देवरिया बालिका गृहकांड मामले में बड़ा खुलासा सामने आया है. 90 दिनों तक चली विवेचना के दौरान SIT के हाथ कोई ऐसा सबूत नहीं मिला है जिससे वह यह साबित कर सके कि बालिका गृह में लड़कियों का यौन शोषण और देह व्यापार होता था. तथ्यों की बिना जांच पड़ताल किये यूपी पुलिस ने बालिका के बयान के आधार पर पर जो दावा किया गया था, वह एक दम खोखला साबित हुआ है. इस पूरे मामले में यूपी पुलिस का उतावलापन और अतिउत्साह सामने आया है, जिससे यूपी पुलिस की जमकर फजीयत हुई.
बता दें, बीती अगस्त सामने आये इस मामले को मुजफ्फरपुर कांड से जोड़ते हुए विपक्ष ने योगी सरकार को कठघरे में खड़ा करके दबाव बनाया. यहां तक कि यह मामला संसद तक में गूंजा जिस पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह तक को सफाई देनी पड़ गयी.
बालिका गृह से कुछ घंटे पहले फरार हुई 13 वर्षीय किशोरी के बयान को आधार बनाकर 5 अगस्त की रात 11 बजे आनन-फानन में प्रेस कांफ्रेंस करते हुए तत्कालीन एसपी रोहन पी कनय ने दावा किया था कि बालिका गृह में देह व्यापार के साक्ष्य मिले हैं. सीएम योगी ने मामले पर गंभीरता दिखाते हुए तत्काल एसआईटी गठित कर जांच सौंप दी थी. एडीजी क्राइम संजय सिंघल के नेतृत्व में गठित एसआईटी ने सभी आरोपियों को रिमांड पर लेकर तीन दिनों तक पूछताछ की.
शुरुआती जांच देखकर लगा कि आरोप साबित होंगे, लेकिन 90 दिनों तक चली विवेचना के बाद जो सामने आया वह बेहद चौंकेने वाला था. अब जब यौन शोषण और देह व्यापार का दावा खोखला निकल गया तो यूपी पुलिस खुद ही कठघरे में आ गई है.
अब आरोपियों पर सिर्फ जेजे एक्ट, जालसाजी, मारपीट सहित अन्य धाराओं में ही सुनवाई होगी. शुक्रवार को एसआईटी ने मामले की चार्जशीट न्यायालय में पेश की. लैंगिक अपराध से संबंधित मामला न होने के कारण पाक्सो कोर्ट ने एसआईटी को फटकारा. कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेने व रिमांड देने से इनकार कर दिया.
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