PDA छोड़ ‘ब्राह्मण पॉलिटिक्स’ पर क्यों उतर आए अखिलेश ?

Brahmin Politics in UP: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद से सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के तेवर कुछ बदले-बदले नजर आ रहे हैं. वह लगातार बीजेपी पर ताबड़तोड़ हमला बोल रहे हैं. वहीं इसी बीच वे उन्होंने पीडीए का विस्तारीकरण करते दिख रहे हैं. इसके लिए अखिलेश ब्राह्मणों को अपनी पार्टी से जोड़ना शुरू कर दिया है. उन्‍होंने वरिष्‍ठ सपा नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय को यूपी विधानसभा में अपनी जगह नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी दी. इसके बाद हरिशंकर तिवारी मामले पर समाजवादाी पार्टी ने आक्रामक रूख अपनाया यही नहीं आज पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक जनेश्वर मिश्र की जयंती पर कई बड़े कार्यक्रम किए जो ये दिखाता है कि अखिलेश यादव 2027 यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के वोटबैंक को खिसकाने की कवायद में लग गए हैं.

अखिलेश के इन फैसलों को राजनीतिक जानकार यूपी की 10 सीटों पर होने वाली उपचुनाव के साथ ही 2027 की तैयारियों की कवायद मान रहे हैं, ताकि अखिलेश को मुस्लिम यादव या किसी अन्य किसी खास वर्ग से जोड़कर देखने की बजाय सभी वर्गों में पकड़ रखने वाली पार्टी बनाया जाए. अखिलेश यादव जान रहे हैं कि पश्चिमी यूपी से पूर्वांचल तक बड़ी कामयाबी हासिल करनी है तो भाजपा की तरह सभी वर्गों में समाजवादी पार्टी को पैठ मजबूत करनी होगी.

दरअसल, अखिलेश यादव ने यूपी विधानसभा में माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर सबको चौंका दिया था. अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की. इतना ही नहीं पिछले दिनों पूर्वांचल के ब्राह्मण नेता रहे हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा के लिए बनाए गए चबूतरे को ध्‍वस्‍त करने पर भड़क गए थे. अखिलेश यादव ने हरिशंकर तिवारी के जरिए योगी सरकार को घेरने की भी कोशिश की.

अखिलेश यादव के ये कदम इसलिए चौंका रहे हैं क्योंकि सपा लोकसभा चुनाव के पहले से ही पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) के फार्मूले पर चल रही थी. इसे सपा के मुस्लिम-यादव वोट बैंक का विस्तार माना गया था.सपा की पीडीए फार्मूले की वजह से लोकसभा चुनाव में परिणाम भी बेहतर आए थे. सपा ने 37 सीटें जीतकर बीजेपी को काफी पीछे धकेल दिया था. सपा की यह जीत कितनी बड़ी थी, उसे इस तरह समझ सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में मिली इस हार की वजह से बीजेपी अकेले के दम पर बहुमत नहीं हासिल कर पाई. सपा ने बीजेपी को सबसे बड़ा झटका फैजाबाद में दिया. इसी सीट में अयोध्या आती है. बीजेपी ने अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के दम पूरे देश में वोट मांगा था, लेकिन उसे अयोध्या में ही हार मिली. सपा की इस जीत की चर्चा पूरे देश में हुई.लोकसभा चुनाव में मिली इस जीत के पीछे पीडीए का हाथ बताया गया.

सपा की इस जीत में केवल पीडीए का ही हाथ नहीं था. उसे उन सवर्ण वोटरों का भी साथ मिला था, जो बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. इसमें बड़ी संख्या ब्राह्मण मतदाताओं की है. प्रदेश में ब्राह्मण आबादी करीब 10 फीसदी मानी जाती है. प्रदेश की 100 से अधिक सीटों पर ब्राह्मण वोट काफी प्रभावी हैं. इनमें पूर्वांचल का इलाका प्रमुख है.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों की सियासी ताकत को नजरअंदाज कर पाना मुश्किल है. माना जाता है कि सूबे में 2007 में बनी मायावती की बहुमत की सरकार उनकी सोशल इंजीनियरिंग का कमाल था. इसमें ब्राह्मणों का योगदान ज्यादा था. इसके लिए सतीश मिश्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस वजह से वो काफी समय तक मायावती की करीबी बने रहे. वहीं 2012 में बनी समाजवादी पार्टी की सरकार और 2017 में बनी बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में भी ब्राह्मण समुदाय की भूमिका अहम थी.ऐसे में अखिलेश यादव को लगने लगा है कि पीडीए की राजनीति से जितना फायदा उन्हें मिला है, वैसे में अगर ब्राह्मण भी उसके साथ आ जाएं तो 2027 में सपा की सरकार आसानी से बन सकती है.

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