Ambedkar Jayanti 2023: भारतीय संविधान के निर्माताओं में प्रमुख, सामाजिक समरसता के प्रेरक भारतरत्न डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर (Dr BR Ambedkar) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू, मध्यप्रदेश में हुआ था। भीमराव जी के पिता रामजी सकपाल व माता भीमाबाई महार जाति के धर्मप्रेमी दम्पति थे जो उस समय अस्पृश्य मानी जाती थी। इस कारण उन्हें प्रारंभिक जीवन में प्रायः असमानता और अपमान का सामना करना पड़ा। आगे चलकर डॅा. आम्बेडकर सामाजिक समता, न्याय, अभिसरण जैसे समाज परिवर्तन के मुद्दों को प्रधानता दिलाने वाले विचारवान नेता बने।
शिक्षा व संघर्ष
जिस समय डॅा. आम्बेडकर जी की शिक्षा का प्रारम्भ हुआ उस समय समाज में इतनी भयंकर असमानता थी कि जिस विद्यालय में वे पढ़ने जाते थे वहां पर अस्पृश्य बच्चों को अलग बैठाया जाता था तथा उनकी शिक्षा पर विद्यालय के अध्यापक ध्यान भी नहीं देते थे न हीं उन्हें कोई सहायता दी जाती थी। उनको कक्षा के अंदर बैठने तक की अनुमति नहीं होती थी । वह संस्कृत पढ़ना चाहते थे लेकिन कोई पढ़ाने को तैयार नहीं हुआ किन्तु शिक्षा के प्रति अपने समर्पण के कारण इन कठिनाईयों को झेलने के बाद भी डा. आम्बेडकर ने अपनी शिक्षा पूरी की। 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास करके उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1923 में वे लंदन से बैरिस्टर की उपाधि लेकर भारत वापस आये और वकालत शुरू की। वे पहले ऐसे अस्पृश्य व्यक्ति बन गये जिन्होनें भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सफलता प्राप्त की।
राजनैतिक व सामाजिक जीवन
1923 में ही वे बंबई विधानसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। 1924 में भीमराव ने निर्धन और निर्बलों के उत्थान हेतु बहिष्कृत हितकारिणी सभा बनायी और संघर्ष का रास्ता अपनाया। 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की और 1937 में उनकी पार्टी ने केंद्रीय विधानसभा के चुनावों में 15 सीटें प्राप्त की। इसी वर्ष उन्होनें अपनी पुस्तक, “जाति का विनाश” भी प्रकाशित की जो न्यूयार्क में लिखे एक शोध पर आधारित थी। इस पुस्तक में उन्होनें हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होनें अस्पृश्य समुदाय के लोगों के लिए गांधी द्वारा रचित शब्द हरिजन की भी पुरजोर निंदा की। यह उन्हीं का प्रयास है कि आज यह शब्द पूरी तरह से प्रतिबंधित हो चुका है। उन्होनें अनेक पुस्तकें लिखीं तथा मूकनायक नामक एक पत्र भी निकाला। 1930 में नासिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश को लेकर उन्होंने सत्याग्रह किया। उन्होंने पूछा कि यदि भगवान सबके हैं तो उनके मंदिर में कुछ ही लोगों को प्रवेश क्यों दिया जाता है। अछूत वर्गों के अधिकारों के लिये उन्होनें कई बार कांग्रेस तथा ब्रिटिश शासन से संघर्ष किया।
1941 से 1945 के बीच उन्होंने अत्यधिक संख्या में पुस्तकें लिखीं और पर्चे प्रकाशित किये। जिसमें “थाट आफ पाकिस्तान” भी शामिल है। यह डा. आम्बेडकर ही थे जिन्होनें मुस्लिम लीग द्वारा की जा रही अलग पाकिस्तान की मांग की कड़ी आलोचना व विरोध किया।उन्होने मुस्लिम महिला समाज में व्याप्त दमनकारी पर्दा प्रथा की भी निंदा की। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद के लिए श्रममंत्री के रूप में भी कार्यरत रहे। भीमराव को विधिमंत्री भी बनाया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्होने संविधान निर्माण में महती भूमिका निभाई।
2 अगस्त 1947 को आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नये संविधान की रचना के लिये बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। संविधान निर्माण के कार्य को कड़ी मेहनत व लगन के साथ पूरा किया और सहयोगियों से सम्मान प्राप्त किया। उन्हीं के प्रयासों के चलते समाज के पिछड़े व कमजोर तबकों के लिये आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी लेकिन कुछ शर्तो के साथ। संविधान में छुआछूत के दण्डनीय अपराध घोषित होने के बाद भी उसकी बुराई समाज में बहुत गहराई तक जमी हुई थी। जिससे दुखी होकर उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ने और बौद्धधर्म ग्रहण करने का निर्णय लिया। यह जानकारी होते ही अनेक मुस्लिम और ईसाई नेता तरह- तरह के प्रलोभनों के साथ उनके पास पहुंचने लगे। लेकिन उन्हें लगा कि इन लोगों के पास जाने का मतलब देशद्रोह है। अतः उन्होंने विजयदशमी (14 अक्टूबर 1956) को नागपुर में अपनी पत्नी तथा हजारों अनुयायियों के साथ भारत में जन्मे बौद्धमत को स्वीकार कर लिया।
पत्रकार भी थे डॉ. आम्बेडकर
बाबा साहब ने 1920 में मूकनायक, 1927 में बहिष्कृत भारत,1930 में जनता, 1956 में जनता का ही रूपान्तरित प्रबुद्ध भारत जैसे चार समाचार पत्र भी चलाये थे। उन्होने समाचार पत्रीय लेखन का आरम्भ अंग्रेजी में ”बाम्बे क्रानिकल“ से किया था। 1924 से बाबासाहब ने अस्पृश्य आंदोलन प्रारम्भ किया। उनके आंदोलन को वैचारिक आधार देने वाला समाचारपत्र मूकनायक था। इस समाचारपत्र में उनके 14 लेख प्रकाशित हुए।
संस्कृत के प्रबल समर्थक थे
संस्कृत भाषा के विषय में बाबासाहब के मन में बहुत आदर था और वह उन्हें सीखने को नहीं मिली। इसका उन्हें अत्यंत दुख था। संविधान समिति में राष्ट्रभाषा में व राज्य व्यवहार की अधिकृत भाषा से संबंधित अनुच्छेद में संस्कृत को राष्ट्र व राज्य व्यवहार की पर्यायी भाषा रखने के बारे में जिन लोगों ने संशोधन सुझाए थे उसमें डॉ. आम्बेडकर भी थे। यह दुर्भाग्य रहा कि ये संशोधन स्वीकार नहीं किया गया।
राष्ट्रीय स्वयेवक संघ और डा. आम्बेडकर
डॉ. आम्बेडकर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पूरी जनकारी थी। संघ के स्वयंसेवको का उनसे नित्य का सम्पर्क था।वे संघ के स्वयंसेवकों से चर्चा किया करते थे। डॉ. हेडगेवार की तरह बाबासाहब की भी धारणा थी कि सामाजिक समरसता निर्माण हुए बिना सामाजिक समता सथापित नहीं हो सकेगी। उनकी मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगडी जी से भी मित्रता थी। ठेंगडी जी ने बाबासाहब को अति निकट से देखा, समझा व परखा था।
वास्तव में डा. आम्बेडकर किसी वर्ग विशेष के नेता नहीं थे। वे सम्पूर्ण भारतवर्ष ओैर सारी मानवता के पथ प्रदर्शक थे। सम्पूर्ण देश उनके कार्यो का ऋणी है तथा रहेगा। वे करोड़ों दलित हिंदुओं के लिए नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत के लिये परम आदरणीय हैं। डॉ. आम्बेडकर एक महान विधिवेत्ता, बहुजन राजनैतिक नेता, बौद्ध पुनरुत्थानवादी होने के साथ- साथ भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार भी थे। उन्हें बाबा साहेब के लोकप्रिय नाम से भी जाना जाता है। बाबा जी का पूरा जीवन हिंदू धर्म की चतुवर्ण प्रणाली और भारतीय समाज में सर्वव्याप्त जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्षमें बीता। बाबासाहब को उनके महान कार्यो के लिए भारतरत्न से भी सम्मानित किया गया। समाज में सामाजिक समरसता के लिए पूरा जीवन लगाने वाले बाबा साहब का छह दिसम्बर 1956 को देहावसान हो गया।
( मृत्युंजय दीक्षित, लेखक राजनीतिक जानकार व स्तंभकार हैं.)
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