राजनीति में ये तो माना जाता है कि यहाँ कोई हमेशा के लिए कोई दोस्त और दुश्मन नहीं होता. यहाँ कब क्या हो जाये इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता है. कुछ ऐसा ही बुधवार को 16वीं लोकसभा की अंतिम बैठक के दौरान हुआ, दरअसल संसद के बजट सत्र की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने से पहले सभी दलों के नेताओं का पारंपरिक संबोधन चल रहा था इसी के लिए समाजवादी पार्टी के संरक्षक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव बोलने के लिए खड़े हुए मुलायम ने जैसे ही बोलना शुरू किया सत्ता पक्ष तालियाँ बजाने लगा और वहीं विपक्ष हैरान था.
सदन में नेताजी मुलायम सिंह यादव बोले बिना किसी लागलपेट के बोले ‘ प्रधानमंत्री को बधाई देना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री ने सबको साथ लेकर चलने की कोशिश की है. मैं कहना चाहता हूं कि जितने सदस्य इस बार जीत कर आए हैं, दोबारा वह जीत कर आएं और आप (नरेंद्र मोदी) दोबारा प्रधानमंत्री बनें.’ पड़ोस में बैठीं यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी इस दौरान इधर-उधर देखती पाई गयीं. कभी पहलवान रहे मुलायम का यह दांव हर किसी को चित कर देने वाला था.
मुलायम का यह बयान उत्तर प्रदेश की राजनीति में सियासी पारा बढ़ाने के लिए काफी है. बयान से ज्यादा महत्वपूर्ण है इसकी टाइमिंग. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि मुलायम का यह बयान ऐसे वक्त पर आया है जब उनके बेटे और पूरी राजनीतिक विरासत को सँभालने वाले अखिलेश यादव नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने से रोकने के विपक्षियों को एकजुट करने में जुटे हैं. अखिलेश की इसी योजना के तहत सपा ने धुर विरोधी माने जाने वाली मायावती की पार्टी बसपा से गठबंधन किया, वहीं पश्चिमी यूपी में वोट न बंटे इसके लिए उन्होंने अजीत सिंह की रालोद को गठबंधन में शामिल किया और अपनी तरफ से एक अधिक सीट कैराना मॉडल पर देने के लिए राजी हो गए. मोदी को रोकने के लिए अखिलेश की मुहिम का ही नतीजा है कि प्रियंका गाँधी की कांग्रेस में एंट्री के बाद वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस के लिए बंद दरवाजों को खोलकर 14 सीटों का ऑफर तक दे दिया. यह अलग बात है कि इस पर आम सहमति नहीं पायी.
मुलायम का अखिलेश के लिए कठोर हो जाना कोई पहली बार नहीं हैं. इससे पहले मई, 2017 में बीजेपी करारी हार के बाद मैनपुरी में संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने माना कि 2012 में अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाना उनकी बड़ी गलती थी. सीएम हमको बनना चाहिए था. अगर मैं सीएम होता तो बहुमत मिल जाता. सपा अपनी गलती से चुनाव हारी. जनता की कोई गलती नहीं. बात दें की यूपी विधानसभा चुनाव के लिए अखिलेश ने मुलायम की मर्जी के बिना कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था हार के बाद मुलायम ने इसे लेकर अखिलेश को जिम्मेदार ठहराया था.
इससे पहले सितंबर, 2017 में पारिवारिक घमासान के बीच मुलायम सिंह यादव ने साफ किया कि वह कोई नई पार्टी बनाने नहीं जा रहे हैं. लेकिन साथ ही बेटे और पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए उनका दर्द जरूर छलका. उन्होंने कहा कि अखिलेश बेटे हैं, उन्हें हमारा आर्शीवाद हैं. लेकिन उनके निर्णयों से मैं सहमत नहीं हूं. अखिलेश के लिए मुलायम ने कहा कि हमसे कहा था कि तीन महीने का समय दे दीजिए, उसके बाद आप अध्यक्ष हो जाइएगा. लेकिन वह अपनी बात पर नहीं टिका. ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी कामयाब नहीं हो सकता. बाप को ही धोखा दिया. उन्होंने कहा कि देश के बहुत बड़े नेता ने कह दिया कि जो बाप का नहीं, वो किसी का नहीं.
कुल मिलाकर मोदी के लिए मुलायम के इस बयान को अब सपा के नेता चाहे संसद की परंपरा बताएं या शिष्टाचार जैसी लाख दलीलें दें, मुलायम की यह कामना आगामी चुनाव में अखिलेश की राहें कठोर करने जा रहीं है. अभी तक अखिलेश पर अटैक करने के लिए बीजेपी शिवपाल के बयानों का सहारा लेती थी, अब उसके तरकश में मुलायम के बयान भी हैं, जिसे बीजेपी भुनाने की भरपूर कोशिश करेगी.
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