कुछ सरकारी विभागों में भी अवकाश मिलना बड़ा कठिन है। इनमें से एक है पुलिस महकमा, जहां छुट्टी न मिलने से अधिकांश पुलिसकर्मी तनाव में हैं। जोन में इक्का-दुक्का को छोड़ दें, तो एक भी ऐसा थाना नहीं है जहां व्यवस्थित तौर पर पुलिसकर्मियों को अवकाश मिल रहा है। नतीजतन 60 से 70 फीसद पुलिस वाले एंजायटी न्यूरोसिस नामक गंभीर बीमारी का शिकार हो चुके हैं।
मातहतों के हालातों को समझें अधिकारी
अफसरों के हुकुम के आगे उनकी जुबान खामोश है लेकिन दिल सुकून की तलाश में है। अक्सर सुना जाता है कि अधिकारी वर्ग मातहतों को अवकाश नहीं देते हैं, जिस कारण पुलिसकर्मी तनावग्रस्त रहते हैं। खास बात यह है कि ये स्थिति सिपाही से लेकर निरीक्षक तक की है।
इसका सीधा प्रभाव पुलिस के काम पर पड़ता है। परेशान पुलिस पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी से गैरहाजिर हो जाते हैं और राजकीय कार्य में रुचि नहीं रखते। अधिकारियों को मातहतों के हालात समझने चाहिए। पुलिस विभाग में अर्जित अवकाश मेडिकल आकस्मिक अवकाश एजुकेशनल स्पेशल और रिवार्ड लीव शामिल है।
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वहीं, महिला पुलिसकर्मियों को इनके अलावा मेटरनिटी और बेबी केयर लीव भी देय है। लेकिन अधिकारी वर्ग को छोड़कर किसी को एजुकेशनल अवकाश नहीं दिया जाता है। वह बात अलग है कि अधिकारी खुद इसका भरपूर इस्तेमाल करते हैं।
स्टाफ के अभाव में 18 घंटे कर रहे ड्यूटी
जानकारी के मुताबिक, मेरठ जिले में दिल्ली गेट थाने से अवकाश शुरू किए गए थे, जिसमें अभी तक चल रहे हैं। जोन में कुछ को छोड़ दें तो कहीं भी अवकाश नहीं दिया जाता। पुलिसकर्मियों को आमतौर पर 8 घंटे की ड्यूटी करनी चाहिए। लेकिन स्टाफ के अभाव में एक पुलिसकर्मी को कई बार 18 घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है। इन हालात में वे पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन भी नहीं कर पाते हैं।
पुलिस नियमावली में निर्धारित 30सीएल (कैजुअल लीव) और 30 ईएल (अर्नड लीव) भी प्रत्येक पुलिसकर्मी को मिलती रहे तो उन्हें साप्ताहिक अवकाश की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। हर महीने पांच छुट्टियों के हिसाब से साल में 60 छुट्टियां होती है। सप्ताह में एक अवकाश या फिर आवश्यकता और नियमानुसार अवकाश दिया जाए तो तनावग्रस्त पुलिस की समस्या हल हो सकती है। अवकाश मिलने से पुलिसकर्मी बेहतर पुलिसिंग कर पाएंगे।
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