जानिए क्या है योग, इसका अध्यात्मिक पहलू और फायदे?

आज पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day) मनाया जा रहा है. योग भारत का वो दर्शन है जिसे दुनिया भर के देश अपना चुके हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी दैनिक रूप से योग करते हैं. सेहतमंद जीवन के लिए लोग काफी कारगर है. वास्तविकता में देखा जाए तो यह जीवन जीने की कला है. इससे व्यक्ति का भौतिक, आध्यात्मिक, मानसिक और आत्मिक विकास होता है. स्वामी विवेकानंद ने भी योग को मानव जीवन के लिए काफी हितकारी बताया था. योग करने से इंसान अपने शरीर, मन और जीवन के बीच एक तालमेल बैठा पाता है. योग न केवल शरीर को बाहरी रूप से बल्कि अंदुरनी रूप से भी काफी फायदा पहुंचाता है.


कई बार जीवन की भागदौड़, थकान और तनाव की वजह से जब लोगों का ध्यान भटकता है और किसी काम में नहीं लगता तो ऐसी स्थिति में शरीर के अंग, मांसपेशियां और शिरायें तालमेल में काम नहीं कर पाती हैं जिससे स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां सामने आती हैं. योग मानसिक तनाव के साथ ही भानात्मक परेशानी में काफी सुकून पहुंचाता है. काम के तनाव और रिश्तों में बिखराव के चलते कई लोग अवसाद का शिकार हो रहे हैं. योग इनमें काफी कारगर है और इससे काफी चमत्कारी परिणाम देखने को मिलते हैं. हालांकि इसका फायदा तत्काल नहीं दिखाई पड़ता है लेकिन लंबे समय तक अगर इसे किया जाए तो काफी सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलते हैं.


श्रीमद्भागवत गीता में कई प्रकार के योगों का उल्लेख किया गया है. भगवद् गीता का पूरा छठा अध्याय योग को समर्पित है. इसमें योग के तीन प्रमुख प्रकारों के बारे में बताया गया है. इसमें प्रमुख रूप से कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग का उल्लेख किया गया है. कर्म योग- कार्य करने का योग है. इसमें व्यक्ति अपनी स्थिति के उचित और कर्तव्यों के अनुसार कर्मों का श्रद्धापूर्वक निर्वाह करता है. भक्ति योग- भक्ति का योग. भगवान् के प्रति भक्ति. इसे भावनात्मक आचरण वाले लोगों को सुझाया जाता है.


ज्ञान योग- ज्ञान का योग अर्थात ज्ञान अर्जित करने का योग. भगवद्गीता के छठे अध्याय में बताये गए सभी योग जीवन का आधार हैं. इनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. भगवद्गीता में योग के बारे में बताया गया है- सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते. अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वंद्वों में सर्वत्र समभाव रखना योग है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो योग मनुष्य को सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि परिस्थितियों में सामान आचरण की शक्ति प्रदान करता है. भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में एक स्थल पर कहा है ‘योगः कर्मसु कौशलम’ अर्थात योग से कर्मों में कुशलता आती है. वास्तव में जो मनुष्य योग करता है उसका शरीर, मन और दिमाग तरोताजा रहता है और मनुष्य प्रत्येक काम मन लगाकर करता है.


श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘योग’ का अर्थ और यथार्थ स्पष्ट करते हुए उसकी क्रिया-विधि को भी समझाया है. बावजूद इसके योग के आठ अंगों में शामिल ‘यौगिक आसन’ का आधा-अधूरा प्रमादपूर्ण ज्ञान बतलाकर जिज्ञासुओं को भ्रमित किया जा रहा है. श्रीकृष्ण के मुताबिक़ योग के आठ अंग हैं जिनमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि शामिल हैं. यम के पांच भेद हैं-सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह. नियम के भी पांच प्रकार हैं-शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान. यम नियम के बाद आसन-सिद्धि का स्थान है. जब तक कोई यम नियम का पालन नहीं करता है तब तक आसन-सिद्धि भी नहीं होती. जब तक आसन सिद्धि नहीं आयेगी तब तक प्राणायाम में भी सफलता नहीं मिलेगी. इस प्रकार योग में एक क्रमबद्धता है. यम-नियम का जो कोई पालन करेगा, उसकी आसन सिद्धि होगी. आसन सिद्धि के बाद जब वह प्राणायाम करेगा तो उसमें उसको सफलता मिलेगी.


‘प्रत्याहार’ का अर्थ ही होता-प्रति$आहार अर्थात् जो भाव उत्पन्न हो उसे खा जाओ. यदि तुम उसको नहीं खाओगे, तो वह तुमको ही खा जाएगा. ध्यानाभ्यास करने के समय मन ऐसा-ऐसा हवाई महल बनाता है कि कहना मुश्किल है. बैठा कहीं है और कहां-कहां का चक्कर लगाता रहता हैं. इसीलिए संतगण कहते हैं कि पहले प्रत्याहार करो. जैसे आहार करते हैं उसी तरह मन में उठते भावों को खाते जाओ.


अगर नहीं किया जाता है तो फिर योग साधना सफल नहीं होगी. बैठेंगे जप करने और मन ही मन गप होने लगेगा. इसीलिए योग के आठ अंगों में प्रत्याहार महत्वपूर्ण है. जो प्रत्याहार नहीं करेगा वह हार जायेगा. जो प्रत्याहार में हार जायेगा वह कभी नहीं जीत पायेगा. यहां इस रहस्य को भी समझ लेना है कि इस भौतिक संसार में कोई भी मानव शरीर में आया है तो उसका मन जड़ रूप में ही उसके साथ है जबकि वह स्वयं अजर, अमर, अविनाशी और सब सुख-राशि है.


संत कहते हैं कि जड़ मन पर चेतन की विजय ही योग है. योग का यथार्थ अभ्यास ही हमें अंधकार से प्रकाश में ले जाता है और जड़ पर चेतन की विजय का दृढ़ आधार बनता है. वस्तुतः योग साधना की सफलता में दो बड़े विघ्न सामने आते हैं. एक आलस्य और दूसरा गुनावन. अनेक लोग ध्यान का अभ्यास करने बैठते हैं तो सो जाते हैं. वह भी बैठे-बैठे ही सो जाते हैं. सजग होकर ध्यान करना ही योग के लक्ष्य तक ले जाता है. संकल्प विकल्प दूसरी बाधा है. ध्यान के समय तरह-तरह की बात मन में लाना बहुत बाधक है. इसलिए योग के लिए सतर्कता और सबलता जरूरी है.


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