अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर (Ram Mandir) बन रहा लेकिन इस भव्य और दिव्य राम मंदिर के लिए बहुत से लोगों ने बलिदान दिया है. 6 दिसंबर 1992 को मस्जिदनुमा विवादित ढांचे (Babri Masjid) का विध्वंस करके मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के शानदार मन्दिर के लिए जमीन की सफाई का महान काम शुरू हुआ था. ये घटना अब भले ही कई साल पुरानी हो गयी हो लेकिन जिस भव्य मंदिर का निर्माण आज सम्भव हो सका है वो इसी कलंक के मिटने का परिणाम है. मस्जिदनुमा विवादित ढांचे गिराने में कईयों ने बलिदान दिया, इन्हीं बलिदानों में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का नाम भी आता है उन्होंने मंदिर के लिए अपना सत्ता कुर्बान कर दी थी. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे कल्याण सिंह (Kalyan Singh) साल 1932 में जनवरी में अतरौली में जन्मे थे. पूरे प्रदेश में कल्याण सिंह जैसा दिग्गज नेता के चर्चे रहे हैं. आज उनकी पुण्यतिथि है. इसी के चलते आइए जानते हैं इसी से जुड़ा एक किस्सा जिसकी उन दिनों खूब सुर्खियां बटोरी थीं.
30 अक्टूबर, 1990 को जब मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलवा दी थी. प्रशासन कारसेवकों के साथ सख्त रवैया अपना रहा था. ऐसे में बीजेपी ने उनका मुकाबला करने के लिए कल्याण सिंह को आगे किया. कल्याण सिंह बीजेपी में अटल बिहारी बाजपेयी के बाद दूसरे ऐसे नेता थे जिनके भाषणों को सुनने के लिए लोग बेताब रहते थे. कल्याण सिंह उग्र तेवर में बोलते थे, उनकी यही अदा लोगों को पसंद आती.
कल्याण सिंह ने एक साल में बीजेपी को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि पार्टी ने 1991 में अपने दम पर यूपी में सरकार बना ली. कल्याण सिंह यूपी में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने. सीबीआई में दायर आरोप पत्र के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने के ठीक बाद कल्याण सिंह ने अपने सहयोगियों के साथ अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर का निर्माण करने के लिए शपथ ली.
कल्याण सिंह सरकार के एक साल भी नहीं गुजरे थे कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया. कल्याण सिंह के प्रमुख सचिव रहे सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी योगेंद्र नारायण ने मीडिया से तत्कालीन घटनाक्रम साझा किए थे. जिसके मुताबिक तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अपने कक्ष में वरिष्ठ मंत्रियों लालजी टंडन और ओमप्रकाश सिंह के साथ लंच कर रहे थे और टीवी चालू था. सभी देख रहे थे कि कारसेवक विवादित ढांचे पर चढ़ चुके हैं. वे गुंबद गिराने को कुदालें चला रहे थे. कल्याण सिंह के चेहरे पर चिंता की लकीरें तो थीं, लेकिन वे अधीर कतई नहीं थे. तभी तत्कालीन डीजीपी एसएम त्रिपाठी लगभग भागते हुए मुख्यमंत्री आवास पहुंचे.
कारसेवकों पर नहीं दी फायरिंग की अनुमति
डीजीपी ने मुख्यमंत्री से तुरंत मिलने की इजाजत मांगी, लेकिन सिंह ने भोजन तक इंतजार करने को कहा. भोजन के बाद बुलाया तो डीजीपी बोले कि कारसेवक विवादित ढांचे को तोड़ रहे हैं. फायरिंग की अनुमति चाहिए. सिंह ने पूछा- फायरिंग में कितने लोग मरेंगे? डीजीपी बोले- कारसेवकों ने विवादित स्थल को घेर लिया है. फायरिंग हुई तो बहुत लोग मारे जाएंगे. यह सुनते ही सिंह ने कह दिया कि आंसू गैस या लाठीचार्ज जैसे उपाय कर सकते हैं. लेकिन मैं फायरिंग की अनुमति नहीं दूंगा. लाइये, यह बात मैं कागज पर भी लिखकर दे दूं कि आपने गोली चलाने की अनुमति मांगी लेकिन मैंने नहीं दी.
राम मंदिर के नाम बनी थी सरकार, मकसद पूरा
यह सुनकर डीजीपी लौट गए और सिंह टीवी पर देखते रहे कि कारसेवक ढांचे को ढहाते जा रहे थे. …और आखिरी ईंट गिरते ही उन्होंने अपना मुख्यमंत्री वाला राइटिंग पैड मंगाकर इस्तीफा लिख डाला. उस दौरान कल्याण सिंह ने कहा था कि ये सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ. ऐसे में सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान. अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने और उसकी रक्षा न करने के लिए कल्याण सिंह को एक दिन की सजा मिली. वहीं पूर्व प्रमुख सचिव दावे के साथ कहते हैं कि कल्याण सिंह जान-बूझकर विवादित ढांचा गिरवाना नहीं चाहते थे. लेकिन उस दिन हालात ऐसे बने कि उन्होंने कारसेवकों का खून बहाने के बजाय ढांचे का ढह जाना उचित समझा.
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