सपा-बसपा गठबंधन से बीजेपी को मिलेगी बड़ी चुनौती, एकजुट मुस्लिम वोट बैंक बिगाड़ सकता है गणित

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती आज साझा प्रेस काफ्रेंस कर गठबंधन को लेकर सभी तरह के सवालों से पर्दा हटा दिया है. मायावती ने ऐलान किया कि उत्‍तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 38 पर बसपा और 38 पर सपा लड़ेगी. साथ ही अन्‍य 2 सीटें रिजर्व रखी गई हैं. इसके अलावा अमेठी और रायबरेली की 2 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ दी हैं.

 

अखिलेश- माया का यह गठबंधन लोकसभा चुनाव 2019 की कसौटियों पर कितना खरा उतरेगा, यह तो लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पता चलेगा, लेकिन दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच हो रहे इस गठबंधन से भाजपा का चुनावी गणित प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा. भले ही भाजपा की तरफ से गठबंधन से लोकसभा चुनाव के गणित पर कोई फर्क न पड़ने के दावे किए जा रहे हों लेकिन जमीनी सच्चाई इसके ठीक उलट है.

 

हालांकि यह यह बात सच है कि अखिलेश और मायावती के बीच हो रहे इस गठबंधन की अपनी भी चुनौतियां हैं, चाहें वो वोट शेयरिंग की हो या दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल की हो चुनौतियाँ कई हैं, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि दोनों नेताओं ने इन चुनौतियों से पार पा लिया तो यह प्रयोग कम से कम यूपी में भाजपा के चुनावी गणित को काफी प्रभावित करेगा.

 

मुस्लिम वोट होगा एकजुट 

आमतौर पर मुस्लिम वोट को भाजपा विरोधी माना जाता है. यह वोट उसी को जाता है जो बीजेपी को हारने की स्थिति में दिख रहा होता है, फिर चाहे वो कोई भी पार्टी हो. सपा-बसपा गठबंधन की मजबूती प्रदेश के मुस्लिमों को भी भाजपा के खिलाफ मजबूत विकल्प मुहैया करा देगी क्योंकि गठबंधन के साथ अनुसूचित जाति और पिछड़ों में भी ज्यादातर का समर्थन रहने की संभावना जो दिख रही है. बता दें कि यूपी में 19 फ़ीसदी मतदाता हैं, 2017 विधानसभा में बीजेपी की जीत के पीछे मुस्लिम वोटों का बंटना भी एक बड़ा कारण रहा क्योंकि सपा को यूपी में मुस्लिमों का समर्थन था ही इसी दौरान बसपा ने भी मुस्लिम वोटों के लिए 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए थे, जिसके मुस्लिम वोट बंट गया था जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ.

 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर जैसे स्थानों पर जहां मुस्लिम आबादी 40 से 50 प्रतिशत तक है, वहां भाजपा को गठबंधन से कड़ा मुकाबला करना पड़ेगा. पांचों ही सीटों पर इस समय भाजपा के सांसद हैं. प्रदेश में लगभग 20 जिलों में मुस्लिम आबादी प्रभावी संख्या में है.

 

दोनों दलों के पारम्परिक वोटबैंक भी होंगे एकजुट 

सपा-बसपा के इस गठबंधन के चलते दो बड़ी आबादी 24 प्रतिशत अनुसूचित जाति में खासतौर से 15 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले जाटव और 54 प्रतिशत पिछड़ों में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले यादव जाति के ज्यादातर मतदाताओं का समर्थन और सहानुभूति इस गठबंधन को मिलने की संभावनाएं बन सकती हैं. पिछड़ों और अनुसूचित जाति खासतौर से पश्चिम के कई जिलों में प्रभावी संख्या में मौजूद जाट और जाटव के मतों को जोड़ दें तो लोकसभा का चुनावी संघर्ष पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी कांटे का बनता दिखता है.

 

पश्चिम की तरह मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और अनुसूचित जाति की आबादी के साथ मुस्लिम समीकरण भाजपा की गणित को बिगाड़ सकता है. हालांकि यह सब कुछ सपा और बसपा के गठबंधन के टिकाऊ होने पर निर्भर करेगा.

 

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