गोंडा: विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह के पिता आनंद सिंह का निधन, कांग्रेस से चार बार रह चुके हैं सांसद

पूर्व केंद्रीय मंत्री और गोंडा संसदीय क्षेत्र से चार बार सांसद रहे आनंद सिंह (Anand Singh) उर्फ अन्नू भैया का रविवार देर रात लखनऊ में निधन हो गया। उन्हें अचानक तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनके निधन की खबर से गोंडा समेत पूरे पूर्वांचल क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। आनंद सिंह के बेटे कीर्तिवर्धन सिंह (Kirti Vardhan Singh) वर्तमान में गोंडा से भाजपा सांसद और केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री हैं।

‘यूपी टाइगर’ के नाम से थे प्रसिद्ध 

मनकापुर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले राजा आनंद सिंह का सियासी कद पूर्वांचल की राजनीति में काफी बड़ा था। उन्हें ‘यूपी टाइगर’ की उपाधि दी गई थी। उनके करीबी केबी सिंह के अनुसार, वह ऐसे नेता थे जिन्हें कांग्रेस पार्टी केवल सादा चुनाव चिह्न (सिंबल) देती थी और वह जिसे चाहते, उसे उम्मीदवार बना देते। उनके प्रभाव के चलते मनकापुर कोट का आशीर्वाद मिलने पर कई नेता सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि बनते थे।

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चार बार लोकसभा सांसद, एक बार कृषि मंत्री भी रहे

आनंद सिंह ने 1971 में पहली बार गोंडा लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद में कदम रखा। इसके बाद 1980, 1984 और 1989 में भी उन्होंने जीत हासिल की। वह कुल चार बार सांसद रहे। वर्ष 2012 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर गौरा विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर अखिलेश यादव सरकार में कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया। 2017 के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था।

राम लहर और परिवार के भीतर ही मिला सियासी मुकाबला

1991 की राम लहर में आनंद सिंह को भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1996 में एक दिलचस्प मोड़ आया जब उनकी पत्नी केतकी देवी सिंह ने बीजेपी के टिकट पर उन्हें ही हराकर संसदीय सीट जीती। इस हार के बाद आनंद सिंह ने लोकसभा चुनावों से दूरी बना ली, हालांकि उन्होंने विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई।

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राजनीति में योगदान को हमेशा किया जाएगा याद

राजा आनंद सिंह की पहचान केवल एक राजनेता की नहीं, बल्कि जनसेवा और जनविश्वास के प्रतीक के रूप में होती थी। उन्होंने राजनीति को अपने प्रभाव और ईमानदारी के बल पर जिया। उनकी राजनीतिक यात्रा नई पीढ़ी के लिए एक मिसाल है। उनके निधन से उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया है, जिसे लंबे समय तक याद किया जाएगा।

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