केंद्र सरकार ने आतंक के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए देश के अंदर रहते हुए देश विरोधी गतिविधियां संचालित करने वाले कुख्यात संगठन पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) व उसके सहयोगी संगठनों रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, एनसीएचआरओ, नेशनल वीमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्वायर इंडिया फाउंडेशन, रिहेब फाउंडेंशन (केरल) को पांच साल के लिए उप्पा कानून के अंतर्गत प्रतिबंधित कर दिया गया है। केंद्र सरकार द्वारा जारी की गयी सूचना के अनुसार अब राज्य सरकारें भी पीएफआई व उसके सहयोगी संगठनों के सदस्यों व समर्थकों पर बेहिचक कड़ी कानूनी कार्यवाही कर सकती हैं और राज्य स्तर पर भी प्रतिबंध लगा सकती हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है क्योंकि पीएफआई की गतिविधियां दिन प्रतिदिन राष्ट्रघाती होती जा रही थीं। स्मरणीय है कि वर्ष 2012 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे उस समय भी एनआईए ने पीएफआई को प्रतिबंधित करने की मांग की थी लेकिन तब मुस्लिम तुष्टिकरण में संलिप्त मनमोहन सरकार ने एनआईए की मांग को दबा दिया था।
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गजट किये जाने के बाद इस विषय पर दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति भी प्रारंभ हो गई है। यह बहुत ही दुखद बात है कि जो संगठन राष्ट्र तथा समाज के लिए खतरा बन गये थे आज उन संगठनों के साथ कांग्रेस, सपा सहित कई सेकुलर दल खड़े दिखाई पड़ रहे हैं। जब पीएफआई व उसके सहयोगी संगठनों के खिलाफ देश की जांच एजेंसियां छापामार कार्यवाही कर रही थीं और लोगों की गिरफ्तारियां की जा रही थीं उस समय भी सेकुलर दलों के यह लोग मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर उसका विरोध कर रहे थे। पीएफआई पर बैन लगने के साथ ही आज सेकुलर दलों के नेताओें के चेहरों से सारी मुस्कान छिन गयी क्योंकि अब इन दलों के वे सभी षड्यंत्र खुलने जा रहे हैं जो वह पीएफआई जैसे संगठनों के बल पर रच रहे थे।
एनआईए को पीएफआई के खिलाफ पक्के सबूत मिले हैं जिसमें विस्फोटक कैसे बनाएं जैसे सीक्रेट चैट वाले दस्तावेज शामिल हैं। पीएफ़आई के काडर आतंकी और हिंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं और उनके आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनो से संबंध हैं, ये एक समुदाय को कट्टर बनाने का गुप्त एजेंडा चला रहे थे। ऐसे तमाम साक्ष्यों के आधार पर इन संगठनों पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया है। जब देश के अलग-अलग हिस्सों में दंगों, हिंसा और राजनैतिक हत्याओं में पीएफआई का नाम आता रहा है उस समय कांग्रेस का साथ पीएफआई के साथ जाना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व शर्मनाक स्थिति है।
समाजवादी पार्टी के मुस्लिम सांसद व कांग्रेस के सांसद ही नहीं अपितु कई क्षेत्रीय दलों के नेता भी बड़ी बेशर्मी के साथ आतंक के खिलाफ कदमों का विरोध कर रहे हैं और आरोप लगा रहा है कि केंद्र सरकार लोगों का ध्यान मुददों से भटका रही है। और तो और बिहार में चारा घोटाले के सबसे बड़े आरोपी तथा जमानत पर बाहर बैठे लालू यादव जैसे नेता पीएफआई पर प्रतिबंधों का विरोध और संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। स्पष्ट है कि यह नेता मुस्लिम वोटबैंक के लालच में देश की सुरक्षा व अखंडता के साथ भी खिलवाड़ करते रहेंगे ऐसे तथाकथित नेता जेल के अंदर ही रहें तो ही देश के लिए अच्छा रहेगा।
पीएफआई का विवादों से गहरा नाता रहा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में दंगा, हिंसा, आगजनी, पत्थरबाज़ी और राजनैतिक हत्याओें में इस संगठन का नाम आता रहा है। उत्तर से दक्षिण भारत तक जब भी कोई बड़ी हिंसा या हत्या हुई है तब पीएफआई का नाम ही सामने आता है। हाल के दिनों में गई छापामारी से कई सनसनीखेज जानकारियां मिली हैं। पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआई अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर 2047 में भारत का इस्लामीकरण करने का षड़यंत्र रच रहा था जिसका खुलासा बिहार में फुलवारी शरीफ सहित कई जिलों में एनआईए की ओर से की गई छापामारी में प्राप्त दस्तावेजों से हुआ तथा उसके बाद पीएफआई के खिलाफ और तेजी से कार्यवाही की गई है। यह भी खुलासा हुआ है कि पीएफआई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व बीजेपी के कई नेताओं, मुख्यंमत्रियों, सहित संघ व विश्व हिंदू परिषद के नेताओं की हत्या की साजिश रच रहा था। पीएफआई ने अभी हाल ही में केरल के कोझीकोड मे एक रैली निकाली थी जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा व संघ विरोधी नारे लगाये गये थे। साथ ही एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक छोटा लड़का हाथ में पीएफआई का झंडा लेकर अयोध्या में फिर से बाबरी मस्जिद बनाने की बात कह रहा था।
देश की राजधानी दिल्ली में सीएए विरोधी प्रदर्शन, शाहीन बाग हिंसा और जहांगहीपुरी हिंसा से लेकर रामनवमी के अवसर पर देश के कई हिस्सों में जो हिंसा हुई थी उन सबकी साजिश के पीछे पीएफआई ही था। किसान आंदोलन व उसमें हुई हिंसा में भी पीएफआई का ही कनेक्शन पता चल रहा है। राजस्थान की करौली हिंसा, कानपुर व यूपी के कई जिलों में हुई हिंसा में भी पीएफआई का ही हाथ रहा है। इस बात के भी सबूत मिल रहे हैं कि विश्व विद्यालयों में “हम लेकर रहेंगे आजादी“ के जो नारे लगाए जा रहे थे उसमें भी पीएफआई अपने संहयोगी संगठन सी एफ़ आई के माध्यम से संलिप्त रहा है। भारत में हिजाब विवाद को भड़काने में भी पीएफआई का हाथ रहा है। अभी बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा के तथाकथित बयान को लेकर जो विरोध प्रदर्शन हुए उसमें भी पीएफआई का हाथ था और इस विवाद की आड़ में राजस्थान के कन्हैयालाल से लेकर महाराष्ट्र मे उमेश कोल्हे तक जितनी भी हत्याएं हुईं उनमें भी पीएफआई ही शामिल है। पीएफआई के कार्यकर्ता कई आतंकवादी गतिविधियों के साथ 27 निर्दोष लोगों की हत्या में भी शामिल रहे हैं। इनमे संजीत, नंदू , अभिमन्यु, बिबिन (केरल) शरथ, आर. रूद्रेश, प्रवीण पुजारी और प्रवीण नेत्तारू (कर्नाटक) और तमिलनाडु में शशि कुमार जैसे युवाओं की हत्या में भी यह संगठन शामिल रहा है।
पीएफआई की आपराधिक व आतंकी गतिविधियों का इतिहास बहुत पुराना है तथा वर्ष 2012 में ही केरल की कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि हत्या के 27 मामलों में इस संगठन का सीधा हाथ है इनमें से अधिकतर मामले संघ और सीपीएम के कार्यकर्ताओं की हत्या से जुड़े थे। तब सरकार ने कोर्ट में बताया था कि यह पीएफआई और कुछ नहीं अपितु प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का ही नया रूप है। इस संगठन के अलकायदा और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों से लिंक होने के भी आरोप लगते रहे हैं।
वर्ष 2014 में भी केरल सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि एनडीएफ और पीएफआई के कार्यकर्ता 27 सांप्रदायिक हत्याओं और 86 हत्याओं के प्रयास और राज्य में दर्ज 106 सांपद्रायिक मामलों में शामिल रहा है। आबिद पाशा नाम के एक बढ़ई को हत्या के छह मामलों में गिरफ्तार किया गया था। नवंबर 2017 में केरल पुलिस को पता चला था कि संगठन के छह युवा आईएसआईएस जैसे कुख्यात संगठन में शामिल हो गये थे। यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि आज उसी केरल के तथाकथित सेकुलर नेता पीएफआई पर प्रतिबंधों का विरोध और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं।
विदेशी फंडिंग के बल पर भारत में धर्मांतरण व लव जेहाद को फैलाने की साजिश भी यह संगठन रचता रहता था। देश में लव जेहाद को फैलाने के लिए युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए दस लाख रूपए तक की रकम दी जाती थी। वर्ष 2020 में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों में पीएफआई ही शामिल था और फंडिंग की व्यवस्था भी इसी संगठन की ओर से की गई थी। अभी हाल ही में निजामाबाद जिले में ऐसे 25 लोगों पर एफआईआर दर्ज की गयी जो लोग धर्म के नाम पर हिंसा को बढ़ावा देना चाह रहे थे और इसके लिए जूडो कराटे की ट्रेनिंग भी दी जा रही थी।
उत्तर प्रदेश में हाथरस हिंसा में भी पीफआई सक्रिय रहा था और इसके सहयोगी संगठन एसडीपीआई के नेता मोहम्मद बेग और पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद वसीम के साथ ही इससे जुड़े अन्य लोगों ने व्हाटसएप ग्रुप बना रखे थे । इन ग्रुपों में लखनऊ बाराबंकी बहराइच गोंडा उन्नाव मथुरा काशी के अलावा पूर्वांचल व पश्चिमी उप्र के कई जनपदों और बिहार के सीमांचल तक के युवा जुड़े थे। उन्हें जेहाद और कटटरता का पाठ पढ़ाया जाता था। यह खुलासा इन लोगों के मोबाइल से हुआ है। ये लोग गैर मुस्लिम धर्मो के लिए आग उगलते थे और गैर मुस्लिम महिलाओं को अपने साथ जोड़ने पर बल देते थे ताकि उनका धर्म परिवर्तन कराया जा सके।
अभी हाल ही मे ज्ञानवापी विवाद में भी यह संगठन कूद पड़ा था और वहां प्राप्त शिवलिंग को फव्वारा बताकर समाज का वातावरण बिगाड़ने की भरपूर कोशिश की थी। पीएफआई से सम्बद्ध कुछ युवाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर उर्स आदि करने के लिए याचिका भी लगा रखी है। यह संगठन राजनीति और न्यायपालिका के अंदर भी अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रहा था और उसमें कुछ हद तक सफल भी हो रहा था। इस संगठन के राजनैतिक ग्रुप के कई लोग चुनाव लड़ भी चुके हैं तथा राजनैतिक बयानबाज़ी में ही माहिर हैं। यह संगठन अपने आपको दलितो व अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा हितैषी मानता है और खाड़ी के देशों में अपना एक समाचार पत्र भी निकालता है जिसमें वह भारत में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों की झूठी कहानियां, लेख व समाचार आदि परोसता है।
आज मुस्लिम वोटबैंक की लालच में देश के सेकुलर दल पीएफआई के लिए आंसू बहा रहे हैं। यह वही लोग हैं जो बाटला हाउस एनकाउंटर में भी रोये थे और याकूब मेनन को बचाने के लिए रात में सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच गये थे। जिन विरोधी दलों के कई नेता आज जमानत पर बाहर घूम रहे हैं उन सभी का हाथ पीएफआई के ही साथ दिखाई पड़ रहा है।
( मृत्युंजय दीक्षित, लेखक राजनीतिक जानकार व स्तंभकार हैं.)
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