हिंदू धर्म में हर भगवान का अपना अलग महत्व होता है. ऐसी मान्यता है कि सूर्य को अर्घ्य देने से भाग्योदय के साथ मनुष्य को सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है. आत्मा का कारक होने की वजह से सूर्य की उपासना से आत्म शुद्धि व आत्मज्ञान होकर मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. पर सूर्य को अर्घ्य देने का भी एक अपना तरीका होता है. इसीलिए आज की खबर में हम आपको सूर्य भगवान को अर्घ्य देने का सही तरीका बताने जा रहे हैं.
भगवान नारद ने बताई है विधि
भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की विधि भविष्य पुराण में देवर्षि नारद ने साम्ब को बताई है, जिसमें उन्होंने बताया कि व्यक्ति को सबसे पहले शौच आदि से निवृत्त होकर नदी या जलाशय आदि में स्नान करना चाहिए. इसके बाद दान व आचमन करते हुए शुद्ध वस्त्र पहनना चाहिए. इसके बाद पूर्व या उत्तर की तरफ मुख करके आचमन व मार्जन करना चाहिए. इसके बाद मौन होकर देवालय में जाना चाहिए. इसके बाद आसन पर बैठकर प्रणाम कर सिर को कपड़े से ढकते हुए पुष्पों से सूर्य भगवान की पूजा करें. गायत्री मंत्र से गुग्गुल का धूप दें. फिर तांबे के पात्र में लाल चंदन, कमल का फूल, कुंकुम आदि को जल में मिलाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें.
सूर्य को अर्घ्य देने के मंत्र
भविष्य पुराण के अनुसार भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय पहले भगवान सूर्य का ह्रदय में ध्यान करते हुए ये मंत्र बोलें:—
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते.
अनुकम्पां हि मे कृत्वा गृहाणार्घ्यं दिवाकर.
इसके बाद इस प्रकार प्रार्थना करें:—
अर्चितस्त्वं यथाशक्त्या मया भक्त्या विभावसो.
ऐहिकामुष्पिकीं नाथ कार्यसिद्धिं ददस्व मे.
तीनों काल स्नान कर इस प्रकार जो भगवान सूर्य की आराधना करता है और धूप देता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। धन, पुत्र तथा आरोग्य की प्राप्ति के साथ उपासक अंत में भगवान सूर्य में ही लीन हो जाता है।
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