चैत्र माह के पहले दिन हिंदू नव वर्ष मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह हिंदू नव वर्ष मार्च-अप्रैल के महीने से आरंभ आता है. यह हिंदू नव वर्ष हिंदू कैलेंडर के मुताबिक मनाया जाता है. इसे विक्रम संवत या नव संवत्सर कहा जाता है. 60 तरह संवत्सर होते हैं. विक्रम संवत में यह सभी संवत्सर शामिल रहते हैं. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, चैत्र महीने के पहले दिन ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि को बनाया था और इस दिन मां दुर्गा के 9 रुपों की अर्चना की जाती है.
इस दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरूआत होती है. महाराष्ट में इस दिन को गुड़ी पड़वा कहा जाता है और दक्षिण भारत में इसे उगादि (Ugadi)कहा जाता है. वहीं, महाराष्ट्र में इस दिन पुरन पोली बनाया जाता है. साथ ही कई घरों में इस दिन पंचाग पढ़ा जाता है. आने वाले साल के बारे में जाना जाता है, जिनका आने वाला साल भारी होता है वो दान-पुण्य के कामों की शुरुआत करते हैं.
15 दिन बाद क्यों मनाया जाता है नव वर्ष
अक्सर लोगों के मन में सवाल होता है कि पंचांग (हिंदू कैलेंडर) में तो चैत्र महीना होली यानी फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन ही शुरू हो जाता है. इसे चैत्र कृष्ण प्रतिपदा कहा जाता है तो नया साल 15 दिन बाद क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे अलग सोच और मान्यता है, जो भारतीय दर्शन की महानता को दिखाती है.
वास्तव में चैत्र मास होली के दूसरे ही दिन से शुरू हो जाता है, लेकिन वो समय कृष्ण पक्ष का होता है. मतलब पूर्णिमा से अमावस्या तक का. इन 15 दिनों में चंद्रमा लगातार घटता है और अंधेरा बढ़ता जाता है. सनातन धर्म “तमसो मां ज्योतिर्गमय्” यानी अंधेरे से उजाले की ओर जाने की मान्यता है.
इस कारण चैत्र मास लगने के बाद भी शुरू के 15 दिन (पूर्णिमा से अमावस्या तक) छोड़ दिए जाते हैं. अमावस्या के बाद जब शुक्ल पक्ष लगता है तो शुक्ल प्रतिपदा से नया साल मनाया जाता है, जो अंधेरे से उजाले की ओर जाने का संकेत है. अमावस्या के अगले दिन शुक्ल पक्ष लगता है, जिसमें हर दिन चंद्रमा बढ़ता है, उजाला बढ़ता है.
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