मायावती का बड़ा दांव: 13 साल बाद बसपा में फिर सक्रिय हुई भाईचारा कमेटी, SC-ST-OBC पर नजर

बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने 13 साल बाद एक बार फिर से भाईचारा कमेटियों की गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस कदम से पार्टी ने पिछड़ा, दलित और अन्य समाजों के बीच सामंजस्य और एकता को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।

OBC, SC और ST को प्राथमिकता

पहले चरण में, बसपा ने एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के समाजों को जोड़ने का निर्णय लिया है। इसके बाद, भविष्य में ब्राह्मण और अन्य जातियों को भी शामिल किया जाएगा। जिला स्तर पर गठित होने वाली ये कमेटियां अब विधानसभावार भी बनाई जाएंगी, जिससे पार्टी का संगठन और मजबूत होगा।

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2017 में बनी थी पिछली भाईचारा कमेटी

इससे पहले, 2017 में बसपा ने एक भाईचारा कमेटी बनाई थी, जिसमें हर जाति को शामिल किया गया था। ये कमेटियां मंडल और जिला स्तर पर अस्तित्व में थीं, लेकिन बाद में इन्हें भंग कर दिया गया। अब, एक नई दिशा में भाईचारा कमेटियां बनाई जा रही हैं, जिसमें विशेष ध्यान OBC और SC समाज पर होगा।

25 मार्च को मायावती की बैठक

बसपा सुप्रीमो मायावती 25 मार्च को प्रदेश पदाधिकारियों के साथ एक अहम बैठक करेंगी, जिसमें मंडलीय कोऑर्डिनेटर और जिलाध्यक्षों के साथ-साथ भाईचारा कमेटी के सदस्यों को भी बुलाया जाएगा। इस बैठक में संगठन विस्तार के लिए दिशा-निर्देश दिए जाएंगे और भाईचारा कमेटी के कार्यों और उनकी भूमिका पर चर्चा की जाएगी।

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भाईचारा कमेटी का उद्देश्य

भाईचारा कमेटी का मुख्य उद्देश्य निचले स्तर पर जाकर समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करना है। लखनऊ मंडल के जिलाध्यक्षों को इस जिम्मेदारी दी गई है, जिसमें लखनऊ के शैलेंद्र गौतम, रायबरेली के राजेश कुमार फौजी, उन्नाव के दिनेश गौतम और हरदोई के सुरेश चौधरी शामिल हैं।

OBC और SC समाज को जोड़ने की जिम्मेदारी

बसपा प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल के मुताबिक, इस बार भाईचारा कमेटी में दो संयोजक हर जिले में नियुक्त किए गए हैं – एक OBC से और एक SC से। यह दोनों संयोजक OBC और SC समाज को जोड़ने के लिए काम करेंगे, ताकि पिछड़ा और दलित समाज को एकजुट किया जा सके और पार्टी का जनाधार मजबूत हो सके।

संगठन का विस्तार

लखनऊ जिलाध्यक्ष शैलेंद्र गौतम के अनुसार, भाईचारा कमेटी के संयोजक अब OBC और SC समाज के बीच एकजुटता को बढ़ावा देंगे। इस पहल से पार्टी का आधार और शक्ति दोनों बढ़ने की उम्मीद है, जिससे आगामी चुनावों में बसपा की स्थिति मजबूत हो सके।

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