Film Haq: भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में शाह बानो (Shah Bano) का नाम उस महिला के रूप में दर्ज है जिसने न सिर्फ अपने हक के लिए आवाज उठाई, बल्कि पूरे देश में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर बहस छेड़ दी। इंदौर की रहने वाली शाह बानो बेगम का संघर्ष 1985 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के साथ एक मिसाल बन गया। तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ उनकी कानूनी लड़ाई ने महिलाओं के अधिकारों को नई दिशा दी। 2019 में जब ट्रिपल तलाक कानून लागू हुआ, तो इसे शाह बानो की जिद और संघर्ष की जीत माना गया। अब उनके जीवन की यही कहानी बड़े पर्दे पर फिल्म हक (Film Haq) के रूप में सामने आ रही है, जिसमें यामी गौतम और इमरान हाशमी प्रमुख भूमिकाओं में नजर आएंगे।

एक साधारण महिला, असाधारण हौसला

शाह बानो का जन्म 1916 में मध्य प्रदेश के इंदौर में एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ था। साल 1932 में उनकी शादी वकील मोहम्मद अहमद खान से हुई, जिनकी कमाई से परिवार का जीवन सहजता से चल रहा था। शाह बानो ने अपना पूरा जीवन एक गृहिणी के रूप में बिताया घर संभाला, पांच बच्चों की परवरिश की और पति की दूसरी शादी को भी चुपचाप स्वीकार कर लिया। लेकिन यह सन्नाटा उस समय टूटा, जब 1978 में 62 वर्ष की आयु में उनके पति ने उन्हें तीन बार ‘तलाक’ कहकर घर से निकाल दिया।
न्याय की राह में पहला कदम

तलाक के बाद अहमद खान ने शाह बानो को केवल 500 रुपये का महर देकर अपने सारे रिश्ते खत्म कर लिए। बिना किसी आय स्रोत के, बुजुर्ग शाह बानो और उनके बच्चे गरीबी और भूख के दौर से गुजरने लगे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत इंदौर की निचली अदालत में गुजारा भत्ता की याचिका दायर की। यह धारा किसी भी धर्म के व्यक्ति को भरण-पोषण का अधिकार देती है। अदालत ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन अहमद खान ने इस फैसले को चुनौती दी।
देश की न्यायिक और सामाजिक सोच में बदलाव

यह मामला हाई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, और 1985 में शीर्ष अदालत ने शाह बानो के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस निर्णय ने व्यक्तिगत कानूनों और महिलाओं के अधिकारों को लेकर देशभर में तीखी बहस छेड़ दी। हालांकि बाद में राजनीतिक दबाव में संसद ने ‘मुस्लिम महिला (विवाह विच्छेद पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986’ पारित किया, लेकिन शाह बानो का संघर्ष समाज में चेतना की नई लहर लेकर आया। उनका साहस आज भी भारत की महिलाओं के अधिकारों की नींव के रूप में याद किया जाता है।
फिल्म ‘हक’: महिलाओं के अधिकार की कहानी

इमरान हाशमी और यामी गौतम स्टारर फिल्म ‘हक’ आपको महिलाओं के अधिकार, उनकी पहचान और उनकी जिंदगी पर सोचने पर मजबूर करती है। यह कहानी शाजिया बानो (यामी गौतम) की है, जो अपने पति और वकील अब्बास खान (इमरान हाशमी) के खिलाफ बच्चों के मुआवजे के लिए कोर्ट जाती हैं। जब जज उन्हें काजी के पास जाने को कहते हैं, तो शाजिया सवाल उठाती हैं,’अगर मैंने किसी का खून किया होता तो भी आप यही कहते?’ फिल्म, 1985 के शाह बानो केस से प्रेरित है और यह दिखाती है कि न्याय की लड़ाई केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि समाज के लिए भी मिसाल बन सकती है।
प्यार, धोखा और बेबसी

फिल्म की शुरुआत शाजिया और अब्बास के प्यार से होती है, जिसमें एक मौलाना की बेटी और उसका पति एक-दूसरे के लिए लड़ते हैं। लेकिन समय के साथ रिश्ते में खटास आती है और अब्बास दूसरी पत्नी घर ले आता है। शाजिया की बेबसियों और मिले धोखे को दर्शाया गया है।




















































