बिजनौर जिले के बढ़ापुर थाने से गैरहाजिर पुलिस कांस्टेबल कुंवर पाल सिंह 15 नवंबर 2018 को एक महीने की छुट्टी लेकर अपने गांव गया था। कांस्टेबल कुंवर पाल सिंह को 14 दिसंबर 2018 को वापस आकर ड्यूटी ज्वाइन करनी थी, लेकिन वह वापस नहीं लौटा। ऐसे में जब थाने से संपर्क किया गया, तब भी उसका कुछ पता नहीं चला।
अधिकारियों को बिना बताए कोर्ट में पेश
उधर, एक अप्रैल 2019 को लापरवाही मानते हुए एसपी ने सिपाही को निलंबित कर दिया और पूरे प्रकरण की जांच नगीना सीओ को सौंप दी गई। वहीं, सीओ की जांच में पता चला कि 1987 के मेरठ के हाशिमपुरा कांड में कांस्टेबल कुंवर पाल सिंह आरोपी था। कोर्ट से उसे भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उस दौरान कुंवर पाल सिंह पीएसी में था, बाद में उसकी तैनाती थाने में हो गई थी।
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उच्च न्यायालय नई दिल्ली के आदेश के अनुपालन में 27 नवंबर 18 को कांस्टेबल कुंवर पाल सिंह अपर सत्र न्यायाधीश- 4 पश्चिमी जिला तीस हजारी नई दिल्ली के समक्ष बिना अधिकारियों को बताए आत्मसमर्पण कर दिया, तभी से वह तिहाड़ जेल में सजा काट रहा है।
ये है हाशिमपुरा नरसंहार का मामला
गौरतलब है कि साल 1986 में केंद्र सरकार ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दिया था। इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माहौल गरमा गया। इसके बाद 14 अप्रैल 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शूरू हो गया और कई लोगों की हत्या हुई। दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हत्या, आगजनी और लूट की वारदातें होने लगीं थी।
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इसके बाद भी जब मेरठ में दंगे की चिंगारी शांत नहीं हुई थी। इन सबको देखते हुए मई के महीने में मेरठ शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा और शहर में सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला। जानकारी के मुताबिक, इसी बीच 22 मई 1987 को पुलिस, पीएसी और मिलिट्री ने हाशिमपुरा मोहल्ले में सर्च अभियान चलाया।
जिन 16 जवानों को आरोपी बनाया गया है उन पर आरोप है कि इन लोगों ने यहां रहने वाले लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले गए और फिर शाम के वक्त एक ट्रक को दिल्ली रोड पर मुरादनगर गंग नहर पर लेकर पहुंचे। जानकारी के मुताबिक, इस ट्रक में लगभग 50 लोग थे जिन्हें उतारकर जवानों ने पहले गोली मारी और फिर गंग नहर में फेंक दिया।
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