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कांग्रेस की नई रणनीति: संगठन सृजन के जरिए जमीनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश

कभी पूरे देश पर राज करने वाली कांग्रेस आज मुख्य रूप से दक्षिण भारत की पार्टी बनकर रह गई है। उत्तर भारत में लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस अब बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने नए प्रभारी की नियुक्ति की, फिर प्रदेश अध्यक्ष भी बदल दिया। भूमिहार समाज से आने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह दलित समुदाय के राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। यह बदलाव राहुल गांधी की दलित वोट बैंक को साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतकर थोड़ी मजबूती दिखाई थी, लेकिन इसके बाद के चुनावी नतीजों ने पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। इससे राहुल गांधी की लोकसभा चुनाव के बाद बनी मजबूत छवि को भी झटका लगा।

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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने 27-28 मार्च और 3 अप्रैल को दिल्ली में 700 जिला कांग्रेस कमेटी (DCC) के अध्यक्षों की बैठक बुलाई है। पार्टी चाहती है कि डीसीसी को संगठन में केंद्रीय भूमिका मिले ताकि वे उम्मीदवार चयन और जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत कर सकें। इस रणनीति को सबसे पहले गुजरात में लागू किया जाएगा, जहां 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं।

केरल के वायनाड से पहली बार लोकसभा पहुंचीं प्रियंका गांधी वाड्रा और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने डीसीसी और बूथ कमेटियों को मजबूत करने पर जोर दिया है। पार्टी की महासचिवों और प्रभारियों की बैठक में इसे लेकर गहन चर्चा हुई। इस बैठक में मुकुल वासनिक की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई, जिसमें प्रियंका गांधी भी सदस्य हैं।

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कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बताया कि 8 अप्रैल को अहमदाबाद में कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक होगी और 9 अप्रैल को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) का सत्र आयोजित किया जाएगा। बेलगावी की ‘नव सत्याग्रह बैठक’ में यह तय किया गया था कि 2025 को ‘संगठन का वर्ष’ घोषित किया जाएगा और ‘संगठन सृजन कार्यक्रम’ चलाया जाएगा। इसी कड़ी में जिला कांग्रेस अध्यक्षों की बैठक बुलाई गई है।

कांग्रेस का फोकस अब संगठन को मजबूत करने और जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ बनाने पर है। डीसीसी और बूथ कमेटियों को मजबूत करने की यह रणनीति कितनी सफल होगी, यह तो आने वाले चुनावों में ही पता चलेगा। लेकिन अगर कांग्रेस उत्तर भारत में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाना चाहती है, तो उसे न सिर्फ संगठन बल्कि जनाधार को भी मजबूती से खड़ा करना होगा।

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