पंजाब में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों में वृद्धि के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी धर्मांतरण के मामलों में तेजी देखी जा रही है। विशेष रूप से नेपाल और पाकिस्तान की सीमाओं से सटे क्षेत्रों में मिशनरियों की सक्रियता बढ़ी है, जिससे स्थानीय समुदायों में चिंता व्याप्त है।
पंजाब में हाल के वर्षों में ईसाई धर्म के प्रसार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। 2024 तक, राज्य में ईसाई जनसंख्या में वृद्धि और चर्चों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। धर्मांतरण के इन प्रयासों ने सिख समुदाय में चिंता बढ़ाई है, जिससे सामाजिक और सांस्कृतिक तनाव उत्पन्न हो रहा है।
उत्तर प्रदेश में मिशनरियों की सक्रियता
उत्तर प्रदेश में भी ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों में तेजी आई है। 2024 में राज्य के विभिन्न जिलों में धर्मांतरण के 70 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से कई घटनाएं नेपाल सीमा से सटे क्षेत्रों में हुई हैं, जहां गरीब और वंचित समुदायों को आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ का लालच देकर धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
नेपाल सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरित कराए गए दर्जनों गरीब लोगों की हिंदू धर्म में घर वापसी कराई गई है। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने विधिवत पूजा-पाठ कराकर इनका शुद्धिकरण कराया। स्थानीय लोगों का कहना है कि सीमावर्ती गाँवों में प्रत्येक रविवार और मंगलवार को प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है, जहाँ गरीब लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोमती नगर विस्तार के भरवारा एस्टेट के पास एक मकान में चल रही कथित प्रार्थना सभा के दौरान धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए स्थानीय लोगों ने जोरदार विरोध किया। उनका आरोप है कि हिंदुओं को ईसाई बनाने की साजिश चल रही थी। इस विरोध के दौरान स्थानीय लोगों ने “धर्म परिवर्तन नहीं चलेगा” जैसे नारे लगाए और बड़ी संख्या में वहां इकट्ठा हो गए। हिंदू संगठनों ने इस मामले की लिखित शिकायत भी थाने में दर्ज कराई है।
पंजाब में धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी मिशनरियों की सक्रियता में तेजी देखी जा रही है। विशेष रूप से नेपाल और पाकिस्तान की सीमाओं से सटे क्षेत्रों में मिशनरियों की गतिविधियाँ बढ़ी हैं, जिससे स्थानीय समुदायों में चिंता और विरोध बढ़ रहा है। इन घटनाओं को देखते हुए स्थानीय प्रशासन और सरकारों को सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक पहचान संरक्षित रह सके।
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