पूर्वांचल में बृजेश सिंह बनाम धनंजय सिंह!

पूर्वांचल (Purvanchal) की राजनीति हमेशा से चर्चा में रही है। यहां की सियासत सीधी नहीं होती, बल्कि कई परतों में चलती है। गांव, पंचायत, जिला और फिर विधानसभा, हर स्तर पर राजनीति की अपनी अलग चाल होती है। जैसे-जैसे 2027 का यूपी विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे पूर्वांचल में राजनीतिक हलचल तेज होती जा रही है। इस बार चर्चा सिर्फ बड़े नेताओं की नहीं, बल्कि उनके परिवारों की भी है। एक तरफ ब्रजेश सिंह (Brijesh Singh) हैं, तो दूसरी तरफ धनंजय सिंह (Dhananjay Singh) । दोनों के रास्ते अलग हैं, लेकिन मंजिल एक ही,राजनीतिक पकड़ को और मजबूत करना।

दरअसल, एक इंटरव्यू के दौरान पूर्व सांसद धनंजय सिंह से पूछा गया कि बृजेश सिंह के परिवार के लोग जिला पंचायत का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और लोग कह रहे हैं कि जौनपुर में राउंड 2 होगा। धनंजय सिंह बनाम बृजेश सिंह। इस पर धनंजय सिंह कहते हैं कि स्वागत है लोकतंत्र है…जिसकी इच्छा हो आकर लड़े चुनाव। वहीं, दूसरी तरफ एक और इंटरव्यू के दौरान जब बृजेश सिंह से पूछा गया कि क्या वो जौनपुर से चुनाव लड़ेंगे तो उन्होंने कहा कि चुनाव तो लड़ा ही जाएगी, लेकिन कहां से लड़ेंगे ये अभी तय नहीं है, पार्टी भी उसी वक्त तय होगी।

इस बार सियासत का अखाड़ा जिला पंचायत चुनाव बनने जा रहा है। खबर है कि ब्रजेश सिंह की बेटी प्रियंका सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगी। वहीं धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला सिंह भी जिला पंचायत चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही हैं। इन दोनों खबरों ने यह साफ कर दिया है कि पंचायत चुनाव को हल्के में नहीं लिया जा रहा। दरअसल, यही चुनाव 2027 की नींव रखेंगे। पूर्वांचल में लोग जानते हैं कि पंचायत चुनाव सिर्फ गांव के विकास का सवाल नहीं होते।

ये चुनाव बताते हैं कि किस नेता की जमीन मजबूत है और किसकी पकड़ कमजोर पड़ रही है। इसी वजह से ब्रजेश सिंह और धनंजय सिंह दोनों ने अपने-अपने परिवार को आगे कर दिया है। ब्रजेश सिंह की पहचान एक ऐसे व्यक्ति की रही है जो कम बोलते हैं और ज्यादा काम करते हैं। वह मंचों पर कम दिखाई देते हैं, लेकिन पर्दे के पीछे उनकी भूमिका हमेशा चर्चा में रहती है। उनके बारे में कहा जाता है कि वह सियासत को शांति से खेलते हैं।

अब उनकी बेटी का जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ना इसी सोच का हिस्सा माना जा रहा है। यह कदम दिखाता है कि वह अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं। उनकी बेटी का मैदान में उतरना कई मायनों में अहम है। एक तो यह कि इससे राजनीति में नई पीढ़ी की एंट्री होती है। दूसरा यह कि एक युवा महिला चेहरा गांव और जिला स्तर पर लोगों को आकर्षित कर सकता है। पंचायत चुनावों में महिला उम्मीदवारों को लेकर एक अलग भरोसा भी देखने को मिलता है।

लोग उम्मीद करते हैं कि महिला प्रतिनिधि गांव की समस्याओं को बेहतर तरीके से समझेंगी। ब्रजेश सिंह की रणनीति साफ दिखती है। वह चाहते हैं कि पंचायत चुनाव बिना ज्यादा शोर-शराबे के उनके पक्ष में जाए। उनके समर्थक गांव-गांव जाकर लोगों से संपर्क कर रहे हैं। जातीय संतुलन, पुराने रिश्ते और स्थानीय प्रभावशाली लोगों का समर्थन उनकी सबसे बड़ी ताकत मानी जा रही है। वह खुला टकराव नहीं चाहते, बल्कि चुपचाप बढ़त बनाना चाहते हैं।

दूसरी ओर धनंजय सिंह की राजनीति बिल्कुल अलग ढंग की रही है। वह हमेशा सीधे जनता के बीच रहने वाले नेता माने जाते हैं। उनके समर्थक उन्हें जमीन से जुड़ा नेता बताते हैं। धनंजय सिंह का मानना रहा है कि राजनीति लोगों से दूर रहकर नहीं की जा सकती। यही वजह है कि उनकी पत्नी श्रीकला सिंह का पंचायत चुनाव लड़ना भी इसी सोच का हिस्सा है। श्रीकला सिंह का चुनाव मैदान में उतरना धनंजय सिंह के लिए भावनात्मक और राजनीतिक दोनों तरह से अहम है।

यह संदेश दिया जा रहा है कि उनका परिवार पूरी मजबूती से राजनीति में मौजूद है। पंचायत चुनावों में महिलाएं बड़ी संख्या में वोट करती हैं और महिला उम्मीदवार को अपने करीब मानती हैं। इसका फायदा श्रीकला सिंह को मिल सकता है। धनंजय सिंह की तैयारी ज्यादा खुली दिखाई देती है। वह समर्थकों के साथ बैठकों में शामिल हो रहे हैं। लोगों से सीधे मिल रहे हैं और यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनका जनाधार आज भी कायम है। पंचायत चुनाव के जरिए वह यह साबित करना चाहते हैं कि 2027 में उनकी भूमिका अहम रहने वाली है।

अगर श्रीकला सिंह जीतती हैं, तो यह धनंजय सिंह के लिए बड़ी जीत होगी। यह संदेश जाएगा कि उनका जनाधार कमजोर नहीं पड़ा है। इससे वह 2027 में मजबूत दावेदार के रूप में सामने आ सकते हैं। राजनीतिक दलों की नजर ऐसे ही नेताओं पर रहती है जो चुनाव जीतने की क्षमता रखते हों। पूर्वांचल की यह लड़ाई अब सिर्फ दो नेताओं की नहीं रही। यह दो परिवारों की सियासी टक्कर बनती जा रही है। एक तरफ शांत और रणनीतिक राजनीति है, दूसरी तरफ खुली और सीधी राजनीति। जनता दोनों को देख रही है और अपने हिसाब से फैसला करने की तैयारी में है।

2027 का विधानसभा चुनाव अभी दूर है, लेकिन उसकी कहानी पंचायत चुनाव से ही लिखी जा रही है। पूर्वांचल की राजनीति में यह दौर बेहद दिलचस्प है। आने वाले समय में साफ होगा कि जनता किस रास्ते को चुनती है। लेकिन एक बात तो तय है कि ब्रजेश सिंह और धनंजय सिंह की यह जंग पूर्वांचल की सियासत को लंबे समय तक गर्म रखेगी और 2027 तक इसकी गूंज सुनाई देती रहेगी।

अब बात जिला पंचायत चुनाव की। कहा जा रहा है कि 2026 में उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होंगे। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सदस्यों के वोट से होता है। जौनपुर में अगर ब्रजेश की बेटी और श्रीकला आमने-सामने आईं तो यह बड़ी टक्कर होगी। दोनों फैमिली ठाकुर हैं, इसलिए वोट बंट सकते हैं। ठेके और विकास के कामों पर असर पड़ेगा। ब्रजेश का गढ़ वाराणसी-गाजीपुर है, लेकिन जौनपुर में एंट्री से नया खेल बनेगा। धनंजय का कहना है कि लोकतंत्र है, कोई भी लड़ सकता है, लेकिन हम जीतेंगे। यह चुनाव 2027 का ट्रेलर जैसा होगा। जीतने वाला लोकल स्तर पर मजबूत हो जाएगा और विधानसभा चुनाव में फायदा मिलेगा।

2025 का कफ सिरप कांड इस जंग में नया मोड़ लाया है। यह मामला कोडीन वाले कफ सिरप की गैरकानूनी बिक्री का है। पुलिस ने कई लोगों को पकड़ा, जैसे आलोक सिंह और अमित सिंह टाटा। अमित टाटा की कुछ तस्वीरें धनंजय के साथ वायरल हुईं। धनंजय ने साफ कहा कि वे पुराने जानकार हैं, लेकिन इस धंधे से उनका कोई लेना-देना नहीं। उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की और इसे राजनीतिक साजिश बताया। धनंजय का नाम आने से उनकी छवि पर असर पड़ा, लेकिन उनके समर्थक इसे झूठा मानते हैं।

-ब्रजेश सिंह का इस कांड में सीधा नाम नहीं आया। कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि क्या ब्रजेश भी शामिल हैं, लेकिन कोई सबूत नहीं मिला। पुलिस जांच में ब्रजेश का जिक्र नहीं है। धनंजय ने एक इंटरव्यू में कफ सिरप कांड पर सफाई दी और कहा कि यह उनके खिलाफ साजिश है। इस विवाद से पूर्वांचल की राजनीति में हलचल है। विपक्षी पार्टियां इसे चुनाव में इस्तेमाल कर सकती हैं। लेकिन धनंजय मजबूत हैं और ठाकुर वोटों पर उनकी पकड़ बनी हुई है।

अब सवाल यह है कि पंचायत चुनाव में यह मामला कितना असर डालेगा। पूर्वांचल की सियासत को समझने वाले लोग कहते हैं कि गांव के चुनावों में रोजमर्रा की समस्याएं ज्यादा मायने रखती हैं। सड़क, पानी, नाली, राशन और स्थानीय दबदबा जैसे मुद्दे वोट तय करते हैं। फिर भी ऐसे मामले पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किए जाते और बातचीत में बने रहते हैं। जिला पंचायत चुनाव के नतीजे सीधे तौर पर 2027 के विधानसभा चुनाव की दिशा तय करेंगे। अगर ब्रजेश सिंह की बेटी जीतती हैं, तो यह माना जाएगा कि उनका नेटवर्क और पकड़ आज भी मजबूत है। इससे उनकी राजनीतिक ताकत और बढ़ेगी। बड़े दल भी उन्हें गंभीरता से लेंगे।

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