000 हिन्दू भारत में पलायन कर रहे हैं. अन्य आकड़ो के अनुसार 1965 में करीब 10 हजार, 1971 में 90 हजार और 1977-78 में करीब 55 हजार हिंदुओं का भारत मे पलायन हुआ था. इन आकड़ो को अगर कोई पढ़ले तो शायद ही पाकिस्तान में रहना चाहेगा। और यह आकड़े साफ करता है की पाकिस्तान में कितनी धार्मिक स्वतंत्रता है. फिलहाल इन आकड़ो को अगर किसी को पढ़ने की जरुरत है तो वो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को है ताकि भविष्य में वो ऐसी फिजूल नसीहत देने से बच सकें.