नए कृषि कानूनों (Farm Law 2020) के खिलाफ कई दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसान आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है. केंद्र सरकार और किसान संगठनों की कई बार वार्ता हो चुकी, सरकार ने किसानों की 2 मांगे तो मान लीं लेकिन 2 पर अब चार जनवरी को चर्चा होने जा रही है. सरकार तीनों कानून वापस लेने के मूड़ में नहीं दिख रही दूसरी तरफ किसान इससे कम पर मानने को तैयार नहीं दिख रहे. वहीं इस गतिरोध के बीच भाजपा नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने सुप्रीम कोर्ट (Ashwini Upadhyay) में याचिका दाखिल कर मांग की है कि कोई भी कानून बनाने के 60 दिन पहले उसका ड्राफ्ट पब्लिक डोमेन में डाला जाए.
याचिकाकर्ता ने किसानों के विरोध प्रदर्शनों का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि केंद्र और राज्य व्यापक विचार-विमर्श के बगैर कानून पास कर देते हैं. किसानों का विरोध दर्शाता है कि कानून किस तरह की कठिन भाषा में लिखा जाता है, जिसे आम जनता के लिए समझना मुश्किल होता है. ऐसे में जरूरत है कि कानून बनने से पहले उसका मसौदा जनता में परामर्श के लिए सार्वजनिक किया जाए और लोग उस पर अपनी राय दे सकें.
अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में मांग की गई है कि केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया जाए कि वे विधेयक को संसद या विधानसभा में पेश करने से 60 दिन पहले सरकारी वेबसाइट पर डालकर सार्वजनिक करें. जब कोई केंद्रीय कानून बनाया जाए, तो उसे हिंदी, अंग्रेजी सहित 22 भाषाओं में वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए, ताकि आम जनता उसे समझ सके और उस पर अपनी राय दे सके.
याचिका में कहा गया है कि पांच फरवरी, 2014 को केंद्र सरकार ने इस बारे में एक नीति बनाई थी. इसमें तय किया गया था कि किसी भी कानून को लाने से पहले उसका मसौदा आम जनता से परामर्श के लिए सार्वजनिक किया जाएगा. यही राय वेंकट चलैया की अध्यक्षता वाले संविधान समीक्षा आयोग ने भी दी थी. याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार ने अपनी यह नीति आज तक लागू नहीं की है. उपाध्याय के मुताबिक कि तीनों कृषि कानून किसानों के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि बिचौलियों के खिलाफ हैं. लेकिन, इन कानूनों के बनने से पहले इनका मसौदा व्यापक परामर्श के लिए सार्वजनिक नहीं किया गया. इसी का फायदा उठाकर मौकापरस्त नेताओं ने अपने लाभ के लिए किसानों को गुमराह किया है.
याचिका में कहा गया है कि इसके चलते काफी गलत सूचना फैली और किसान प्रदर्शन करने लगे तथा निहित स्वार्थ वाले लोग किसानों की आड़ में इस स्थिति का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहे हैं. याचिका में कहा गया है, ‘‘लोगों को बड़ा नुकसान हुआ है क्योंकि मौजूदा कानून निर्माण प्रक्रिया न सिर्फ अलोकतांत्रिक है बल्कि असंवैधानिक भी है.’’
अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा कि कानून बनाने की प्रक्रिया में व्यापक सुधार की जरूरत है. राष्ट्रीय सुरक्षा के अतिरिक्त सभी कानूनों को हर हाल में सदन में पेश होने से कम-से-कम 60 दिन पहले सरकारी वेबसाइट पर व अन्य तरीकों से सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि लोग उनके बारे में जान सकें। विशेषज्ञ उनका विश्लेषण कर सकें और पेशेवर लोग उन पर चर्चा कर सकें. दो महीने तक कानून पर व्यापक चर्चा होने से सरकार कानून के हर पहलू का विश्लेषण कर पाएगी. इसके अलावा जब कानून पर सदन में बहस होगी, तो उसमें भी सांसद और विधायक बेहतर सुझाव दे पाएंगे. व्यापक चर्चा से बनने वाला कानून खामी रहित होगा और उसको अदालत में चुनौती दिए जाने की भी संभावनाएं कम होंगी.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कई बार नए कानूनों की जरूरत नहीं होती. मौजूदा कानूनों में संशोधन कर उस उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है. लेकिन व्यापक परामर्श के अभाव में इस तरह के सुझाव नहीं आ पाते और एक नया कानून बन जाता है. बता दें कि अश्विनी उपाध्यय बीते महीने इसी मांग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिख चुके हैं.
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