नए कृषि कानूनों (Farm Law 2020) के खिलाफ कई दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसान आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है. केंद्र सरकार और किसान संगठनों की कई बार वार्ता हो चुकी, लेकिन नतीजा शून्य रहा. किसान लगातार मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार इन तीनों कानूनों को वापस ले. एक तरफ किसान अपनी मांगों पर डटे हुए हैं तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार कानून वापस लेने की बजाए सिर्फ संशोधन का प्रस्ताव दे रही है. इसी बीच भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मांग की है कि कोई भी कानून बनाने से पहले 60 दिन पहले उसका ड्राफ्ट पब्लिक डोमेन में डाला जाए. उऩका कहना है कि कानून बनाने की वर्तमान प्रक्रिया अलोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि असंवैधानिक भी है. उपाध्याय अपनी चिट्ठी में लिखते हैं…
कानून बनाने की वर्तमान प्रक्रिया अलोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि असंवैधानिक भी है. सचिव ड्राफ्ट बना देता है, मंत्रिमंडल उसे पास कर देता है और जब सदन में बहस होती है तब जाकर आम जनता को उस कानून के बारे में थोड़ा बहुत पता चलता है.
कई बार तो पहले से लागू कानून में संशोधन करने की बजाय एक नया कानून ही बना दिया जाता है. उदाहरण के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 493 में यदि एक वाक्य जोड़ दिया जाए तो लव जिहाद पूरे देश में गंभीर अपराध बन जाएगा और धारा 494 में से यदि एक वाक्य निकाल दिया जाए तो बहुविवाह सभी नागरिकों के लिए गंभीर अपराध बन जायेगा. इसी प्रकार धारा 498A में यदि एक वाक्य जोड़ दिया जाता तो तीन तलाक के लिए अलग से कानून बनाना ही नहीं पड़ता.
कृषि सुधार से संबंधित तीनों कानून किसान हितैसी और बिचौलिया विरोधी हैं लेकिन कानून बनाने के पहले इनका ड्राफ्ट जनता के सामने नहीं रखा गया इसीलिए किसान विरोधी और बिचौलियों के समर्थक इन ऐतिहासिक कानूनों के बारे में भ्रम फैलाने में सफल हो गए. वर्तमान समय में मंत्रिमंडल में चर्चा करने से पहले कानून का ड्राफ्ट जनता के सामने नहीं रखा जाता है इसलिए कानून के बारे में आम जनता को गुमराह करना बहुत आसान है.
माननीय प्रधानमंत्री जी, कानून बनाने की वर्तमान प्रक्रिया में तत्काल सुधार की आवश्यकता है. राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों को छोड़कर जनहित के विषयों पर जब भी कोई कानून बनाना हो तो कम से कम 60 दिन पहले उसका ड्राफ्ट संबंधित मंत्रालय की वेबसाइट पर डालना बहुत जरूरी है. इससे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चर्चा शुरू होगी, अखबारों में लेख लिखा जाएगा, एक्सपर्ट अपना ओपिनियन देंगे, विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में चर्चा होगी, प्रधान-पार्षद अपने क्षेत्र में चर्चा करेंगे तथा विधायक और सांसद भी आम जनता के साथ सीधा संवाद करेंगे.
जब कानून के ड्राफ्ट पर 2 महीने तक लगातार चर्चा होगी तब सांसद विधायक और मंत्रीयों को भी कानून के सभी पहलुओं का ज्ञान होगा. इस प्रकार सरकार को बहुत अच्छे अच्छे सुझाव मिलेंगे और एक नया ड्राफ्ट बनाया जा सकेगा. जब संशोधित ड्राफ्ट पर मंत्रिमंडल में चर्चा होगी तो मंत्रीगण के सुझावों को भी ड्राफ्ट में शामिल कर लिया तब वह और अच्छा बनेगा और जब इस ड्राफ्ट पर सदन में चर्चा होगी और सदस्यों के सुझावों को शामिल करने के बाद कानून बनेगा तब उसमें गलती की संभावना बहुत कम होगी.
वर्तमान समय में ज्यादातर कानून कोर्ट में चैलेंज कर दिए जाते हैं. जब उपरोक्त व्यवस्था लागू हो जाएगी तब कोर्ट भी याचिकाकर्ता से पूछेगी कि जिस ग्राउंड पर याचिका दाखिल की गई है उसे सरकार को पहले ही क्यों नहीं बताया. जब कानून निर्माण में आम जनता की भागीदारी बढ़ेगी तब कानून ज्यादा अच्छा और अधिक प्रभावी होगा, लोकतंत्र मजबूत होगा, आम जनता को गुमराह करना भी कठिन हो जाएगा तथा कोर्ट में जनहित याचिकाओं की संख्या भी कम होगी.
इसलिए आपसे विनम्र निवेदन है कि सभी मंत्रियों को निर्देश दें कि जब भी कोई नया कानून बनाना हो तो 60 दिन पहले वे प्रेस कांफ्रेंस कर आम जनता को कानून के बारे में बताएं और ड्राफ्ट वेबसाइट पर डाल दें.
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