केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- SC/ST कर्मचारियों को प्रमोशन में मिलने वाला आरक्षण रद्द करने से पैदा होगी अशांति

केंद्र की मोदी सरकार ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में मिलने वाले आरक्षण पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को जवाब दिया है। केंद्र सरकार (Central Government) ने शीर्ष अदालत से कहा कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण (Reservation in Promotion) खत्म करने से असंतोष पैदा हो सकता है और मुकदमों की बाढ़ आ सकती है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ के समक्ष दायर हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि आरक्षण की नीति संविधान और इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून के अनुरूप है। केंद्र ने कहा है कि अगर इसकी अनुमति नहीं दी जाती है तो एससी-एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के लाभों को वापस लेने पड़ेंगे। इससे कर्मचारियों के वेतन का पुनर्निर्धारण होगा।

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केंद्र सरकार ने कहा कि सेवानिवृत्त कर्मियों से अतिरिक्त वेतन व पेंशन की वसूली करनी पड़ सकती है। इससे कई मुकदमे होंगे और कर्मचारियों में अशांति पैदा होगी। केंद्र ने तर्क दिया कि आरक्षण किसी तरह से प्रशासन को बाधित नहीं करता है। केंद्र ने अपने अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले 75 मंत्रालयों और विभागों के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि कुल 2755430 कर्मियों में से 479301 एससी, 214738 एसटी हैं व ओबीसी की संख्या 457148 है।

बता दें कि शीर्ष अदालत ने इससे पहले केंद्र सरकार से सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने से संबंधित समसामयिक आंकड़े बताते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने 28 जनवरी को एससी और एसटी को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए ‘कोई भी मानदंड निर्धारित करने’ से इनकार करते हुए कहा था कि उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का निर्धारण राज्य के विवेक पर निर्भर करता है।

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शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायालयों के लिए यह न तो कानूनी रूप से जरूरी है और न ही उचित है कि वे कार्यपालिका को उस क्षेत्र के संबंध में निर्देश या परामर्श जारी करें, जो संविधान के तहत विशेष रूप से उनके क्षेत्र में आता है।

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