मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रचंड बहुमत हासिल होने के बाद से ही अटकलें लगनी शुरू हो गई थी कि अरुण जेटली बीमार चल रहे हैं और नई सरकार में मंत्री पद की जिम्मेवारी नहीं संभालेंगे. इस बीच ख़ुद पीएम मोदी को पत्र लिख कर अरुण जेटली ने आग्रह किया है कि उन्हें मोदी-2.0 में मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं बनाया जाए क्योंकि उन्हें ख़ुद के स्वास्थय के लिए समय चाहिए.

अरुण जेटली को कुछ लोग मोदी के वास्तविक ‘चाणक्य’ और 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रुप में मोदी के कार्यकाल के शुरू में प्रदेश में हुये दंगो के बाद उनका ‘संकट का साथी’ कहते हैं. जेटली की तारीफ में मोदी उन्हें‘बेशकीमती हीरा’ बता चुके हैं. दिल्ली विश्व विद्यालय के छात्र संघ की राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश करने वाले जेटली पेशे से अधिवक्ता रहे हैं वह शुरू से ही सत्ता के सूत्र संचालन को अच्छी तरह समझते रहे है. वह 1990 के दशक के आखिरी वर्षों से दिल्ली में मोदी के आदमी माने जाते थे.

गुजरात दंगों से जुड़ी मोदी की कानूनी उलझनों से पार पाने में उनको कानूनी सलाह देने वाले विश्वसनीय सलाहकार की भूमिका निभाने वाले जेटली बाद में मोदी के मुख्य योद्धा और सलाहकार के रूप में उभरे. जेटली अपने बहुआयामी अनुभव के साथ केंद्र में मोदी की पहली सरकार (2014-19) के मुख्य चेहरा रहे. सरकार की नीतियों और योजनाओं का बखान हो या विपक्ष की आलोचनाओं के तीर काटने की जरूरत, हर मामले में जेटली आगे दिखते रहे हैं.

जेटली की विद्वता और उनकी वाकपटुता का अल्टरनेटिव भारतीय राजनीति में बहुत कम ही लोगों के पास है. पिछले 5 वर्षों में मोदी सरकार को जब भी उसकी योजनाओं के क्रियान्वन पर घेरा गया तो अरुण जेटली सरकार के संकट मोचक के रूप में सामने आये. तथ्य, तर्क और तीक्ष्णता अरुण जेटली की विद्वता के सबसे बड़े आयाम रहे हैं.

नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली से जुड़ा एक किस्सा है जो बेहद कम लोग ही जानते हैं, दरअसल 2002 में गुजरात दंगे के बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी नरेन्द्र मोदी को गुजरात के सीएम पद से इस्तीफा दिलवाने पर अड़े थे तो जेटली भी उन नेताओं में शामिल थे जो नरेन्द्र मोदी के पक्ष में मजबूती से खड़े रहें.

क्या हुआ था गोवा कार्यकारिणी में
2002 में ही गोवा में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई. ऐसा तय माना जा रहा था कि आज नरेन्द्र मोदी को सीएम पद से इस्तीफे का ऑफर करना पड़ सकता है. लेकिन अरुण जेटली और प्रमोद महाजन की जुगलबंदी ने गोवा कार्यकारिणी में माहौल नरेन्द्र मोदी के पक्ष में कर दिया और जैसे ही नरेन्द्र मोदी ने अपने इस्तीफे की पेशकश की तो बैठक में आये नेताओं और कार्यकर्ताओं ने नारे लगाना शुरू कर दिया. वाजपेयी हक्का-बक्का रह गए और उन्होंने माहौल को देखते हुए मन बदल लिया. लेकिन उन्होंने इसके लिए अरुण जेटली को कभी माफ नहीं किया.


छवि खराब करने की कोशिश
जानी-मानी पत्रकार और वर्षों तक बीजेपी को कवर करने वाली सबा नकवी ने अपनी किताब ‘शेड्स ऑफ़ सैफरन’ में कहा है कि उसके बाद पीएमओ से अरुण जेटली के खिलाफ ख़बरें प्लांट करवाई जाने लगीं.खुद इसमें खुद बृजेश मिश्र के स्तर से चीजों को डील किया जा रहा था और बकायदा आउटलुक मैगज़ीन में एक डमी पत्रकार की भर्ती करवाई गई थी. इसका मतलब अरुण जेटली की छवि को पीएमओ खराब करना चाह रहा था. बृजेश मिश्रा अटल बिहारी वाजपेयी के लिए उसी तरह थे जैसे पीएन हक्सर इंदिरा गांधी के लिए और नृपेन्द्र मिश्रा जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए.
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